चारु चंद्र की चंचल किरणें: Here is an excerpt from the famous poem Panchvati by Maithili Sharan Gupt. The description is of the cottage in Panchvati forest that was the abode of Ram, Laxman and Sita during the terminal year of their 14 years banvas. As Ram and Sita sleep inside, Laxman is on guard outside. This poem further goes on …
Read More »जयद्रथ वध: राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त
जयद्रथ वध: मैथिली शरण गुप्त जी के काव्य में मानव-जीवन की प्रायः सभी अवस्थाओं एवं परिस्थितियों का वर्णन हुआ है। अतः इनकी रचनाओं में सभी रसों के उदाहरण मिलते हैं। प्रबन्ध काव्य लिखने में गुप्त जी को सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई है। मैथिली शरण गुप्त जी की प्रसिद्ध काव्य-रचनाएँ – साकेत, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, पंचवटी, जयद्रथ-वध, भारत-भारती, आदि हैं। भारत …
Read More »मातृभूमि: Rashtrakavi Maithili Sharan Gupt Classic Desh Prem Poem
मातृभूमि: राष्ट्रकवि मैथिलि शरण गुप्त जी की देशप्रेम कविता नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है। सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥ नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं। बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है॥ करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की। हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥ जिसके रज में लोट-लोट कर बड़े हुये हैं। घुटनों …
Read More »विजय भेरी: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त देश प्रेम कविता
Here is an old classic poem by Rashtra Kavi Mathilisharan Gupt, praising the great and ancient motherland India. विजय भेरी: देश प्रेम कविता जीवन रण में फिर बजे विजय की भेरी। भारत फिर भी हो सफल साधना तेरी। आत्मा का अक्षय भाव जगाया तू ने, इस भाँति मृत्यु भय मार भगाया तू ने। है पुनर्जन्म का पता लगाया तू ने, …
Read More »हमारा अतीत (भारत–भारती से): मैथिली शरण गुप्त
Bharat-Bharati is a classic Maha-Kavya (epic) written by Rashtra Kavi Methili Sharan Gupt. It traces the rise and fall of Indian civilization and gives prescription for regaining the heights that the civilization had once achieved in the past. The book has three chapters on the past, present and future of India. There are 703 verses in all. I have presented …
Read More »माँ कह एक कहानी – मैथिली शरण गुप्त – Inspirational Bedtime Poem
“माँ कह एक कहानी।” बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी? “कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी? माँ कह एक कहानी।” “तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे, तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभी मनमानी।” “जहाँ सुरभी मनमानी। हाँ माँ यही …
Read More »साकेत: कैकेयी का पश्चाताप – मैथिली शरण गुप्त – Kaikeyi’s Remorse
“यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को।” चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी स्वर को। बैठी थी अचल तदापि असंख्यतरंगा, वह सिन्हनी अब थी हहा गोमुखी गंगा। “हाँ, जानकर भी मैंने न भरत को जाना, सब सुनलें तुमने स्वयम अभी यह माना। यह सच है तो घर लौट चलो तुम भैय्या, अपराधिन मैं हूँ तात्, तुम्हारी मैय्या।” “यदि …
Read More »जीवन की ही जय है – मैथिली शरण गुप्त
मृषा मृत्यु का भय है जीवन की ही जय है जीव की जड़ जमा रहा है नित नव वैभव कमा रहा है पिता पुत्र में समा रहा है यह आत्मा अक्षय है जीवन की ही जय है नया जन्म ही जग पाता है मरण मूढ़-सा रह जाता है एक बीज सौ उपजाता है सृष्टा बड़ा सदय है जीवन की ही …
Read More »गाय (भारत–भारती से) – मैथिली शरण गुप्त
है भूमि बन्ध्या हो रही, वृष–जाति दिन भर घट रही घी दूध दुर्लभ हो रहा, बल वीय्र्य की जड़ कट रही गो–वंश के उपकार की सब ओर आज पुकार है तो भी यहाँ उसका निरंतर हो रहा संहार है दाँतों तले तृण दाबकर हैं दीन गायें कह रहीं हम पशु तथा तुम हो मनुज, पर योग्य क्या तुमको यही? हमने …
Read More »सिरमौर (भारत-भारती से) – मैथिली शरण गुप्त
हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है भगवान की भव–भूतियों का यह प्रथम भंडार है विधि ने किया नर–सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है यह ठीक है पश्चिम बहुत ही कर रहा उत्कर्ष है पर पूर्व–गुरु उसका यही पुरु वृद्ध भारतवर्ष है जाकर विवेकानंद–सम कुछ साधु जन इस देश से …
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