Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

जागे हुए मिले हैं कभी सो रहे हैं हम – निदा फ़ाजली

जागे हुए मिले हैं कभी सो रहे हैं हम - निदा फ़ाजली

जागे हुए मिले हैं कभी सो रहे हैं हम मौसम बदल रहे हैं बसर हो रहे हैं हम बैठे हैं दोस्तों में ज़रूरी हैं क़हक़हे सबको हँसा रहे हैं मगर रो रहे हैं हम आँखें कहीं, निगाह कहीं, दस्तो–पा कहीं किससे कहें कि ढूंढो बहुत खो रहे हैं हम हर सुबह फेंक जाती है बिस्तर पे कोई जिस्म यह कौन …

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किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये – निदा फ़ाजली

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये - निदा फ़ाजली

अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाये घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ नहीं उन चिरा.गों को हवाओं से बचाया जाये क्या हुआ शहर को कुछ भी तो नज़र आये कहीं यूँ किया जाये कभी खुद को रुलाया जाये बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं किसी तितली …

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आ भी जा – निदा फाज़ली

आ भी जा - निदा फाज़ली

आ भी जा, आ भी जा ऐ सुबह आ भी जा रात को कर विदा दिलरुबा आ भी जा मेरे, मेरे दिल के, पागलपन की और सीमा क्या है यूँ तो तू है मेरी, छाया तुझमें और तेरा क्या है मैं हूँ गगन, तू है ज़मीं, अधूरी सी मेरे बिना रात को कर विदा… देखूं चाहे जिसको, कुछ-कुछ तुझसा दिखता …

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झर गये पात – बालकवि बैरागी

झर गये पात - बालकवि बैरागी

झर गये पात बिसर गई टहनी करुण कथा जग से क्या कहनी? नव कोंपल के आते–आते टूट गये सब के सब नाते राम करे इस नव पल्लव को पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी झर गये पात बिसर गई टहनी करुण कथा जग से क्या कहनी? कहीं रंग है‚ कहीं राग है कहीं चंग है‚ कहीं फाग है और धूसरित पात …

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ताला-चाबी – ओमप्रकाश बजाज

ताला-चाबी - ओमप्रकाश बजाज

छोटे से छोटे से लेकर, खूब बड़े ताले आते है। मकान, दुकान, दफ्तर, फैक्टरी, बक्स गाडी में लगाए जाते है। ताला सुरक्षा का एक साधन है, सदियों से इसका प्रचलन है। अलीगढ़ के ताले प्रसिद्ध है, अब तो कई जगह बनते हैं। ताला अपनी चाबी से खुलता है, नंबरों वाला ताला भी आता है। चाबी सदा संभाल कर रखना, इधर-उधर …

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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता – निदा फ़ाज़ली

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता - निदा फ़ाज़ली

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उमीद हो सकी वहाँ नहीं मिलता कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता ये …

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पिता सरीखे गांव – राजेंद्र गौतम

पिता सरीखे गांव – राजेंद्र गौतम

तुम भी कितने बदल गये हो पिता सरीखे गांव! परंपराओं का बरगद सा कटा हुआ यह तन बो देता है रोम रोम में बेचैनी सिहरन तभी तुम्हारी ओर उठे ये ठिठके रहते पांव। जिसकी वत्सलता में डूबे कभी सभी संत्रास पच्छिम वाले उस पोखर की सड़ती रहती लाश किसमें छोड़ें सपनों वाली काग़ज की यह नाव! इस नक्शे से मिटा …

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कुछ मैं कहूं कुछ तुम कहो – रमानाथ अवस्थी

कुछ मैं कहूं कुछ तुम कहो – रमानाथ अवस्थी

जीवन कभी सूना न हो कुछ मैं कहूं‚ कुछ तुम कहो। तुमने मुझे अपना लिया यह तो बड़ा अच्छा किया जिस सत्य से मैं दूर था वह पास तुमने ला दिया अब जिंदगी की धार में कुछ मैं बहूं‚ कुछ तुम बहो। जिसका हृदय सुन्दर नहीं मेरे लिये पत्थर वही मुझको नई गति चाहिये जैसे मिले‚ वैसे सही मेरी प्रगति …

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जीवन के रेतीले तट पर – अजित शुकदेव

जीवन के रेतीले तट पर – अजित शुकदेव

जीवन के रेतीले तट पर‚ मैं आँधी तूफ़ान लिये हूँ। अंतर में गुमनाम पीर है गहरे तम से भी है गहरी अपनी आह कहूँ तो किससे कौन सुने‚ जग निष्ठुर प्रहरी पी–पीकर भी आग अपरिमित मैं अपनी मुस्कान लिये हूँ। आज और कल करते करते मेरे गीत रहे अनगाये जब तक अपनी माला गूँथूँ तब तक सभी फूल मुरझाये तेरी …

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एक चाय की चुस्की – उमाकांत मालवीय

एक चाय की चुस्की – उमाकांत मालवीय

एक चाय की चुस्की, एक कहकहा अपना तो इतना सामान ही रहा चुभन और दंशन पैने यथार्थ के पग–पग पर घेरे रहे प्रेत स्वार्थ के भीतर ही भीतर मैं बहुत ही दहा किंतु कभी भूले से कुछ नहीं कहा एक चाय की चुस्की, एक कहकहा एक अदद गंध, एक टेक गीत की बतरस भीगी संध्या बातचीत की इन्हीं के भरोसे …

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