स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती की जीवनी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आर्यसमाज के संन्यासी व शिक्षा शास्त्री

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मौलाना की बेटी ने 12 साल की उम्र में छोड़ा घर, बन गई शांति देवी: स्वामी श्रद्धानंद के अभियान से हिरोइन तबस्सुम की माँ ने खुद को किया ‘शुद्ध’, चिढ़ गए इस्लामी कट्टरपंथी

12 साल की उम्र में अजहरी बेगम ने अपना घर छोड़ा और स्वामी श्रद्धानंद तक जा पहुँचीं। शुद्धि अभियान के तहत अजहरी बेगम का मार्गदर्शन हुआ और उनको शांति देवी नाम दिया गया।

When Tabassum’s Mother Azghari Begum Became Shanti Devi And Swami Shraddhand Was Shot Dead
When Tabassum’s Mother Azghari Begum Became Shanti Devi And Swami Shraddhand Was Shot Dead

सदी भर पहले भारत में ‘शुद्धि अभियान’ चलाकर धर्मांतरित लोगों को वापस से हिंदू धर्म में लाने की शुरुआत करने वाले स्वामी श्रद्धानंद को कुछ समय बाद गुजरे हुए 100 साल बीत जाएँगे। स्वामी श्रद्धानंद ने अपना पूरा जीवन जिस तरह इस्लामी धर्मांतरण के विरुद्ध आवाज उठाई थी उसके कारण उन्हें आज भी याद किया जाता है।

आज की स्थिति देख अंदाजा लगा सकते हैं कि उस दौर में इस्लामी ताकतों से लड़कर अपने धर्म की अलख जगाना कितना कठिन रहा होगा। ऐसा नहीं है कि उन्हें इस शुद्धि अभियान के कारण धमकियाँ नहीं आती थीं। 1915 में जब उन्होंने धर्म के प्रति लोगों को जगाना शुरू किया, उसकी के बाद से अक्सर इस्लामी ताकतें उन्हें अपने निशाने पर रखती थीं, लेकिन ये उनकी अपने धर्म के प्रति निष्ठा थी कि वो कभी पीछे नहीं हटे।

वैसे तो जाहिर है कि कई घटनाओं के कारण स्वामी श्रद्धानंद से कट्टरपंथी असुरक्षित महसूस करते होंगे, लेकिन एक घटना जिसका जिक्र बहुत कम सुनने को मिलता है आज हम उसे फिर साझा कर रहे हैं।

ये घटना टीवी जगत की जानी-मानी हस्ती तबस्सुम से जुड़ी है। तबस्सुम 80 के दशक में अपने शो ‘फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन’ के जरिए हर घर मशहूर हुई थी। 2022 में उनका निधन हुआ तो लोग उनकी आवाज और अंदाज को याद करने लगे। इसी दौरान उनके द्वारा बताई उनकी माँ की एक कहानी स्वराज्य पप सामने आई जिसके तार स्वामी श्रद्धानंद से जुड़े थे।

दरअसल, तबस्सुम की माँ का नाम अजहरी बेगम था जो कि एक मौलाना ताज मोहम्मद की बेटी थीं। शुरुआत में उन्हें तालीम के नाम पर कुरान को पढ़ाया गया, लेकिन अजहरी बेगम के मन में न जाने क्या आई, उन्होंने हिंदू धर्म के ग्रंथों को जानने की इच्छा जताई।

अजहरी की बात सुन उनके घरवाले बहुत नाराज हुए। उन्होंने अजहरी को अपने मजहब की बातें बताने का प्रयास किया लेकिन वह हिंदू धर्म के बारे में जानने की ठान चुकीं थीं। 12 साल की उम्र में अजहरी ने अपना घर छोड़ा और स्वामी श्रद्धानंद तक जा पहुँचीं। शुद्धि अभियान के तहत अजहरी बेगम का मार्गदर्शन हुआ और उनको शांति देवी नाम दिया गया।

अजहरी के परिजनों को जब इस संबंध में पता चला तो सब के सब बौखला उठे। उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद के पास जाकर उन्हें कहा कि वो उनकी बेटी को लौटा दें। लेकिन स्वामी जी ने जवाब दिया कि कोई शांति देवी को बिना उनकी मर्जी से कहीं नहीं ले जा सकता। वहीं शांति देवी ने भी कहा कि वह वापस अपने घर नहीं लौटेंगी।

इस घटना के बाद इस्लामी कट्टरपंथी तिलमिला चुके थे। उन्होंने मौका देख स्वामी श्रद्धानंद के खिलाफ झूठा अपहरण का केस दर्ज करा दिया, लेकिन कोर्ट में आरोप सिद्ध नहीं कर पाए। 4 दिसंबर 1926 को वह हर आरोप से बरी हो गए और दोबारा अपने अभियान पर आगे बढ़े।

अजहरी की बात सुन उनके घरवाले बहुत नाराज हुए। उन्होंने अजहरी को अपने मजहब की बातें बताने का प्रयास किया लेकिन वह हिंदू धर्म के बारे में जानने की ठान चुकीं थीं। 12 साल की उम्र में अजहरी ने अपना घर छोड़ा और स्वामी श्रद्धानंद तक जा पहुँचीं। शुद्धि अभियान के तहत अजहरी बेगम का मार्गदर्शन हुआ और उनको शांति देवी नाम दिया गया।

अजहरी के परिजनों को जब इस संबंध में पता चला तो सब के सब बौखला उठे। उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद के पास जाकर उन्हें कहा कि वो उनकी बेटी को लौटा दें। लेकिन स्वामी जी ने जवाब दिया कि कोई शांति देवी को बिना उनकी मर्जी से कहीं नहीं ले जा सकता। वहीं शांति देवी ने भी कहा कि वह वापस अपने घर नहीं लौटेंगी।

इस घटना के बाद इस्लामी कट्टरपंथी तिलमिला चुके थे। उन्होंने मौका देख स्वामी श्रद्धानंद के खिलाफ झूठा अपहरण का केस दर्ज करा दिया, लेकिन कोर्ट में आरोप सिद्ध नहीं कर पाए। 4 दिसंबर 1926 को वह हर आरोप से बरी हो गए और दोबारा अपने अभियान पर आगे बढ़े।

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