रोते रोते बहल गई कैसे रुत अचानक बदल गई कैसे मैंने घर फूँका था पड़ौसी का झोपड़ी मेरी जल गई कैसे जिस पे नीयत लगी हो मौसम की सूखी टहनी वो फल गई कैसे बात जो मुद्दतों से दिल में थी आज मुँह से निकल गई कैसे जिन्दगी पर बड़ा भरोसा था जिन्दगी चाल चल गई कैसे दोस्ती है चटान …
Read More »Bekal Utsahi Hindi Poem about Drought कब बरसेगा पानी
सावन भादौं साधु हो गए, बादल सब संन्यासी पछुआ चूस गई पुरवा को, धरती रह गई प्यासी फसलों ने वैराग ले लिया, जोगी हो गई धानी राम जाने कब बरसेगा पानी ताल तलैया माटी चाटै, नदियाँ रेत चबाएँ कुएँ में मकड़ी जाला ताने, नहरें चील उड़ाएँ उबटन से गगरी रूठी है, पनघट से बहुरानी राम जाने कब बरसेगा पानी छप्पर …
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