अक्ल कहती है, सयानों से बनाए रखना दिल ये कहता है, दीवानों से बनाए रखना लोग टिकने नहीं देते हैं कभी चोटी पर जान–पहचान ढलानों से बनाए रखना जाने किस मोड़ पे मिट जाएँ निशाँ मंज़िल के राह के ठौर ठिकानों से बनाए रखना हादसे हौसले तोड़ेंगे सही है फिर भी चंद जीने के बहानों से बनाए रखना शायरी ख़वाब …
Read More »राही के शेर – बालस्वरूप राही
किस महूरत में दिन निकलता है, शाम तक सिर्फ हाथ मलता है। दोस्तों ने जिसे डुबोया हो, वो जरा देर में संभलता है। हमने बौनों की जेब में देखी, नाम जिस चीज़ का सफ़लता है। तन बदलती थी आत्मा पहले, आजकल तन उसे बदलता है। एक धागे का साथ देने को, मोम का रोम रोम जलता है। काम चाहे ज़ेहन …
Read More »भर दिया जाम – बालस्वरूप राही
भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से प्रिय! बोलो, मैं इन्कार करूं भी तो कैसे! वैसे तो मैं कब से दुनियाँ से ऊब चुका, मेरा जीवन दुख के सागर में डूब चुका, पर प्राण, आज सिरहाने तुम आ बैठीं तो– मैं सोच रहा हूँ हाय मरूं तो भी कैसे! मंजिल अनजानी पथ की भी पहचान नहीं, है थकी थकी–सी …
Read More »प्रेमिका का उत्तर कवि को – बालस्वरूप राही
पत्र मुझको मिला तुम्हारा कल चाँदनी ज्यों उजाड़ में उतरे क्या बताऊँ मगर मेरे दिल पर कैसे पुरदर्द हादसे गुज़रे। यह सही है कि हाथ पतझर के मैंने तन का गुलाब बेचा है मन की चादर सफेद रखने को सबसे रंगीन ख्वाब बेचा है। जितनी मुझसे घृणा तुन्हें होगी उससे ज्यादा कहीं मलिन हूँ मैं धूप भी जब सियाह लगती …
Read More »पी जा हर अपमान – बालस्वरूप राही
पी जा हर अपमान और कुछ चारा भी तो नहीं! तूनें स्वाभिमान से जीना चाहा यही ग़लत था कहां पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था केवल तेरे ही अधरों पर कड़वा स्वाद नहीं है सबके अहंकार टूटे हैं तू अपवाद नहीं है तेरा असफल हो जाना तो पहले से ही तय था तूने कोई समझौता स्वीकारा भी …
Read More »कवि का पत्र प्रेमिका को – बालस्वरूप राही
आह, कितनी हसीन थीं रातें जो तड़पते हुए गुज़ारी थीं तुम न मानो मगर यही सच है मुझसे ज्यादा तो वे तुम्हारी थीं। थपथपाता था द्वार जब कोई आ गईं तुम, गुमान होता था उन दिनों कुछ अजीब हालत थी जागता भी न था, न सोता था। भोर आए तो यों लगे मुझको वह तुम्हारा सलाम लाई है दिन जो …
Read More »कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं – बालस्वरूप राही
कंटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पांव को मेरे‚ कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं! हवाओं में न जाने आज क्यों कुछ कुछ नमी सी है डगर की ऊष्णता में भी न जाने क्यों कमी सी है‚ गगन पर बदलियां लहरा रहीं हैं श्याम आंचल सी कहीं तुम नयन में सावन बिछाए तो नहीं बैठीं! अमावस की …
Read More »जिंदगानी मना ही लेती है – बालस्वरूप राही
हर किसी आँख में खुमार नहीं हर किसी रूप पर निखार नहीं सब के आँचल तो भर नहीं देता प्यार धनवान है उदार नहीं। सिसकियाँ भर रहा है सन्नाटा कोई आहट कोई पुकार नहीं क्यों न कर लूँ मैं बन्द दरवाज़े अब तो तेरा भी इंतजार नहीं। पर झरोखे की राह चुपके से चाँदनी इस तरह उतर आई जैसे दरपन …
Read More »जीवन क्रम – बालस्वरूप राही
जो काम किया‚ वह काम नहीं आएगा इतिहास हमारा नाम न दोहराएगा जब से सपनों को बेच खरीदी सुविधा तब से ही मन में बनी हुई है दुविधा हम भी कुछ अनगढ़ता तराश सकते थे दो–चार साल समझौता अगर न करते। पहले तो हम को लगा कि हम भी कुछ हैं अस्तित्व नहीं है मिथ्या‚ हम सचमुच हैं पर अक्समात …
Read More »राही के मुक्तक – बालस्वरूप राही
मेरे आँसू तो किसी सीप का मोती न बने साथ मेरे न कभी आँख किसी की रोई ज़िन्दगी है इसकी न शिकायत मुझको गम तो इसका है की हमदर्द नहीं है कोई। आप आएं हैं तो बैठें जरा, आराम करें सिलसिला बात का चलता है तो चल पड़ता है आप की याद में खोया हूँ, अभी चुप रहिये बात करने …
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