Surinder Kumar Arora

हरियाणा स्थित जगाधरी में जन्मे सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा 32 वर्ष तक दिल्ली में जीव-विज्ञान के प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहने के उपरांत सेवानिवृत हुए हैं तथा वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लघुकथा, कहानी, बाल - साहित्य, कविता व सामयिक विषयों पर लेखन में संलग्न हैं। आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, यथा “आज़ादी”, “विष-कन्या”, “तीसरा पैग” (सभी लघुकथा संग्रह), “बन्धन-मुक्त तथा अन्य कहानियाँ” (कहानी संग्रह), “मेरे देश की बात” (कविता संग्रह), “बर्थ-डे, नन्हे चाचा का” (बाल-कथा संग्रह) आदि। इसके अतिरिक्त कई पत्र-पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित होती रही हैं तथा आपने कुछ पुस्तकों का सम्पादन भी किया है। साहित्य-अकादमी (दिल्ली) सहित कई संस्थाओं द्वारा आपकी कई रचनाओं को पुरुस्कृत भी किया गया है। डी - 184 , श्याम पार्क एक्स्टेनशन, साहिबाबाद - 201005 ( ऊ . प्र.) मो.न. 09911127277 (arorask1951@yahoo.com)

देव-कन्या: नर्स और मरीज की एक प्रेरणादायक कहानी

Dev kanya

“लगता है जिन्दगी और मौत के बीच का फासला बहुत कम है…!” “ऐसा मत बोलो… जन्म हो या मृत्यु, जो कुछ ऊपर वाले ने लिख दिया वह होना तय है, घबराने से कुछ नहीं मिलता! जिन्दगी के साथ सुख-दुःख तो लगे ही रहते हैं।” “और तो कुछ नहीं, बस छोटी का विवाह मेरे सामने हो जाता फिर भले ही चला …

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साथ – साथ – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

साथ - साथ - सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

तुम सामने होती हो तो शब्द रुक जाते हैं तुम औझल होती हो तो वही शब्द प्रवाह बन जाते हैं तुम बोलती हो तो प्रश्न उठते हैं कि क्या बोलूं तुम बोलते हुए रूक जाती हो तो अनसुलझे सवाल मेरी उलझन में समा जाते हैं तुम चहकती हो तो पूनमी रात का चाँद धवल चांदनी सा फ़ैल जाता है तुम …

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प्यार की अभिलाषा – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

प्यार की अभिलाषा - सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

होती जो देह प्यार की परिभाषा, तो कोठों की कहानी कुछ और होती। बनते जो अधर ह्रदय की अभिलाषा, तो घर की रवानी कुछ और होती। होता जो प्यार कोई भौतिक चमचमाहट, तो ऊँची मीनारे न कभी धूल में मिलतीं। होता जो प्यार ऐश्वर्य कि तमतमाहट, तो महलों कि दीवारें खण्डहर न बनतीं। देह से अलग प्यार तो नैसर्गिक आराधना …

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भीगी पलकें – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

भीगी पलकें - सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

सलवटों के सवंरने का जरिया होतीं हैं भीगी पलकें रुके हुए पानी को तीव्र धारा में बदल देतीं  हैं भीगी पलकें अमावस की रात में पूनम का चाँद बनतीं  हैं भीगी पलकें उतर आई  उदासी को, निकल जाने देती हैं  भीगी पलकें बिखरी हुई घटाओं को घने बादलों में बदलती हैं भीगी पलकें रुकी हुई हवाओं को समीर की गति …

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मज़बूती – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

मज़बूती – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

आतंकवाद, अपराध और फिरौती की घटनाओं से शहर और प्रदेश की हवा भय और असुरक्षा की आंधी में बदल चुकी थी। हर दिन किसी न किसी वारदात से लोग सहमें हुऐ थे। वे भूल गये थे कि प्रदेश में सरकार या पुलिस भी है। वे चाहने लगे थे कि शीघ्र चुनाव हो और सत्ता उर्जावान, ईमानदार नई पौध को सौंप …

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न होते तुम, तो क्या होता – सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

न होते तुम, तो क्या होता… न होता कहीं सावन, न होता कहीं उपवन, न होता कहीं समर्पण, न होता कहीं आलिंगन। न होती कहीं रुठन, न होती कहीं अड़चन, न होती कहीं अनबन, न होती कहीं मनावन। न खिलते कहीं फूल, न होते कहीं शूल, न होती कहीं अमराई, न मन लेता अंगड़ाई। न बदरा बनते बौझार, न झरना …

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