हर पुराना पत्र सौ–सौ यादगारों का पिटारा खोलता है। मीत कोई दूर का, बिछड़ा हुआ सा, पास आता है, लिपटता, बोलता है। कान में कुछ फुसफुसाता है, हृदय का भेद कोई खोलता है। हर पुरान पत्र है इतिहास आँसू या हँसी का चाँदनी की झिलमिलाहट या अन्धेरे की घड़ी का आस का, विश्वास का, या आदमी की बेबसी का। ये …
Read More »नखरे सलाई के – दिनेश प्रभात
आ गये दिन लौट कर, कंबल रज़ाई के। सज गये दूकान पर फिर ऊन के गोले, पत्नियों के हाथ में टंगने लगे झोले, देखने लायक हुए नखरे सलाई के। धूप पाकर यूं लगा, ज्यों मिल गई नानी, और पापा–सा लगा, प्रिय गुनगुना पानी, हो गये चूल्हे, कटोरे रसमलाई के। ले लिया बैराग मलमल और खादी ने, डांट की चाबुक थमा …
Read More »मेरा उसका परिचय इतना – अंसार कंबरी
मेरा उसका परिचय इतना वो नदिया है, मैं मरुथल हूँ। उसकी सीमा सागर तक है मेरा कोई छोर नहीं है मेरी प्यास चुरा ले जाए ऐसा कोई चोर नहीं है। मेरा उसका नाता इतना वो खुशबू है, मैं संदल हूँ। उस पर तैरें दीप शिखाएँ सूनी सूनी मेरी राहें। उसके तट पर भीड़ लगी है, कौन करेगा मुझसे बातें। मेरा …
Read More »भागे लेकर बल्ला – रामानुज त्रिपाठी
चूहे राज क्रिकेट टीम के चुने गए कप्तान अपनी बल्लेबाजी का था उनको बहुत गुमान पैड बांध दस्ताना पहने हेलमैट एक लगाए टास जीत कर खुद ही पहले बैटिंग करने आए उधर दूसरी क्रिकेट टीम का बंदर था कप्तान उसे क्रिकेट के दाँव पेंच की थी पूरी पहचान पहला ही ओवर बंदर ने बिल्ली से फिंकवाया चूहे को आउट करने …
Read More »सूने दालान – सोम ठाकुर
खिड़की पर आँख लगी देहरी पर कान धूल–भरे सूने दालान हल्दी के रूप भरे सूने दालान। परदों के साथ साथ उड़ता चिड़ियों का खंडित–सा छाया क्रम झरे हुए पत्तों की खड़–खड़ में उगता है कोई मनचाहा भ्रम मंदिर के कलशों पर ठहर गई सूरज की काँपती थकन धूल–भरे सूने दालान। रोशनी चढ़ी सीढ़ी–सीढ़ी डूबा–मन जीने की मोड़ों को घेरता अकेलापन …
Read More »मैं फिर अकेला रह गया – दिनेश सिंह
बीते दिसंबर तुम गए लेकर बरस के दिन नए पीछे पुराने साल का जर्जर किला था ढह गया मैं फिर अकेला रह गया खुद आ गए तो भा गए इस ज़िन्दगी पर छा गए जितना तुम्हारे पास था वह दर्द मुझे थमा गए वह प्यार था कि पहाड़ का झरना रहा जो बह गया मैं फिर अकेला रह गया रे …
Read More »हम तुम – रामदरश मिश्र
सुख के, दुख के पथ पर जीवन, छोड़ता हुआ पदचाप गया तुम साथ रहीं, हँसते–हँसते, इतना लंबा पथ नाप गया। तुम उतरीं चुपके से मेरे यौवन वन में बन के बहार गुनगुना उठे भौंरे, गुंजित हो कोयल का आलाप गया। स्वपनिल–स्वपनिल सा लगा गगन, रंगों में भीगी सी धरती जब बही तुम्हारी हँसी हवा–सी, पत्ता पत्ता काँप गया। जाने कितने …
Read More »परखना मत – बशीर बद्र
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता। बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना जहाँ दरिया समंदर में मिले, दरिया नहीं रहता। हजारों शेर मेरे सो गये काग़ज की कब्रों में अजब माँ हूँ, कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता। तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है हमारे …
Read More »पगडंडी – प्रयाग शुक्ल
जाती पगडंडी यह वन को खींच लिये जाती है मन को शुभ्र–धवल कुछ्र–कुछ मटमैली अपने में सिमटी, पर, फैली। चली गई है खोई–खोई पत्तों की मह–मह से धोई फूलों के रंगों में छिप कर, कहीं दूर जाकर यह सोई! उदित चंद्र बादल भी छाए। किरणों के रथ के रथ आए। पर, यह तो अपने में खोई कहीं दूर जाकर यह …
Read More »मेहंदी लगाया करो – विष्णु सक्सेना
दूिधया हाथ में, चाँदनी रात में, बैठ कर यूँ न मेंहदी रचाया करो। और सुखाने के करके बहाने से तुम इस तरह चाँद को मत जलाया करो। जब भी तन्हाई में सोचता हूं तुम्हें सच, महकने ये लगता है मेरा बदन, इसलिये गीत मेरे हैं खुशबू भरे तालियों से गवाही ये देता सदन, भूल जाते हैं अपनी हँसी फूल सब …
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