शरद की हवा ये रंग लाती है, द्वार–द्वार, कुंज–कुंज गाती है। फूलों की गंध–गंध घाटी में बहक–बहक उठता अल्हड़ हिया हर लता हरेक गुल्म के पीछे झलक–झलक उठता बिछुड़ा पिया भोर हर बटोही के सीने पर नागिन–सी लोट–लोट जाती है। रह–रह टेरा करती वनखण्डी दिन–भर धरती सिंगार करती है घण्टों हंसिनियों के संग धूप झीलों में जल–विहार करती है दूर …
Read More »वे और तुम – जेमिनी हरियाणवी
मुहब्बत की रियासत में सियासत जब उभर जाए प्रिये तुम ही बतलाओ जिंदगी कैसे सुधर जाए चुनावों में चढ़े हैं वे निगाहों में चढ़ी हो तुम चढ़ाया है तुम्हें जिसने कहीं रो रो न मर जाए उधर वे जीत कर लौटे इधर तुमने विजय पाई हमेशा हारने वाला जरा बोलो किधर जाए उधर चमचे खड़े उनके इधर तुम पर फिदा …
Read More »अध्यापक की शादी – जैमिनि हरियाणवी
एक अध्यापक की हुई शादी सुहागरात को दुल्हान का घूँघट उठाते ही अपनी आदत के अनुसार उसने प्रश्नों की झड़ी लगा दी – “तेरा नाम चंपा है या चमेली? कौन कौन सी थी तेरी सहेली?” सहेलियों की और अपनी सही–सही उम्र बता! तन्नैं मैनर्स आवैं सै कि नहीं – पलंग पर सीधी खड़ी हो जा! तेरे कितने भाई बहन हैं? कितने …
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