सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंग कर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन बार परिक्रमा करें। वट वृक्ष का …
Read More »अपना गाँव – निवेदिता जोशी
मैं अपने गाँव जाना चाहती हूँ… जाड़े की नरम धूप और वो छत का सजीला कोना नरम-नरम किस्से मूँगफली के दाने और गुदगुदा बिछौना मैं अपने गाँव जाना चाहती हूँ… धूप के साथ खिसकती खटिया किस्सों की चादर व सपनों की तकिया मैं अपने गाँव जाना चाहती हूँ… दोस्तों की खुसफुसाहट हँसी के ठहाके यदा कदा अम्मा व जिज्जी के …
Read More »अनकहे गीत – मनोहर लाल ‘रत्नम’
प्रेम के गीत अब तक हैं गाये गये। दर्द के गीत तो, अनकहे रह गये॥ द्रोपदी पिफर सभा में, झुकाये नजर, पाण्डवों का कहां खो गया वो असर। फिर शिशुपाल भी दे रहा गालियां, कृष्ण भी देख कर देखते रह गये। दर्द के गीत तो, अनकहे रह गये॥ विष जो तुमने दिया, उसको मैंने पिया, पीर की डोर से, सारा …
Read More »अनोखा घर – प्रतिक दुबे
सबका अपना होता है, सबको रहना होता है, और जहाँ सुख-दुःख होता है, वह अनोखा घर होता है। चार-दीवार के अंदर रहते सब, समय पता नही बीत जाता है कब, वह अनोखा घर होता है। जहाँ सब अपना काम करते है, मिल-जुलकर साथ हमेशा रहते है, वह अनोखा घर होता है। आज मनुष्य की हरकतों से घर बिखरता जा रहा …
Read More »अमरुद बन गए – डॉ. श्री प्रसाद
आमों के अमरुद बन गए अमरूदों के केले मैंने यह सब कुछ देखा है आज गया था मेले बकरी थी बिलकुल छोटी सी हाथी की थी बोली मगर जुखाम नहीं सह पाई खाई उसने गोली छत पर होती थी खों खों खों मगर नहीं था बन्दर बिल्ली ही यों बोल रही थी परसो मेरी छत पर गाय नहीं करती थी …
Read More »आलपिन का सिर होता – रामनरेश त्रिपाठी
आलपिन के सर होता पर बाल नहीं होता है एक, कुर्सी के टाँगे है पर फूटबाल नहीं सकती है फेंक। कंघी के है दांत मगर वह चबा नहीं सकती खाना, गला सुराही का है पतला किन्तु न गए सकती गाना। जूते के है जीभ मगर वह स्वाद नही चख सकता है, आँखे रखते हुए नारियल कभी न कुछ लिख सकता …
Read More »ऐसा नया साल – मनोज भावुक
अबकी आए ऐसा नया साल, हो जाए हर गाँव शहर खुशहाल। भइया के मुँह से फूटे संगीत, भौजी के कंगना से खनके ताल। आए रे आए ऐसा मधुमास, फूल खिलाए ठूंठ पेड़ के डाल। झूम-झूम के नाचे मगन किसान, इतना लदरे जौ गेहूँ के बाल। दिन सोना के चाँदी के हो रात, हर अंगना मे ऐसा होए कमाल। मस्ती मे …
Read More »अगर होता मैं – राहुल राज पसरीचा
गर होता मै नन्हा पंछी, छूता नभ को पंख पसार। डालो पर भी गाता रहता, आ जाती जब मस्त बहार। गर होता मै फूल बाग का, जग को मै सिखलाता प्यार। मिट न सके गंध ये मेरी, देता सब को ये उपहार॥ गर होता मै शूल फूल का, सबको मै सिखलाता वार। शत्रु को काम कभी न समझो, शस्त्र को …
Read More »अभागा – गगन गुप्ता ‘स्नेह’
maOM tao ABaagaa qaa maUk¸ isqar AaOr laacaar kuC kh panao maoM Asamaqa- qaa AaOr samaJa na payaa tumharI yao kuiTla caala mauJao samaaPt krnao kI maOM maUk qaa¸ prntu kainthIna nahIM maoro hI saayao maoM tuma baD,o hue yaad Aata hO tumakao jaoz kI ]masa BarI daophr maoM jaba tuma yahaM Kola krto qao maora spSa- tumakao ja$r yaad …
Read More »आसमान – गोविन्द भारद्वाज
नीला-नीला आसमान है, नीचे सुन्दर एक जहान है। बादल रहते इसके संग, कितना अच्छा इसका संग। पंछी ऊँची उड़ान भरे भला इनका भगवान करे। चाँद-तारों का है यह घर, सूरज रहे लटका दिन-भर। छिपा इसमें खगोल बड़ा, पीछे इसके भूगोल बड़ा। इसे छूने का अरमान है, नीला-नीला आसमान है। ∼ गोविन्द भारद्वाज
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