मुझे फिर बुलातीं हैं मुस्काती रातें, वो छोटे शहर की बड़ी प्यारी बातें। चंदा की फाँकों का हौले से बढ़ना, जामुन की टहनी पे सूरज का चढ़ना। कड़कती दोपहरी का हल्ला मचाना, वो सांझों का नज़रें चुरा बेर खाना। वहीं आ गया वक्त फिर आते जाते, ले फूलों के गहने‚ ले पत्तों के छाते। बहना का कानों में हँस फुसफुसाना, …
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