दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना जहाँ नहीं चैना वहाँ नहीं रहना दुखी मन… दर्द हमारा कोई न जाने अपनी गरज के सब हैं दीवाने किसके आगे रोना रोएं देस पराया लोग बेगाने दुखी मन… लाख यहाँ झोली फैला ले कुछ नहीं देंगे इस जग वाले पत्थर के दिल मोम न होंगे चाहे जितना नीर बहाले दुखी मन… अपने लिये …
Read More »मन रे तू काहे न धीर धरे – साहिर लुधियानवी
मन रे तू काहे न धीर धरे वो निर्मोही मोह न जाने जिनका मोह करे इस जीवन की चढ़ती गिरती धूप को किसने बांधा रंग पे किसने पहरे डाले रूप को किसने बांधा काहे ये जतन करे मन रे तू काहे न धीर धरे उतना ही उपकार समझ कोई– जितना साथ निभा दे जनम मरण का मेल है सपना यह …
Read More »वो सुबह कभी तो आएगी – साहिर लुधियानवी
वो सुबह कभी तो आएगी। इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा जब अंबर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी वो सुबह कभी तो आएगी। जिस सुबह की खातिर युग युग से, हम सब मर मर कर जीते हैं जिस सुबह की अनृत की धुन …
Read More »कभी कभी – साहिर लुधियानवी
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि जिंदगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाओं में गुज़रने पाती तो शादाब भी हो सकती थी ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है तेरी नज़र की शुआओ में खो भी सकती थी अजब न था कि मैं बेगाना–ऐ–आलम रहकर तेरे जमाल की रानाइयों में खो रहता तेरा गुदाज़ बदन‚ तेरी नीम–बाज़ …
Read More »खून फिर खून है – साहिर लुधियानवी
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है खून फिर खून है टपकेगा तो जम जाएगा तुमने जिस खून को मक्तल में दबाना चाहा आज वह कूचा–ओ–बाज़ार में आ निकला है कहीं शोला, कहीं नारा, कहीं पत्थर बनकर खून चलता है तो रुकता नहीं संगीनों से सर उठाता है तो दबता नहीं आईनों से जिस्म की मौत कोई …
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