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मेरी किताब – सारिका अग्रवाल

मेरी किताब एक अनोठी किताब, रहना चाहती हरदम मेरे पास। बातें अनेक करती जुबानी सिखलाती ढंग जीने का॥ मेरे प्रश्नों के उत्तर इसके पास, हल करती तुरंत बार-बार। हर एक पन्ने का नया अंदाज़, मजबूर करता मुझे समझने को बार-बार॥ नया रंग नया ढंग, मिलेगा भला ऐसा किस के पास। मेरी किताब एक अनोठी किताब, रहना चाहती हरदम मेरे पास॥ …

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मेरी दादी – परिणीता सुनील इंदुलकर

मेरी दादी बड़ी प्यारी, दुनिया से है वह न्यारी। दादी मेरी अच्छी है, मुझको करती है वह प्यार। मुझको मिलता इनका दुलार, टॉफ़ी मुझको देतीं। बालाएं मेरी लेती है, गले से मुझको लगाती है। रूठ जाऊं तो मनाती है, दादी मेरी प्यारी है। ∼ परिणीता सुनील इंदुलकर

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मेरी बिल्ली काली पीली

मेरी बिल्ली काली पीली, पानी में हो गयी वो गीली। गीली होकर लगी कांपने, ऑछी-ऑछी लगी छींकने। मैं फिर बोली कुछ तो सीख, बिना रुमाल के कभी ना छींक।

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मेरी रेल – सुधीर

छूटी मेरी रेल। रे बाबू, छूटी मेरी रेल। हट जाओ, हट जाओ भैया। मैं न जानूं फिर कुछ भैया। टकरा जाये रेल। धक्-धक् धक्-धक्, धू-धू, धू-धू। भक्-भक्, भक्-भक्, भू-भू, भू-भू। छक्-छक् छक्-छक्, छू-छू, छू-छू। करती आई रेल। इंजन इसका भारी-भरकम। बढ़ता जाता गमगम गमगम। धमधम धमधम, धमधम धमधम। करता ठेलम ठेल। सुनो गार्ड ने दे दी सीटी। टिकट देखता फिरता …

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मन करता है – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

मन करता है प्रिये, तुम्हें हर दिन गीत नया सुनाऊँ। गीत नए हों, स्वर नए हों तुम्हें समर्पित उदगार नए हों उदगारों को भाषा देकर तुम पर अपना सर्वस्व लुटाऊँ। मन करता है प्रिये, तुम्हें हर दिन गीत नया सुनाऊँ। फूलों से खुशबू ले लूं तितली से लूं इठलाना नदिओं से शीतलता ले लूं सागर से गहराना झरनों से स्वर …

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लाल पीली मोटर है

लाल पीली मोटर है, उसका मैं ड्राइवर हूँ। चाबी मैं लगाऊँगा, हैंडल को घुमाऊँगा। पापा को बिठाऊँगा, मम्मी को बिठाऊँगा। मोटर चलेगी पों… पों… पों…।

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गुरुद्वारा बाबा अटल राय जी, अमृतसर, पंजाब

गुरुद्वारा बाबा अटल राय जी, अमृतसर, पंजाब

गुरु की नगरी अमृतसर स्थित करोड़ों दिलों की धार्मिक राजधानी श्री हरिमंदिर साहिब परिसर के प्रांगण में स्थित नौ मंजिला गुरुद्वारा बाबा अटल राय जी को शहर की सबसे ऊंची इमारत होने का रुतबा प्राप्त है परन्तु यह भी एक प्रामाणिक सत्य है कि इस गुरुद्वारे की दीवारें विश्व स्तरीय भित्ति चित्रकारी से इस प्रकार से अलंकृत हैं कि इनका …

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मुझे पुकार लो – हरिवंश राय बच्चन

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो। ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता, जहान देखकर मुझे नहीं ज़बान खोलता, नहीं जगह कहीं जहाँ न अजनबी गिना गया, कहाँ-कहाँ न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता, कहाँ मनुष्य है कि जो उम्मीद छोड़कर जिया, इसीलिए अड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो। इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो। तिमिर-समुद्र …

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मुन्ना और दवाई – रामनरेश त्रिपाठी

मुन्ना ने आले पर ऊँचे आले पर जब छोटे हाथ नहीं जा पाये खींच खींच कर अपनी छोटी चौकी ले आये। पंजो के बल उसपर चढ़कर एड़ी भी उचकाई, मुन्ना ने आले पर राखी शीशी तोड़ गिराई। हाथ पड़ा शीशी पर आधा खींचा उसे पकड़ कर वहीँ गिरी वह आले पर से इधर उधर खड़बड़ कर। शीशी तोड़ी कांच बिखेरा …

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नटखट हम, हां नटखट हम – सभामोहन अवधिया ‘स्वर्ण सहोदर’

नटखट हम, हां नटखट हम। नटखट हम हां नटखट हम, करने निकले खटपट हम आ गये लड़के आ गये हम, बंदर देख लुभा गये हम बंदर को बिचकावें हम, बंदर दौड़ा भागे हम बच गये लड़के बच गये हम, नटखट हम हां नटखट हम। बर्र का छत्ता पा गये हम, बांस उठा कर आ गये हम छत्ता लगे गिराने हम, …

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