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कवि कभी मरा नहीं करता – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

कवि कभी मरा नहीं करता सो जाते हैं अहसास मातृप्राय हो जाते हैं वो तंतु जो सोचा करते हैं सूरज से आगे की सागर से नीचे की वो सोच, जिसने मेघदूत को जन्म दिया वो कभी मरा नहीं करती मर जाते है वो अरमान जब ध्वस्त होते हैं सपनों के किले कवि कभी मरा नहीं करता वह ज़िंदा रखता है …

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मंगलम कोसलेन्ड़ृअय

मंगलम कोसलेन्ड़ृअय — Kosalendraya , Mahaneeya Gunabhdhaye Kosalendraya , Mahaneeya Gunabhdhaye, Chakravarthi Thanujaaya Sarva Bhoumaya Mangalam. 1 (Let good happen to , Rama , Who is the king of Kosala, And the ocean of good qualities. Let good happen to Rama, Who is son of emperor Dasaratha, And who is a very great king.) Vedavedantha Vedhyaya , Megha Shyamala Moorthaye, …

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क्यों ऐसा मन में आता है – दिविक रमेश

जब भी देखूं कोई ठिठुरता, मन में बस ऐसा आता है। ढाँपू उसको बन कर कम्बल, सोच के मन खुश हो जाता है। मत बनूँ बादाम या पिस्ता, मूंगफली ही मैं बन जाऊं। जी में तो यह भी आता है, कड़क चाय बन उनको भाऊं। बन कर थोड़ी धुप सुहानी, उनके आँगन में खिल जाऊं। गरम-गरम कर उसके तन को, …

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किताबें कुछ कहना चाहती हैं – सफ़दर हाश्मी

किताबें करती हैं बातें बीते ज़मानों की दुनिया की, इंसानों की आज की, कल की एक-एक पल की ख़ुशियों की, ग़मों की फूलों की, बमों की जीत की, हार की प्यार की, मार की क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें? किताबें कुछ कहना चाहती हैं। तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥ किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं किताबों में खेतियाँ …

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क्यों नहीं देखते – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

जब रास्ता तुम भटक जाते हो क्यों नहीं देखते इन तारों की तरफ ये तो विद्यमान हैं हर जगह इन्हे तो पता हैं सारे मार्ग जब आक्रोश उत्त्पन्न होता है तुम्हारे हृदय में वेदना कसकती है और क्रोध किसी को जला डालना चाहता है क्यों नहीं देखते सूरज की तरफ ये भी नाराज़ है बरसों से पता नहीं किस पर …

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किताब – हिमानी जैन

जब कोई दोस्त हो हमारे खिलाफ, तो मदद करती हैं कुछ किताब, जब हो हमारे इम्तिहान पास, तो मदद मिलती है इनसे ख़ास। जब कोई हमसे हो नाराज, तो पढ़ती हूँ किताबों से बेहतरीन राज, तो फिर हर दोस्त बन जाता है, मेरा दोस्त खास। किताब ही है हमारी एक दोस्त, जो आती हमारे काम हर रोज़, सरस्वती माँ का …

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लाला जी ने केला खाया

लाला जी ने केला खाया, केला खाकर मुँह बिचकाया। मुँह बिचकाकर तोंद फुलाई, तोंद फुलाकर छड़ी उठाई। छड़ी उठाकर कदम बढ़ाया, कदम के नीचे छिलका आया। लाला जी तब गिरे धड़ाम, मुँह से निकला हाय राम !

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मान जाओ – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

मुझे बहुत डर लगता है तुम यूँ ही रूठ जाया न करो कितना तड़पाता है ये मुझको ऐसे दूर जाया न करो। ऐसे ही मैं कुछ कह देता हूँ दिल पर तुम लगाया न करो स्नेह तो मैं भी करता हूँ फिर भी, ……चलो अब छोड़ो ……… बस अब मान जाओ। ∼ गगन गुप्ता ‘स्नेह’

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धुंधले सपने – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

मेरे कैनवास पर कुछ धुंधले से चित्र उकर आए हैं यादों में बसे कुछ अनछुए से साए हैं तूलिका, एक प्लेट में कुछ रंग लाल, पीला, नीला, सफेद… मेरे सामने पड़े हैं और ये कह हैं रहे भर दो इन्हें चित्रों में और खोल लो आज दिल की तहें। अगर मैं लाल रंग उठाता हूं तो बरबस मां का ध्यान …

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