मेरे देश की धरती सोना उगले: गुलशन छह वर्ष की उम्र में कविता लिखने लगे थे। बचपन में ही मौत का दंश झेलने वाले गुलशन के गीतों में दर्द छलकता रहा। लोग इसमें डूबते रहे। विभाजन के बाद दिल्ली आकर यहां स्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद मुंबई में गए और वहां संघर्ष शुरू हुआ। रेलवे में लिपिक की नौकरी की …
Read More »यारी है ईमान मेरा: गुलशन बावरा
गर खुदा मुझ से कहे, कुछ मांग ऐ बन्दे मेरे मैं ये मांगू, महफिलों के दौर यूँ चलते रहे हमप्याला, हमनिवाला, हमसफ़र, हमराज हो ता क़यामत जो चिरागों की तरह जलते रहे यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिन्दगी प्यार हो बन्दों से ये सब से बड़ी है बंदगी साज-ए-दिल छेड़ो जहाँ में, प्यार की गूंजे सदा जिन दिलों में …
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