क्या कहने हैं सूरज भाई अच्छी खूब दुकान सजाई और दिनों की तरह आज भी जमा दिया है खूब अखाड़ा पहले किरणों की झाड़ू से घना अँधेरा तुमने झाड़ा फिर कोहरे को पोंछ उषा की लाल लाल चादर फैलाई। ज्यों ही तुमको आते देखा डर कर दूर अँधेरा भागा दिन भर की आपा धापी से थक कर जो सोया था …
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