पुण्य पर्व पन्द्रह अगस्त: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (1915-2002) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और शिक्षाविद थे। उनकी मृत्यु के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा, “डॉ. शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली चिह्न ही नहीं थे, बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। उन्होंने न केवल अपनी भावनाओं का …
Read More »धन्यवाद: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला उस उस राही का धन्यवाद। जीवन अस्थिर अनजाने ही हो जाता पथ पर मेल कहीं सीमित पगडग, लम्बी मंजिल तय कर लेना कुछ खेल नहीं दाएं बाएं सुख दुख चलते सम्मुख चलता पथ का प्रमाद जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला उस उस राही का धन्यवाद। सांसों पर अवलंबित काया जब चलते चलते चूर …
Read More »तूफानों की ओर घुमा दो नाविक – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार आज सिन्धु ने विष उगला है लहरों का यौवन मचला है आज हृदय में और सिन्धु में साथ उठा है ज्वार तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार लहरों के स्वर में कुछ बोलो इस अंधड में साहस तोलो कभी-कभी मिलता जीवन में तूफानों का प्यार तूफानों की ओर घुमा दो …
Read More »बात बात में – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे क्षण भी आ जाते हैं जब हम अपने से ही अपनी–बीती कहने लग जाते हैं। तन खोया–खोया–सा लगता‚ मन उर्वर–सा हो जाता है कुछ खोया–सा मिल जाता है‚ कुछ मिला हुआ खो जाता है। लगता‚ सुख दुख की स्मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूं यों ही सूने में अंतर के कुछ भाव–अभाव सुना …
Read More »पथ भूल न जाना – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
पथ भूल न जाना पथिक कहीं पथ में कांटे तो होंगे ही दुर्वादल सरिता सर होंगे सुंदर गिरि वन वापी होंगे सुंदरता की मृगतृष्णा में पथ भूल न जाना पथिक कहीं। जब कठिन कर्म पगडंडी पर राही का मन उन्मुख होगा जब सपने सब मिट जाएंगे कर्तव्य मार्ग सन्मुख होगा तब अपनी प्रथम विफलता में पथ भूल न जाना पथिक …
Read More »मिट्टी की महिमा – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
निर्मम कुम्हार की थापी से कितने रूपों में कुटी-पिटी, हर बार बिखेरी गई, किंतु मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी। आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए, यों तो बच्चों की गुडिया सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या आँधी आये तो उड़ जाए, पानी बरसे तो …
Read More »मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार पथ ही मुड़ गया था। गति मिली मैं चल पड़ा पथ पर कहीं रुकना मना था, राह अनदेखी, अजाना देश संगी अनसुना था। चांद सूरज की तरह चलता न जाना रात दिन है, किस तरह हम तुम गए मिल आज भी कहना कठिन है, तन न आया मांगने अभिसार मन ही जुड़ गया था। देख …
Read More »हम पंछी उन्मुक्त गगन के – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएंगे, कनक–तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे। हम बहता जल पीनेवाले मर जाएँगे भूखे–प्यासे, कहीं भली है कटुक निबोरी कनक–कटोरी की मैदा से। स्वर्ण–श्रृंखला के बंधन में अपनी गति, उड़ान सब भूले, बस सपनों में देख रहे हैं तरू की फुनगी पर के झूले। ऐसे थे अरमान कि उड़ते नील गगन …
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