पूरा नाम: | डा. केशव राव बलीराम हेडगेवार (Keshav Rao Baliram Hedgewar) अन्य नाम: डॉक्टर जी |
जन्म: | 01 अप्रैल, 1889; नागपुर, महाराष्ट्र |
मृत्यु: | 21 जून, 1940; नागपुर |
परिवार: | पिता: पंडित बलिराम पंत हेडगेवार; माता: रेवतीबाई; भाई: महादेव पंत और सीताराम पंत |
प्रसिद्धि: |
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उन्होंने 1925 में विजय दशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) की स्थापना की थी, लेकिन इसे यह नाम एक वर्ष बाद दिया गया। इस संगठन के बारे में पहली घोषणा एक साधारण वाक्य – “मैं आज संघ (संगठन) की स्थापना की घोषणा करता हूं” के साथ की गई। इस संगठन को आरएसएस का नाम साल भर के गहन विचार-विमर्श और अनेक सुझावों के बाद दिया गया, जिनमें – भारत उद्धारक मंडल (जिसका अस्पष्ट अनुवाद – भारत को पुनर्जीवित करने वाला समाज) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शामिल थे।
इसका प्रमुख उद्देश्य आंतरिक झगड़ों का शिकार न बनने वाले समाज की रचना करना और एकजुटता कायम करना था, ताकि भविष्य में कोई भी हमें अपना गुलाम न बना सके। इससे पहले वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य और कांग्रेस के प्रसिद्ध नागपुर अधिवेशन के आयोजन के सह-प्रभारी रह चुके थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया था और आजादी के लिए जोशीले भाषण देने के कारण उन्हें एक साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।
वह अनुशीलन समिति के क्रांतिकारियों और उसके नेता पुलिन बिहारी बोस के साथ संबंधों के कारण भी ब्रिटेन के निशाने पर थे। लेकिन उन्हें अधिक प्रसिद्धि नहीं मिली और उनके जीवन के बारे में उन लोगों से भी कम जाना गया, जिनको उन्होंने सांचे में ढाला था और जो आगे चलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जानी-मानी हस्तियां बनें। आज भारत में अगर किसी संगठन द्वारा सेवाओं और परियोजनाओं का विशालतम नेटवर्क संचालित किया जा रहा है।
1910 में जब डॉक्टरी की पढाई के लिए कोलकाता गये तो उस समय वहा देश की नामी क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति से जुड़ गये। 1915 में नागपुर लौटने पर वह कांग्रेस में सक्रिय हो गये और कुछ समय में विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव बन गये। 1920 में जब नागपुर में कांग्रेस का देश स्तरीय अधिवेशन हुआ तो डा. केशव बलीराम हेडगेवार ने कांग्रेस में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता को लक्ष्य बनाने के बारे में प्रस्ताव प्रस्तुत किया तो तब पारित नही किया गया। 1921 में कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन में सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी और उन्हें एक वर्ष की जेल हुयी।
जीवनीकार के अनुसार स्कूली जीवन में ही छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पढ़कर बालक हेडगेवार के मन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विचारों के बीज पड़ गये थे। नागपुर के सीताबर्डी किले पर ब्रिटिश शासन का प्रतीक “यूनियन जैक” फहरता देख बालक हेडगेवार और उसके दोस्तों की आत्मसम्मान आहत होता था। हेडगेवार और उनके दोस्तों ने सोचा कि अगर यूनियन जैक को हटाकर वहां भगवा ध्वज फहरा दिया जाए तो किला फतह हो जाएगा।
सभी बच्चों ने अपनी मंशा को अंजाम देने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। किले पर हर दम पहरा रहता था इसलिए उन सबने तय किया कि वो पाठशाला से किले तक एक सुरंग बनायी जाएगी और उसके रास्ते अंदर घुसकर ब्रिटिश झंडा हटा दिया जाएगा। योजना बनते ही उस पर अमल भी शुरू हो गया। हेडगेवार और उनके दोस्त जिस वेदशाला में पढ़ते थे वो प्रसिद्ध विद्वान श्री नानाजी वझे के नेतृत्व में चल रही थी।
योजना के अनुरूप पढ़ाई के कमरे में बच्चों ने कुदाल-फावड़े से सुरंग खोदने का काम शुरू कर दिया। बच्चों की इस गुप्त योजना के परिणामस्वरूप नानाजी वझे के घर का पढ़ाई का कमरा कुछ ज्यादा ही बंद रहने लगा। कुछ दिनों बाद पढ़ाई के कमरे को अक्सर बंद देखकर नानाजी वझे को शंका हुई। अपनी शंका के निराकरण के लिए जब वो कमरे के अंदर गए तो वहां एक तरफ गड्ढा खुदा हुआ था और दूसरी तरफ मिट्टी का ढेर लगा था।
बडे भाई महादेव से प्रेरणा:
केशव के सबसे बड़े भाई महादेव भी शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता तो थे ही मल्ल-युद्ध की कला में भी बहुत माहिर थे। वे रोज अखाड़े में जाकर स्वयं तो व्यायाम करते ही थे गली-मुहल्ले के बच्चों को एकत्र करके उन्हें भी कुश्ती के दाँव-पेंच सिखलाते थे। महादेव भारतीय संस्कृति और विचारों का बड़ी सख्ती से पालन करते थे। केशव के मानस-पटल पर बडे भाई महादेव के विचारों का गहरा प्रभाव था। किन्तु वे बडे भाई की अपेक्षा बाल्यकाल से ही क्रान्तिकारी विचारों के थे। जिसका परिणाम यह हुआ कि वे डॉक्टरी पढ़ने के लिये कलकत्ता गये और वहाँ से उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से प्रथम श्रेणी में डॉक्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की; परन्तु घर वालों की इच्छा के विरुद्ध देश-सेवा के लिए नौकरी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। डॉक्टरी करते करते ही उनकी तीव्र नेतृत्व प्रतिभा को भांप कर उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया।
कांग्रेस और हिन्दू महासभा में भागीदारी:
सन् १९१६ के कांग्रेस अधिवेशन में लखनऊ गये। वहाँ संयुक्त प्रान्त (वर्तमान Uttar Pradesh) की युवा टोली के सम्पर्क में आये। बाद में आपका कांग्रेस से मोह भंग हुआ और नागपुर में संघ की स्थापना कर डाली। लोकमान्य तिलक की मृत्यु के बाद केशव कॉग्रेस और हिन्दू महासभा दोनों में काम करते रहे। गांधीजी के अहिंसक असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलनों में भाग लिया, परन्तु ख़िलाफ़त आंदोलन की जमकर आलोचना की।
अनुलेख:
राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ हिन्दू समाज को संगठित, अनुशासित एवं शक्तिशाली बनाकर खड़े करना अत्यन्त आवश्यक है। हिन्दू समाज के स्वार्थी जीवन, छुआछूत, ऊंच-नीच की भावना, परस्पर सहयोग की भावना की कमी, स्थानीय नेताओं के संकुचित दृष्टिकोण को वे एक भयंकर बीमारी मानते थे। इन सब बुराइयों से दूर होकर देश के प्रत्येक व्यक्ति को चरित्र निर्माण और देश सेवा के लिए संगठित करना ही संघ-शाखा का उद्देश्य है। हिन्दुत्व के साथ-साथ देशाभिमान का स्वप्न लेकर आज देश-भर में इसकी शाखाएं लगती हैं, जिसमें सेवाव्रती लाखों स्वयंसेवक संगठन के कार्य में जुटे हैं।