हरिवंश राय श्रीवास्तव “बच्चन” हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। इलाहाबाद के प्रवर्तक बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में …
Read More »रंग बरसे भीगे चुनर वाली: हरिवंश राय बच्चन
सिलसिला 1981 में बनी भारतीय हिन्दी भाषा की रूमानी नाट्य फ़िल्म है। इसका निर्देशन यश चोपड़ा ने किया और इसमें अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, रेखा, संजीव कुमार और शशि कपूर मुख्य कलाकार हैं। यह फिल्म उस समय के तीन सितारों अमिताभ-जया-रेखा के वास्तविक जीवन के कथित प्रेम त्रिकोण से बहुत प्रेरित है, जो उस समय के प्रेम प्रसंगों में सबसे …
Read More »हरिवंश राय बच्चन वीर रस देश प्रेम कविता: रुके न तू
Here is an exhortation from Harivansh Rai Bachchan to leave inaction and to work with full enthusiasm and vigor. A good poem for children to recite. धरा हिला, गगन गुँजा नदी बहा, पवन चला विजय तेरी, विजय तेरीे ज्योति सी जल, जला भुजा–भुजा, फड़क–फड़क रक्त में धड़क–धड़क धनुष उठा, प्रहार कर तू सबसे पहला वार कर अग्नि सी धधक–धधक हिरन …
Read More »दीपक जलाना कब मना है: हरिवंश राय बच्चन
Calamities come in every one’s life. There could be death of a near and dear one or losing love of one’s life. Desperation may follow and everything may look dark and hopeless. Here Bachchan Ji tells in his inimitable style, it is fine to light a tiny lamp to dispel that darkness. It is OK to get up and re-connect …
Read More »कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ: बच्चन जी की निराश प्रेम कविता
Love requires great deal of efforts and full involvement. It exhausts the lovers. Then if one has to go through the whole process again! It is very difficult to revisit the old lanes and by lanes of love. कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ: हरिवंश राय बच्चन कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ क्या तुम लाई हो चितवन में, क्या तुम लाई हो …
Read More »देखो, टूट रहा है तारा: हरिवंश राय बच्चन
देखो, टूट रहा है तारा। नभ के सीमाहीन पटल पर एक चमकती रेखा चलकर लुप्त शून्य में होती-बुझता एक निशा का दीप दुलारा। देखो, टूट रहा है तारा। हुआ न उडुगन में क्रंदन भी, गिरे न आँसू के दो कण भी किसके उर में आह उठेगी होगा जब लघु अंत हमारा। देखो, टूट रहा है तारा। यह परवशता या निर्ममता …
Read More »चिड़िया और चुरुगन: हरिवंश राय बच्चन
छोड़ घोंसला बाहर आया‚ देखी डालें‚ देखे पात‚ और सुनी जो पत्ते हिलमिल‚ करते हैं आपस में बात; माँँ‚ क्या मुझको उड़ना आया? “नहीं चुरूगन‚ तू भरमाया” डाली से डाली पर पहुँचा‚ देखी कलियाँ‚ देखे फूल‚ ऊपर उठ कर फुनगी जानी‚ नीचे झुक कर जाना मूल; माँँ‚ क्या मुझको उड़ना आया? “नहीं चुरूगन तू भरमाया” कच्चे–पक्के फल पहचाने‚ खाए और …
Read More »शुरू हुआ उजियाला होना – हरिवंश राय बच्चन
हटता जाता है नभ से तम संख्या तारों की होती कम उषा झांकती उठा क्षितिज से बादल की चादर का कोना शुरू हुआ उजियाला होना ओस कणों से निर्मल–निर्मल उज्ज्वल–उज्ज्वल, शीतल–शीतल शुरू किया प्र्रातः समीर ने तरु–पल्लव–तृण का मुँह धोना शुरू हुआ उजियाला होना किसी बसे द्र्रुम की डाली पर सद्यः जाग्र्रत चिड़ियों का स्वर किसी सुखी घर से सुन …
Read More »Harivansh Rai Bachchan’s Poem about Love & Frustration तब रोक न पाया मैं आँसू
जिसके पीछे पागल हो कर मैं दौड़ा अपने जीवन भर, जब मृगजल में परिवर्तित हो, मुझ पर मेरा अरमान हँसा! तब रोक न पाया मैं आँसू! जिसमें अपने प्राणों को भर कर देना चाहा अजर–अमर, जब विस्मृति के पीछे छिपकर, मुझ पर वह मेरा गान हँसा! तब रोक न पाया मैं आँसू! मेरे पूजन आराधन को, मेरे संपूर्ण समर्पण को, …
Read More »Harivansh Rai Bachchan Inspirational Hindi Poem नीड़ का निर्माण फिर फिर
वह उठी आँधी कि नभ में छा गया सहसा अँधेरा, धूल धूसर बादलों न भूमि को इस भाँति घेरा, रात सा दिन हो गया फिर रात आई और काली, लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा, रात के उत्पात–भय से भीत जन–जन, भीत कण–कण, किंतु प्रची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर–फिर! नीड़ का निर्माण फिर–फिर, …
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