वे तो पागल थे जो सत्य, शिव, सुंदर की खोज में अपने–अपने सपने लिये नदियों, पहाड़ों, बियाबानों, सुनसानों मे फटे–हाल भूखे प्यासे, टकराते फिरते थे, अपने से जूझते थे, आत्मा की आज्ञा पर मानवता के लिये, शिलाएँ, चट्टानें, पर्वत काट–काट कर मूर्तियाँ, मन्दिर, और गुफाएँ बनाते थे। किंतु ऐ दोस्त! इनको मैं क्या कहूँ, जो मौत की खोज में अपनी–अपनी …
Read More »जब जब सिर उठाया – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
जब-जब सिर उठाया अपनी चौखट से टकराया। मस्तक पर लगी चोट, मन में उठी कचोट, अपनी ही भूल पर मैं, बार-बार पछताया। जब-जब सिर उठाया अपनी चौखट से टकराया। दरवाजे घट गए या मैं ही बडा हो गया, दर्द के क्षणों में कुछ समझ नहीं पाया। जब-जब सिर उठाया अपनी चौखट से टकराया। “शीश झुका आओ” बोला बाहर का आसमान, …
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