Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

आँगन – धर्मवीर भारती

आँगन - धर्मवीर भारती

बरसों के बाद उसी सूने- आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन का कोना-कोना कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना फिर आकर बाँहों में खो जाना अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी फिर गहरा सन्नाटा हो जाना दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना, कँपना, बेबस हो गिर जाना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन …

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भोर हुई – रूप नारायण त्रिपाठी

भोर हुई - रूप नारायण त्रिपाठी

भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी, पत पात हिले शाख शाख डोलने लगी। कहीं दूर किरणों के तार झनझ्ना उठे, सपनो के स्वर डूबे धरती के गान में, लाखों ही लाख दिये ताारों के खो गए, पूरब के अधरों की हल्की मुस्कान में। कुछ ऐसे पूरब के गांव की हवा चली, सब रंगों की दुनियां आंख खोलने लगी। जमे …

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भिन्न – अनामिका

भिन्न - अनामिका

मुझे भिन्न कहते हैं किसी पाँचवीं कक्षा के क्रुद्ध बालक की गणित पुस्तिका में मिलूंगी – एक पाँव पर खड़ी – डगमग। मैं पूर्ण इकाई नहीं – मेरा अधोभाग मेरे माथे से सब भारी पड़ता है लोग मुझे मानते हैं ठीक ठाक अंग्रेजी में ‘प्रॉपर फ्रैक्शन’। अगर कहीं गलती से मेरा माथा मेरे अधोभाग से भारी पड़ जाता है लोगों के …

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भारतीय समाज – भवानी प्रसाद मिश्र

भारतीय समाज - भवानी प्रसाद मिश्र

कहते हैं इस साल हर साल से पानी बहुत ज्यादा गिरा पिछ्ले पचास वर्षों में किसी को इतनी ज्यादा बारिश की याद नहीं है। कहते हैं हमारे घर के सामने की नालियां इससे पहले इतनी कभी नहीं बहीं न तुम्हारे गांव की बावली का स्तर कभी इतना ऊंचा उठा न खाइयां कभी ऐसी भरीं, न खन्दक न नरबदा कभी इतनी …

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भर दिया जाम – बालस्वरूप राही

भर दिया जाम - बालस्वरूप राही

भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से प्रिय! बोलो, मैं इन्कार करूं भी तो कैसे! वैसे तो मैं कब से दुनियाँ से ऊब चुका, मेरा जीवन दुख के सागर में डूब चुका, पर प्राण, आज सिरहाने तुम आ बैठीं तो– मैं सोच रहा हूँ हाय मरूं तो भी कैसे! मंजिल अनजानी पथ की भी पहचान नहीं, है थकी थकी–सी …

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भंगुर पात्रता – भवानी प्रसाद मिश्र

भंगुर पात्रता - भवानी प्रसाद मिश्र

मैं नहीं जानता था कि तुम ऐसा करोगे बार बार खाली करके मुझे बार बार भरोगे और फिर रख दोगे चलते वक्त लापरवाही से चाहे जहाँ। ऐसा कहाँ कहा था तुमने खुश हुआ था मैं तुम्हारा पात्र बन कर। और खुशी मुझे मिली ही नहीं टिकी तक मुझ में तुमने मुझे हाथों में लिया और मेरे माध्यम से अपने मन …

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भैंसागाड़ी – भगवती चरण वर्मा

भैंसागाड़ी - भगवती चरण वर्मा

चरमर चरमर चूं चरर–मरर जा रही चली भैंसागाड़ी! गति के पागलपन से प्रेरित चलती रहती संसृति महान्‚ सागर पर चलते है जहाज़‚ अंबर पर चलते वायुयान भूतल के कोने–कोने में रेलों ट्रामों का जाल बिछा‚ हैं दौड़ रहीं मोटरें–बसें लेकर मानव का वृहद ज्ञान। पर इस प्रदेश में जहां नहीं उच्छ्वास‚ भावनाएं‚ चाहें‚ वे भूखे‚ अधखाये किसान भर रहे जहां …

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भेड़ियों के ढंग – उदयभानु ‘हंस’

भेड़ियों के ढंग By Udaybhanu Hans

देखिये कैसे बदलती आज दुनिया रंग आदमी की शक्ल, सूरत, आचरण में भेड़ियों के ढंग। द्रौपदी फिर लुट रही है दिन दहाड़े मौन पांडव देखते है आंख फाड़े हो गया है सत्य अंधा, न्याय बहरा, और धर्म अपंग। नीव पर ही तो शिखर का रथ चलेगा जड़ नहीं तो तरु भला कैसे फलेगा देखना आकाश में कब तक उड़ेगा, डोर–हीन पतंग। …

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बीते दिन वर्ष – विद्यासागर वर्मा

बीते दिन वर्ष - विद्यासागर वर्मा

बीते दिन वर्ष! रोज जन्म लेती‚ शंकाओं के रास्ते घर से दफ्तर की दूरी को नापते बीते दिन दिन करके‚ वर्ष कई वर्ष! आंखों को पथराती तारकोल की सड़कें‚ बांध गई खंडित गति थके हुए पाँवों में‚ अर्थ भरे प्रश्न उगे माथे की शिकनों पर‚ हर उत्तर डूब गया खोखली उछासों में। दीमक की चिंताएँ‚ चाट गई जर्जर तन‚ बैठा …

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सारे दिन पढ़ते अख़बार – माहेश्वर तिवारी

सारे दिन पढ़ते अख़बार - माहेश्वर तिवारी

सारे दिन पढ़ते अख़बार; बीत गया है फिर इतवार। गमलों में पड़ा नहीं पानी पढ़ी नहीं गई संत-वाणी दिन गुज़रा बिलकुल बेकार सारे दिन पढ़ते अख़बार। पुँछी नहीं पत्रों की गर्द खिड़की-दरवाज़े बेपर्द कोशिश करते कितनी बार सारे दिन पढ़ते अख़बार। मुन्ने का तुतलाता गीत- अनसुना गया बिल्कुल बीत कई बार करके स्वीकार सारे दिन पढ़ते अख़बार बीत गया है …

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