कनुप्रिया (इतिहास: सेतु – मैं): धर्मवीर भारती धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक और सामाजिक विचारक थे। नीचे की घाटी से ऊपर के शिखरों पर जिस को जाना था वह चला गया – हाय मुझी पर पग रख मेरी बाँहों से इतिहास तुम्हें ले गया! सुनो कनु, सुनो क्या मैं सिर्फ एक …
Read More »फूल मोमबत्तियां सपने: धर्मवीर भारती
फूल मोमबत्तियां सपने: धर्मवीर भारती धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। उनका जन्म इलाहाबाद के अतर सुइया मुहल्ले में हुआ। उनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा और माँ का श्रीमती चंदादेवी था। स्कूली शिक्षा डी. ए. वी हाई स्कूल में हुई और उच्च शिक्षा …
Read More »दीदी के धूल भरे पाँव: धर्मवीर भारती
दीदी के धूल भरे पाँव बरसों के बाद आज फिर यह मन लौटा है क्यों अपने गाँव; अगहन की कोहरीली भोर: हाय कहीं अब तक क्यों दूख दूख जाती है मन की कोर! एक लाख मोती, दो लाख जवाहर वाला, यह झिलमिल करता महानगर होते ही शाम कहाँ जाने बुझ जाता है – उग आता है मन में जाने कब …
Read More »धुंधली नदी में: धर्मवीर भारती
आज मैं भी नहीं अकेला हूं शाम है‚ दर्द है‚ उदासी है। एक खामोश सांझ–तारा है दूर छूटा हुआ किनारा है इन सबों से बड़ा सहारा है। एक धुंधली अथाह नदिया है और भटकी हुई दिशा सी है। नाव को मुक्त छोड़ देने में और पतवार तोड़ देने में एक अज्ञात मोड़ लेने में क्या अजब–सी‚ निराशा–सी‚ सुख–प्रद‚ एक आधारहीनता–सी …
Read More »Dharamvir Bharati Old Classic Hindi Poem प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी बाँध देती है तुम्हारा मन, हमारा मन, फिर किसी अनजान आशीर्वाद में डूबन मिलती मुझे राहत बड़ी। प्रात सद्य:स्नात, कन्धों पर बिखेरे केश आँसुओं में ज्यों, धुला वैराग्य का सन्देश चूमती रह-रह, बदन को अर्चना की धूप यह सरल निष्काम, पूजा-सा तुम्हारा रूप जी सकूँगा सौ जनम अंधियारियों में, यदि मुझे मिलती रहे, काले तमस की छाँह में ज्योति की यह …
Read More »तुम कितनी सुंदर लगती हो – धर्मवीर भारती
तुम कितनी सुंदर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खंडहर के आसपास मदभरी चांदनी जगती हो! मुख पर ढंक लेती हो आंचल ज्यों डूब रहे रवि पर बादल‚ या दिनभर उड़ कर थकी किरन‚ सो जाती हो पांखें समेट‚ आंचल में अलस उदासी बन! दो भूल–भटके सांध्य–विहग‚ पुतली में कर लेते निवास! …
Read More »अंधा युग – धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती का काव्य नाटक अंधा युग भारतीय रंगमंच का एक महत्वपूर्ण नाटक है। महाभारत युद्ध के अंतिम दिन पर आधारित यह् नाटक चार दशक से भारत की प्रत्येक भाषा मै मन्चित हो रहा है। इब्राहीम अलकाजी, रतन थियम, अरविन्द गौड़, राम गोपाल बजाज, मोहन महर्षि, एम के रैना और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशको ने इसका मन्चन किया है …
Read More »फागुन की शाम – धर्मवीर भारती
घाट के रस्ते, उस बँसवट से इक पीली–सी चिड़िया, उसका कुछ अच्छा–सा नाम है! मुझे पुकारे! ताना मारे, भर आएँ, आँखड़ियाँ! उन्मन, ये फागुन की शाम है! घाट की सीढ़ी तोड़–फोड़ कर बन–तुलसी उग आयी झुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईं तोतापंखी किरनों में हिलती बाँसों की टहनी यहीं बैठ कहती थी तुमसे सब कहनी–अनकहनी आज खा …
Read More »आँगन – धर्मवीर भारती
बरसों के बाद उसी सूने- आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन का कोना-कोना कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना फिर आकर बाँहों में खो जाना अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी फिर गहरा सन्नाटा हो जाना दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना, कँपना, बेबस हो गिर जाना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन …
Read More »बातें – धर्मवीर भारती
सपनों में डूब–से स्वर में जब तुम कुछ भी कहती हो मन जैसे ताज़े फूलों के झरनों में घुल सा जाता है जैसे गंधर्वों की नगरी में गीतों से चंदन का जादू–दरवाज़ा खुल जाता है बातों पर बातें, ज्यों जूही के फूलों पर जूही के फूलों की परतें जम जाती हैं मंत्रों में बंध जाती हैं ज्यों दोनों उम्रें दिन …
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