ये उड़ती रेत का सूखा समाँ अच्छा नहीं लगता मुझे मेरे खुदा अब ये जहाँ अच्छा नहीं लगता। बहुत खुश था तेरे घर पे‚ बहुत दिन बाद आया था वहाँ से आ गया हूँ तो यहाँ अच्छा नहीं लगता। वो रो–रो के ये कहता है मुहल्ले भर के लोगों से यहाँ से तू गया है तो यहाँ अच्छा नहीं लगता। …
Read More »क्रांति गीत – संतोष यादव ‘अर्श’
आ जाओ क्रांति के शहज़ादों, फिर लाल तराना गाते हैं… फूलों की शय्या त्याग–त्याग, हर सुख सुविधा से भाग–भाग, फिर तलवारों पर चलते हैं, फिर अंगारों पर सोते हैं, सावन में रक्त बरसाते हैं! फिर लाल तराना गाते हैं… मारो इन चोर लुटेरों को, काटो इन रिश्वतखोरों को, लहराव जवानी का परचम, लाओ परिवर्तन का मौसम, आओ बंदूक उगाते हैं! …
Read More »वही बोलें – संतोष यादव ‘अर्श’
सियासत के किले हरदम बनाते हैं, वही बोलें जो हर मसले पे कुछ न कुछ बताते हैं, वही बोलें। बचत के मामले में पूछते हो हम गरीबों से? विदेशी बैंकों में जिनके खाते हैं, वही बोलें। लगाई आग किसने बस्तियों में, किसने घर फूंके दिखावे में जो ये शोले बुझाते हैं, वही बोलें। मुसव्विर मैं तेरी तस्वीर की बोली लगाऊं …
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