कहां तो सत्य की जय का ध्वजारोहण किया था‚ कहां अन्याय से नित जूझने का प्रण लिया था‚ बुराई को मिटाने के अदम उत्साह को ले‚ तिमिर को दूर करने का तुमुल घोषण किया था। बंधी इन मुठ्ठियों में क्यों शिथिलता आ रही है? ये क्यों अब हाथ से तलवार फिसली जा रही है? निकल तरकश से रिपुदल पर बरसने …
Read More »मदारी का वादा – राजीव कृष्ण सक्सेना
बहुत तेज गर्मी है आजा सुस्ता लें कुछ पीपल की छैयां में पसीना सुख लें कुछ थका हुआ लगता है मुझे आज बेटा तू बोल नहीं सकता पर नहीं छुपा मुझसे कुछ कितनी ही गलियों में कितने चुबारों में दिखलाया खेल आज कितने बाज़ारों में कितनी ही जगह आज डमरू डम डम बोला बंसी की धुन के संग घुमा तू …
Read More »क्या करूँ अब क्या करूँ – राजीव कृष्ण सक्सेना
माम को मैं तंग करूँ या डैड से ही जंग करूँ मैं दिन रहे सोता रहूँ फिर रात भर रोता रहूँ पेंट बुक दे दो जरा तो रंग कागज पर भरूँ या स्काइप को ही खोल दो तो बात नानी से करूँ मैं बाल खीचूं माम के की ले चलो बाहर मुझे या झूल जाऊं मैं गले से कोई ना …
Read More »पलायन संगीत – राजीव कृष्ण सक्सेना
अनगिनित लोग हैं कार्यशील इस जग में अनगिनित लोग चलते जीवन के मग में अनगिनित लोग नित जन्म नया पाते हैं अनगिनित लोग मर कर जग तर जाते हैं कुछ कर्मनिष्ठ जन कर्मलीन रहते हैं कुछ कर्महीन बस कर्महीन रहते हैं कुछ को जीवन में गहन मूल्य दिखता है कुछ तज कर्मों को मुक्त सहज बहते हैं इस महानाद में …
Read More »दीदी का भालू – राजीव कृष्ण सक्सेना
दीदी के कमरे में, दीदी संग रहते थे दीदी का कुत्ता भी, बंदर भी, भालू भी छोटी सी थी बिटिया, जब वे घर आए थे नन्हीं दीदी पा कर, बेहद इतराए थे वैसे तो रूई से भरे वे खिलौने थे दीदी की नजरों में प्यारे से छौने थे सुबह सुबह दीदी जब जाती बस्ता लेकर ऊंघते हुए तीनो अलसाते बिस्तर …
Read More »बातचीत की कला – राजीव कृष्ण सक्सेना
समाज से मेरा रिश्ता मेरी पत्नी के माध्यम से है सीधा मेरा कोई रिश्ता बन नहीं पाया है सब्जी वाला दूध वाला अखबार वाला धोबी हो या माली सबकी मेरी पत्नी से बातचीत होती रहती है बस मुझे ही समझ नहीं आता कि इन से बात करूँ तो क्या करूँ पर मेरी पत्नी सहज भाव से इन सब से खूब …
Read More »अरसे के बाद – राजीव कृष्ण सक्सेना
अरसे के बाद गगन घनदल से युक्त हुआ अरसे के बाद पवन फिर से उन्मुक्त हुआ अरसे के बाद घटा जम कर‚ खुल कर बरसी सोंधा–सोंधा सा मन धरती का तृप्त हुआ दूर हुए नभ पर लहराते कलुषित साए भूली मुस्कानों ने फिर से पर फैलाए बरसों से बन बन भटके विस्मृत पाहुन से बीते दिन लौट आज वापस घर …
Read More »आज्ञा – राजीव कृष्ण सक्सेना
प्रज्वलित किया जब मुझे कार्य समझाया पथिकों को राह दिखाने को दी काया मैंनें उत्तरदाइत्व सहज ही माना जो कार्य मुझे सौंपा था उसे निभाना जुट गया पूर्ण उत्साह हृदय में भर के इस घोर कर्म को नित्य निरंतर करते जो पथिक निकल इस ओर चले आते थे मेरी किरणों से शक्ति नई पाते थे मेरी ऊष्मा उत्साह नया भरती …
Read More »हमराही – राजीव कृष्ण सक्सेना
ओ मेरे प्यारे हमराही, बड़ी दूर से हम तुम दोनों संग चले हैं पग पर ऐसे, गाडी के दो पहिये जैसे। कहीं पंथ को पाया समतल कहीं कहीं पर उबड़-खाबड़, अनुकम्पा प्रभु की इतनी थी, गाडी चलती रही बराबर। कभी हंसी थी किलकारी थी कभी दर्द पीड़ा भारी थी, कभी कभी थे भीड़-झमेले कभी मौन था, लाचारी थी। रुके नहीं …
Read More »इक पल – राजीव कृष्ण सक्सेना
इक पल है नैनों से नैनों के मिलने का, बाकी का समय सभी रूठने मनाने का। इक पल में झटके से हृदय टूक-टूक हुआ, बाकी का समय नीर नैन से बहाने का। इक पल की गरिमा ने बुध्द किया गौतम को, बाकी का समय तपी ज़िंदगी बिताने का। पासों से पस्त हुए इक पल में धर्मराज, बाकी का समय कुरुक्षेत्र …
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