काका हाथरसी (वास्तविक नाम – प्रभुलाल गर्ग, जन्म: 18 सितंबर, 1906, हाथरस, उत्तर प्रदेश; मृत्यु: 18 सितंबर, 1995) भारत के प्रसिद्ध हिन्दी हास्य कवि थे। उन्हें हिन्दी हास्य व्यंग्य कविताओं का पर्याय माना जाता है। काका हाथरसी की शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही थी, वर्तमान में भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका …
Read More »काका हाथरसी के दोहे
सन १९०६ में हाथरस में जन्मे काका हाथरसी (असली नाम: प्रभुनाथ गर्ग) हिंदी व्यंग्य के मूर्धण्य कवि थे। उनकी शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही, आज भी अनेकों लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। व्यंग्य का मूल उद्देश्य लेकिन मनोरंजन नहीं …
Read More »चांद पर मानव: काका हाथरसी
This poem was written by Kaka Hathrasi, when man had for the first time reached on moon. Big deal! Many thought. चांद पर मानव: काका हाथरसी ठाकुर ठर्रा सिंह से बोले आलमगीर पहुँच गये वो चाँद पर, मार लिया क्या तीर मार लिया क्या तीर, लौट पृथ्वी पर आये किये करोड़ों खर्च, कंकड़ी मिट्टी लाये ‘काका’, इससे लाख गुना अच्छा …
Read More »कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ: काका हाथरसी
Here is an excerpt from a very funny and at a time very popular poem of Kaka Hathrasi. See Kakas advice on how to raise the standard of your life! प्रकृति बदलती क्षण-क्षण देखो, बदल रहे अणु, कण-कण देखो। तुम निष्क्रिय से पड़े हुए हो। भाग्य वाद पर अड़े हुए हो। छोड़ो मित्र! पुरानी डफली, जीवन में परिवर्तन लाओ। परंपरा …
Read More »Kaka Hathrasi Hasya Kavita प्रसिद्धि प्रसंग
काशीपुर क्लब में मिले, कवि–कोविद अमचूर चर्चा चली कि कहाँ की कौन चीज़ मशहूर कौन चीज़ मशहूर, पश्न यह अच्छा छेड़ा नोट कीजिए है प्रसिद्ध मथुरा का पेड़ा। आत्मा–परमात्मा प्रसन्न हो जाएँ काका लड्डू संडीला के हों, खुरचन खुरजा का। अपना–अपना टेस्ट है, अपना–अपना ढंग रंग दिखाती अंग पर हरिद्वार की भंग। हरिद्वार की भंग, डिजाइन नए निराले जाते देश–विदेश, …
Read More »काका और मच्छर – काका हाथरसी Hindi Poem on Mosquitoes
काका वेटिंग रूम में, फँसे देहरा–दून नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें खून मच्छर चूसें खून, देह घायल कर डाली हमें उड़ा ले जाने की योजना बना ली किंतु बच गये कैसे, यह बतलाएँ तुमको? नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था हमको! हुई विकट रस्साकशी, थके नहीं रणधीर ऊपर मच्छर खींचते, नीचे खटमल वीर नीचे खटमल वीर, जान …
Read More »दाढ़ी महिमा – काका हाथरसी
‘काका’ दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा दाढ़ी से ही प्रगति कर गए संत बिनोवा मुनि वसिष्ठ यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखाते तो भगवान राम के क्या वे गुरू बन जाते? शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोर लेनिन, लिंकन बन गए जनता के सिरमौर जनता के सिरमौर, …
Read More »काका की अमरीका यात्रा – काका हाथरसी
काका कवि पाताल को चले तरुण के संग अंग-अंग में भर रहे, हास्य व्यंग के रंग हास्य व्यंग के रंग, प्रथम अमरीका आए नगर-नगर में हंसी-ख़ुशी के फूल खिलाये कविता सुनकर मस्त हो गए सबके चोला कोका-कोला पर चढ़ बैठा काका-कोला। ठहरे जिन-जिन घरों में, दिखे अनोखे सीन बाथरूम में भी वहां, बिछे हुए कालीन बिछे हुए कालीन, पैंट ने …
Read More »स्त्रीलिंग पुल्लिंग – काका हाथरसी
काका से कहने लगे ठाकुर ठर्रा सिंह दाढ़ी स्त्रीलिंग है, ब्लाउज़ है पुल्लिंग ब्लाउज़ है पुल्लिंग, भयंकर गलती की है मर्दों के सिर पर टोपी पगड़ी रख दी है कह काका कवि पुरूष वर्ग की किस्मत खोटी मिसरानी का जूड़ा, मिसरा जी की चोटी। दुल्हिन का सिन्दूर से शोभित हुआ ललाट दूल्हा जी के तिलक को रोली हुई अलॉट रोली …
Read More »जीवन दर्शन – काका हाथरसी
मोक्ष मार्ग के पथिक बनो तो मेरी बातें सुनो ध्यान से, जीवन–दर्शन प्राप्त किया है मैने अपने आत्मज्ञान से। लख चेोरासी योेनि धर कर मानव की यह पाई काया, फिर क्यों व्रत, उपवास करूँ मैं इसका समाधान ना पाया। इसलिए मैं कभी भूलकर व्रत के पास नहीं जाता हूँ, जिस दिन एकादश होती है उस दिन और अधिक खाता हूँ। …
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