स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती की जीवनी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आर्यसमाज के संन्यासी व शिक्षा शास्त्री

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती की जीवनी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आर्यसमाज के संन्यासी व शिक्षा शास्त्री

जब स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को बचाने के लिए गाँधी बोले- अब्दुल भाई को छोड़ दो

जिस तरीके से कमलेश तिवारी की हत्या की गई वैसे ही कभी जबरन धर्म-परिवर्तन के खिलाफ ‘शुद्धि मूवमेंट’ चलाने वाले स्वामी श्रद्धानंद की एक सनकी धर्मांध ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

Statue of Shraddhanand in front of Delhi Town Hall
Statue of Shraddhanand in front of Delhi Town Hall

कमलेश तिवारी को पैगम्बर मुहम्मद पर एक टिप्पणी की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी। अब तक की जाँच से यह साफ़ है कि इस्लाम को मानने वाले कुछ धर्मांध लोगों ने नृशंस हत्या को अंजाम दिया। जिस तरीके से कमलेश तिवारी की हत्या की गई वैसे ही कभी जबरन धर्म-परिवर्तन के खिलाफ ‘शुद्धि मूवमेंट’ चलाने वाले स्वामी श्रद्धानंद की एक सनकी धर्मांध ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। ‘शुद्धि प्रक्रिया’ या ‘शुद्धि मूवमेंट’ के जरिए स्वामीजी उन तमाम लोगों को दोबारा हिन्दू धर्म में वापस ला रहे थे जिनका जबरन इस्लाम में धर्मांतरण किया गया था।

यह 19वीं शताब्दी के शुरुआत की बात है। इस्लामिक संगठन तेज़ी से धर्म परिवर्तन में लगे हुए थे। पराधीन भारत के इस काल में हिन्दुओं का धर्मान्तरण चरम पर पहुँच रहा था। मजहब वालों के संपर्क में आने वाले हिन्दुओं को मौलाना किसी न किसी बहाने इस्लाम कबूल करवा देते थे। मकसद था जिस तरीके से भी हो अपने दीन का प्रसार करना।

लखनऊ शहर से तक़रीर देने वाले वहाबी समुदाय के मौलाना अब्दुल बारी ने उसी समय एक फतवा जारी किया था। इसमें कहा गया था, “कोई भी मुस्लिम अगर हिन्दू हो जाए तो वह ‘मुर्तद’ (धर्मत्याग) है, वह इंसान वाजिब-उल-क़त्ल (मार देने योग्य) है”, जबकि उसी समय के एक और मौलाना ने इस्लाम फ़ैलाने के अलग-अलग तरीके बताते हुए एक किताब ‘दाई-ए-इस्लाम’ ही लिख डाली। इसमें उसने बताया कि किसको कैसे इस्लाम का प्रचार करना चाहिए। फकीरों-भिखमंगों से लेकर, गाने वालों, हकीमों और मुस्लिम वेश्याओं को भी इस्लाम का प्रचार करने का आदेश देते हुए किताब में लिखा कि, “मुस्लिम वेश्याओं के पास जो हिन्दू ग्राहक आए उसे अपनी जुल्फों का, पलकों का कैदी बनाएँ और इस्लाम की दावत दें।”

इन्ही पाखंडों के खिलाफ स्वामी श्रद्धानंद ने शुद्धि मूवमेंट चलाया और जबरन इस्लामीकरण के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्हें अक्सर इसके लिए धमकी मिला करती थी। लेकिन वे पीछे नहीं हटे।

महात्मा गांधी 1915 में जब अफ्रीका से लौटे तो हरिद्वार के कांगड़ी गाँव में स्वामी श्रद्धानंद के साथ उन्ही के गुरुकुल में रुके। कुछ समय बाद जब स्वामी श्रद्धानंद ने उनका ध्यान जबरन धर्मांतरण की तरफ खींचा तो गाँधी उनका साथ देने की बजाय पलट गए। इसके बाद जब स्वामी श्रद्धानंद ने हिन्दुओं को इस्लामीकरण से बचाने के लिए ‘शुद्धि मूवमेंट’ चलाया तो महात्मा गांधी ने खुद को पूरी तरह स्वामीजी से अलग कर लिया।

हिन्दुओं को उनका हक दिलाने के लिए सामाजिक संग्राम में उतरे स्वामी श्रद्धानंद को भी एक रोज़ ठीक वैसे ही मार दिया गया जैसे कि कमलेश तिवारी को मारा गया। 22 दिसंबर 1926 को जब निमोनिया से अस्वस्थ स्वामीजी पुरानी दिल्ली के अपने मकान में आराम कर रहे थे, अब्दुल रशीद नाम का एक व्यक्ति उनके कमरे में दाखिल हुआ। ठीक कमलेश के हत्यारों की ही तरह उसने स्वामीजी के सेवक को पानी लाने के बहाने बाहर भेजा और फिर मौका पाते ही स्वामी श्रद्धानंद को सामने से तीन गोलियाँ मार दीं। इसके बाद महात्मा गांधी ने स्वामी जी की शहादत पर श्रद्धासुमन तो दिए, लेकिन कभी इस घटना के लिए किसी ने दूसरे मजहब वालों को उनके दोष की याद नहीं दिलाई। महात्मा गाँधी ने तो स्वामीजी के पुत्र इंद्र विद्यावाचस्पति को पत्र लिखकर यहाँ तक कहा कि ‘अब्दुल भाई’ को माफ़ कर दो।

Check Also

World Thalassemia Day Information For Students

World Thalassemia Day: Date, History, Celebration & Theme

World Thalassemia Day is celebrated every year on 8th of May to increase the awareness …