मन मेरा क्यों अनमन कैसा यह परिवर्तन क्यों प्रभु क्यों? डोर में, पतंगों में प्रकृति रूप रंगों में कथा में, प्रसंगों में कविता के छंदों में झूम–झूम जाता था, अब क्यों वह बात नही क्यों प्रभु क्यों? सागर तट रेतों में सरसों के खेतों में स्तब्ध निशा तारों के गुपचुप संकेतों में घंटों खो जाता था अब क्यों वह बात …
Read More »इंतजार – मनु कश्यप
जिंदगी सारी कटी करते करते इंतजार सिर्फ अब बढती उम्र मेँ इंतजार का एहसास ज्यादा है। इंतजार पहले भी था पर जवानी की उमंगों में वह कुछ छिप जाता था ज्यादा नजर नहीँ आता था पर अब छुपने वाला पर्दा गायब हो चुका है और अब घूरता है हमेँ शुबह शाम हर पल लगातार इंतजार। इच्छा है तो इंतजार है …
Read More »ज़िन्दगी की शाम – राजीव कृष्ण सक्सेना
कह नहीं सकता समस्याएँ बढ़ी हैं, और या कुछ घटा है सम्मान। बढ़ रही हैं नित निरंतर, सभी सुविधाएं, कमी कुछ भी नहीं है, प्रचुर है धन धान। और दिनचर्या वही है, संतुलित पर हो रहा है रात्रि का भोजन, प्रात का जलपान। घटा है उल्लास, मन का हास, कुछ बाकी नहीं आधे अधूरे काम। और वय कुछ शेष, बैरागी …
Read More »खिलौने ले लो बाबूजी – राजीव कृष्ण सक्सेना
खिलौने ले लो बाबूजी‚ खिलौने प्यारे प्यारे जी‚ खिलौने रंग बिरंगे हैं‚ खिलौने माटी के हैं जी। इधर भी देखें कुछ थोड़ा‚ गाय हाथी लें या घोड़ा‚ हरी टोपी वाला बंदर‚ सेठ सेठानी का जोड़ा। गुलाबी बबुआ हाथ पसार‚ बुलाता बच्चों को हर बार‚ सिपाही हाथ लिये तलवार‚ हरी काली ये मोटर कार। सजी दुल्हन सी हैं गुड़ियां‚ चमकते रंगों …
Read More »कछुआ जल का राजा है – राजीव कृष्ण सक्सेना
कछुआ जल का राजा है, कितना मोटा ताजा है। हाथ लगाओ कूदेगा, बाहर निकालो ऊबेगा। सबको डांट लगाएगा, घर का काम कराएगा। बच्चों के संग खेलेगा, पूरी मोटी बेलेगा। चाट पापड़ी खाएगा, ऊंचे सुर में गाएगा। ∼ राजीव कृष्ण सक्सेना
Read More »गर्मी और आम – राजीव कृष्ण सक्सेना
गर्मी आई लाने आम घर से निकले बुद्धूराम नहीं लिया हाथों में छाता गर्म हो गया उनका माथा दौड़े दौड़े घर को आए पानी डाला खूब नहाए फिर वो बोले हे भगवान कैसे लाऊं अब मैं आम? ∼ राजीव कृष्ण सक्सेना
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