भवानी प्रसाद मिश्र हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वह ‘दूसरा सप्तक’ के प्रथम कवि हैं। गांंधी-दर्शन का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह ‘गीत-फ़रोश’ अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुआ। प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे। …
Read More »बूँद टपकी एक नभ से: भवानी प्रसाद मिश्र
भवानी प्रसाद मिश्र हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वह ‘दूसरा सप्तक’ के प्रथम कवि हैं। गांंधी-दर्शन का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह ‘गीत-फ़रोश’ अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुआ। प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे। …
Read More »भारतीय समाज – भवानी प्रसाद मिश्र
कहते हैं इस साल हर साल से पानी बहुत ज्यादा गिरा पिछ्ले पचास वर्षों में किसी को इतनी ज्यादा बारिश की याद नहीं है। कहते हैं हमारे घर के सामने की नालियां इससे पहले इतनी कभी नहीं बहीं न तुम्हारे गांव की बावली का स्तर कभी इतना ऊंचा उठा न खाइयां कभी ऐसी भरीं, न खन्दक न नरबदा कभी इतनी …
Read More »भंगुर पात्रता – भवानी प्रसाद मिश्र
मैं नहीं जानता था कि तुम ऐसा करोगे बार बार खाली करके मुझे बार बार भरोगे और फिर रख दोगे चलते वक्त लापरवाही से चाहे जहाँ। ऐसा कहाँ कहा था तुमने खुश हुआ था मैं तुम्हारा पात्र बन कर। और खुशी मुझे मिली ही नहीं टिकी तक मुझ में तुमने मुझे हाथों में लिया और मेरे माध्यम से अपने मन …
Read More »अच्छा अनुभव – भवानी प्रसाद मिश्र
मेरे बहुत पास मृत्यु का सुवास देह पर उस का स्पर्श मधुर ही कहूँगा उस का स्वर कानों में भीतर मगर प्राणों में जीवन की लय तरंगित और उद्दाम किनारों में काम के बँधा प्रवाह नाम का एक दृश्य सुबह का एक दृश्य शाम का दोनों में क्षितिज पर सूरज की लाली दोनों में धरती पर छाया घनी और लम्बी …
Read More »गीत फरोश – भवानी प्रसाद मिश्र
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ, मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ, मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ। जी, माल देखिए, दाम बताऊँगा, बेकाम नहीं हैं, काम बताऊँगा, कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने, कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने, यह गीत सख्त सर-दर्द भुलाएगा, यह गीत पिया को पास बुलाएगा। जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी …
Read More »अक्कड मक्कड़ – भवानी प्रसाद मिश्र
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़, दोनों मूरख, दोनों अक्खड़, हाट से लौटे, ठाठ से लौटे, एक साथ एक बाट से लौटे। बात-बात में बात ठन गयी, बांह उठीं और मूछें तन गयीं। इसने उसकी गर्दन भींची, उसने इसकी दाढी खींची। अब वह जीता, अब यह जीता; दोनों का बढ चला फ़जीता; लोग तमाशाई जो ठहरे सबके खिले हुए थे चेहरे …
Read More »बुनी हुई रस्सी – भवानी प्रसाद मिश्र
बुनी हुई रस्सी को घुमाएं उल्टा तो वह खुल जाती है और अलग अलग देखे जा सकते हैं उसके सारे रेशे मगर कविता को कोई खोले ऐसा उल्टा तो साफ नहीं होंगे हमारे अनुभव इस तरह क्योंकि अनुभव तो हमें जितने इसके माध्यम से हुए हैं उससे ज्यादा हुए हैं दूसरे माध्यमों से व्यक्त वे जरूर हुए हैं यहां कविता …
Read More »टूटने का सुख – भवानी प्रसाद मिश्र
बहुत प्यारे बन्धनों को आज झटका लग रहा है, टूट जायेंगे कि मुझ को आज खटका लग रहा है, आज आशाएं कभी भी चूर होने जा रही हैं, और कलियां बिन खिले कुछ चूर होने जा रही हैं, बिना इच्छा, मन बिना, आज हर बंधन बिना, इस दिशा से उस दिशा तक छूटने का सुख! टूटने का सुख। शरद का …
Read More »सुख का दुख – भवानी प्रसाद मिश्र
जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है, इस बात का मुझे बड़ा दुख नहीं है, क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ, बड़े सुख आ जाएं घर में तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं। यहां एक बात इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि, बड़े सुखों को देखकर मेरे बच्चे सहम जाते हैं, मैंने बड़ी कोशिश की …
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