प्रताप की प्रतिज्ञा: श्याम नारायण पांडेय – Man Singh, a Rajput, ( “Maan” in first line of third stanza) had aligned with Emperor Akbar of Delhi and had attacked Rana Pratap’s kingdom of Mewar. Rana Pratap kept fighting and resisting this assault. His velour and that of his legendary horse “Chetak” has been immortalized by famous poet Shyam Narayan Pandey in …
Read More »चेतक की वीरता: श्याम नारायण पाण्डेय
चेतक की वीरता – महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की यशोगाथा गाती श्याम नारायण पाण्डेय की कविता। श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म आजमगढ के डुमराँव गाँव में हुआ। इन्होंने काशी से साहित्याचार्य किया। पाण्डेयजी वीर रस के अनन्य गायक हैं। इन्होंने चार महाकाव्य रचे, जिनमें ‘हल्दीघाटी और ‘जौहर विशेष चर्चित हुए। ‘हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप के जीवन और ‘जौहर में रानी …
Read More »वीर सिपाही: श्याम नारायण पाण्डेय की वीर रस कविता
Here is another excerpt from “” the great Veer-Ras Maha-kavya penned by Shyam Narayan Pandey. Here is a description of a soldier fighting for the Motherland. वीर सिपाही: वीर रस कविता भारत-जननी का मान किया, बलिवेदी पर बलिदान किया अपना पूरा अरमान किया, अपने को भी कुर्बान किया रक्खी गर्दन तलवारों पर थे कूद पड़े अंगारों पर, उर ताने शर-बौछारों पर …
Read More »हल्दीघाटी: पंचदश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
Shyam Narayan Pandey (1907 – 1991) was an Indian poet. His epic Jauhar, depicting the self-sacrifice of Rani Padmini, a queen of Chittor, written in a folk style, became very popular in the decade of 1940-50. पंचदश सर्ग: सगपावस बीता पर्वत पर नीलम घासें लहराई। कासों की श्वेत ध्वजाएं किसने आकर फहराई? ॥१॥ नव पारिजात–कलिका का मारूत आलिंगन करता कम्पित–तन …
Read More »राणा प्रताप की तलवार: श्याम नारायण पाण्डेय जी का वीर रस काव्य
श्याम नारायण पाण्डेय (1907 – 1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे। आरम्भिक शिक्षा के बाद आप संस्कृत अध्ययन के लिए काशी चले आये। यहीं रहकर काशी विद्यापीठ से आपने हिन्दी में साहित्याचार्य किया। द्रुमगाँव (डुमराँव) में अपने घर पर रहते …
Read More »हल्दीघाटी: झाला का बलिदान – श्याम नारायण पांडेय
It is said that the Mughals were humbled in victory that day at Haldighati and Rana obtained a glorious defeat. Man Singh narrowly escaped the spear of Rana. Mughals by far out numbers Rana’s men. Tired and wounded Rana was headed for a certain death. At that juncture, a valiant warrior in Rana’s army, named Jhala came to his rescue. …
Read More »हल्दीघाटी: अष्टादश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
अष्टादश सर्ग : मेवाड़ सिंहासन यह एकलिंग का आसन है, इस पर न किसी का शासन है। नित सिहक रहा कमलासन है, यह सिंहासन सिंहासन है ॥१॥ यह सम्मानित अधिराजों से, अर्चत है, राज–समाजों से। इसके पद–रज पोंछे जाते भूपों के सिर के ताजों से ॥२॥ इसकी रक्षा के लिए हुई कुबार्नी पर कुबार्नी है। राणा! तू इसकी रक्षा कर …
Read More »हल्दीघाटी: सप्तदश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
सप्तदश सर्ग: सगफागुन था शीत भगाने को माधव की उधर तयारी थी। वैरी निकालने को निकली राणा की इधर सवारी थी ॥१॥ थे उधर लाल वन के पलास, थी लाल अबीर गुलाल लाल। थे इधर क्रोध से संगर के सैनिक के आनन लाल–लाल ॥२॥ उस ओर काटने चले खेत कर में किसान हथियार लिये। अरि–कण्ठ काटने चले वीर इस ओर …
Read More »हल्दीघाटी: षोडश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
षोडश सर्ग: सगथी आधी रात अंधेरी तम की घनता थी छाई। कमलों की आंखों से भी कुछ देता था न दिखाई ॥१॥ पर्वत पर, घोर विजन में नीरवता का शासन था। गिरि अरावली सोया था सोया तमसावृत वन था ॥२॥ धीरे से तरू के पल्लव गिरते थे भू पर आकर। नीड़ों में खग सोये थे सन्ध्या को गान सुनाकर ॥३॥ …
Read More »हल्दीघाटी: चतुर्दश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
चतुर्दश सर्ग: सगरजनी भर तड़प–तड़पकर घन ने आंसू बरसाया। लेकर संताप सबेरे धीरे से दिनकर आया ॥१॥ था लाल बदन रोने से चिन्तन का भार लिये था। शव–चिता जलाने को वह कर में अंगार लिये था ॥२॥ निशि के भीगे मुरदों पर उतरी किरणों की माला। बस लगी जलाने उनको रवि की जलती कर–ज्वाला ॥३॥ लोहू जमने से लोहित सावन …
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