Agyeya

Sachchidananda Hirananda Vatsyayan ‘Agyeya’ (सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’) (7 March 1911 – 4 April 1987), popularly known by his pen-name Ajneya (“Beyond comprehension”), was a pioneer of modern trends not only in the realm of Hindi poetry, but also fiction, criticism and journalism. He was one of the most prominent exponents of the Nayi Kavita (New Poetry) and Prayog (Experiments) in Modern Hindi literature, edited the ‘Saptaks’, a literary series, and started Hindi newsweekly, Dinaman. Agyeya also translated some of his own works, as well as works of some other Indian authors to English. He also translated some books of world literature into Hindi.

हमारा देश: Agyeya Desh Prem Hindi Poem about Indian Culture

हमारा देश By Agyeya

हमारा देश: सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ इन्ही तृण – फूस – छप्पर से ढके ढुलमुल गँवारू झोंपड़ों में ही हमारा देश बस्ता है। इन्ही के ढोल – मादल – बांसुरी के उमगते सुर में हुनरी साधना का रस बस्ता है। इन्ही के मर्म को अनजान शहरों की ढकी लोलुप विषैली वासना का सांप डंसता है। इन्ही में लहराती अल्हड़ अपनी …

Read More »

Agyeya Hindi Poem about Poor People & Frustration अनुभव परिपक्व

Anubhav Paripakva - Sachchidananda Vatsyayan Agyeya

माँ हम नहीं मानते – अगली दीवाली पर मेले से हम वह गाने वाला टीन का लट्टू लेंगे ही लेंगे – नहीं, हम नहीं जानते – हम कुछ नहीं सुनेंगे। – कल गुड़ियों का मेला है मुझे एक दो पैसे वाली काग़ज़ की फिरकी तो ले देना अच्छा मैं लट्टू नहीं मांगता – तुम बस दो पैसे दे देना। – …

Read More »

Agyeya Contemplation Poem on Lost Love प्राण तुम्हारी पदरज फूली

प्राण तुम्हारी पदरज फूली मुझको कंचन हुई तुम्हारे चंचल चरणों की यह धूली! आईं थीं तो जाना भी था – फिर भी आओगी‚ दुख किसका? एक बार जब दृष्टिकरों से पदचिन्हों की रेखा छू ली! वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी‚ गीत शब्द का कब अभिलाषी? अंतर में पराग सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली! प्राण तुम्हारी पदरज फूली! ∼ …

Read More »