मै तेरा गुनेहगार हूँ माँ मै तुझे भूल गया उन झूठे रिश्तो के लिए जो मैंने बाहर निभाए उन झूठे नातो के लिए जो मेरे काम ना आये मै तेरा गुनेहगार हूँ माँ बॉस के कुत्ते को कई बार डॉक्टर को दिखाना पड़ा पुचकार कर उसे खुद अपना हाथ भी कटवाना पड़ा पर तेरा चश्मा न बनवा पाया तुझे दवा …
Read More »विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष बाल कहानी: बंटी की दादी
ना जाने कहाँ छुपा बैठा हैं ये, रोज का इसका यह तमाशा हैं… आवाज़ लगा लगा कर तो मेरा गला दुःख गया हैं… मीनू उसे ढूंढते हुए बगीचे तक आ गई थी। आम के पेड़ के पीछे छुपे बैठे तीन साल के बंटी को देखकर मीनू का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया था। उसने ना आव देखा ना ताव …
Read More »नन्हे छोटू की बड़ी कहानी: मानवाधिकार पर बाल-कहानी
सर्दी की छुट्टियाँ आ गई थी और रिमझिम के तो खुशी के मारे पैर ज़मीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। उसके पापा उसे उसकी बेस्ट फ्रैंड स्वाति के घर छोड़ने के लिए तीन दिन के लिए तैयार हो गए थे। रिमझिम और स्वाति एक दूसरे के साथ जी भर कर मस्ती करना चाहती थी, इसलिए दोनों ही बहुत खुश …
Read More »अधर-अधर पर हो मुस्कानें: डॉ. मंजरी शुक्ला
अभिनव राहें नवल सुपथ हो नूतन वर्षाभिनंदन। यहीं शुभेच्छा नव आशाओं से पूरित हो हर जीवन। तिमिर तिरोहित करता उज्ज्वल संकल्पों का दीप जले। उर अन्तस में सदा सर्वदा शुभम सुमंगल भाव पले। हृदय शुद्धि ही प्रबल प्रेरणा बन छाए मानस प्रतिक्षण। यहीं प्रेरणा नव आशाओं से पूरित हो हर जीवन। अभिनव राहें नवल सुपथ हो नूतन वर्षाभिनंदन। यहीं शुभेच्छा …
Read More »न्यू ईयर रिजोल्यूशन: मंजरी शुक्ला
सुना है, इस बार नए साल पर सागर की मम्मी ने उसे एक जादुई मेज लाकर दी है – बिन्नी बोली। क्या कह रही हो, जादुई मेज – अमित बोला। और क्या देखा नहीं, उस मेज के आने के बाद से अब सागर कितना बदल गया है? हाँ… वो तो है… पढ़ाकू राम बन गया है अपना सागर तो… नेहा …
Read More »नवरात्र का बदलता स्वरुप: मंजरी शुक्ला
“वंदे भूतेश मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नम नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।” हिंदू संस्कृति में मातृ स्थान प्रथम है। सनातन आदि काल से नवरात्र पूजा चली आ रही है। पितृपक्ष की समाप्ति के दूसरे ही दिन कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की आराधना प्रारंभ हो जाती हैं। दुर्गा पूजा का पर्व भारतीय सांस्कृतिक पर्वों में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है। …
Read More »गुरु दक्षिणा – डॉ. मंजरी शुक्ला
शब्दों से क्या होता हैं वो तो मुँह से निकलते हैं और ब्रह्मांड में विलीन हो जाए हैं। अगर हम चाहे तो हम पर असर करते हैं वरना अगर हम कर्ण जैसा कवच बहरेपन का कस कर अपने कानों से चिपका ले तो मौज ही मौज हैं… आखिर बेचारा सामने वाला भी कितना बकर बकर करेगा, खुद ही चल देगा …
Read More »राखी – मंजरी शुक्ला
जब भी टूटू आस पड़ोस के दोस्तों के हाथों में रंगबिरंगी राखियाँ सजी हुई देखता तो अचानक ही उदास हो जाता। उसका रुँआसा चेहरा देखकर उसकी मम्मी भी दुखी हो जाती और हर साल की तरह उसे समझाती – “मुझे पता हैं कि तुझे कोई राखी बाँधने वाला नहीं हैं पर तू इस तरह से त्यौहार के दिन उदास बैठा …
Read More »दोस्ती – मंजरी शुक्ला Distrust in Friendship
रविवार के दिन का सभी बच्चों को बेसब्री से इंतज़ार रहता था। आख़िर रहे भी क्यों ना, दादाजी की मज़ेदार कहानियाँ उन्हें इसी दिन तो आराम से बैठकर सुनने को मिलती थी। जैसे ही शाम के चार बजे, सभी बच्चे दौड़कर उनके घर पहुँच गए। हमेशा की तरह दादाजी ने उन सबका हाल चाल पूछा, पर शांतनु एक कोने में …
Read More »प्रायश्चित Heart-rending Story of Repentance
ज़रूरी नहीं है कि जैसे सपने कभी सच हो जाते हैं और उनींदी पलकों पर मोती बनकर ठहर जाते हैं, वैसे ही आँखें खोलने पर भी मुमकिन हो जाए। सत्य और असत्य का रिश्ता भी बहुत गहरा होता है। अपने आत्मविश्वास के साथ पूरे मन से अगर कोई असत्य बात भी कहता है, तो वह सत्य प्रतीत होती है। मेरे …
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