Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

अगर डोला कभी इस राह से गुजरे – धर्मवीर भारती

अगर डोला कभी इस राह से गुजरे - धर्मवीर भारती

अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुवेला, यहां अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना, मिलो जब गांव भर से बात कहना, बात सुनना भूल कर मेरा न हरगिज नाम लेना। अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे, हंसी मे टाल देना बात, आंसू थाम लेना। शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें रंभाएं नींद में खो जाए …

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अधूरी याद – राकेश खण्डेलवाल

अधूरी याद - राकेश खण्डेलवाल

चरखे का तकुआ और पूनी बरगद के नीचे की धूनी पत्तल, कुल्हड़ और सकोरा तेली का बजमारा छोरा पनघट, पायल और पनिहारी तुलसी का चौरा, फुलवारी पिछवाड़े का चाक, कुम्हारी छोटे लल्लू की महतारी ढोल नगाड़े, बजता तासा महका महका इक जनवासा धिन तिन करघा और जुलाहा जंगल को जाता चरवाहा रहट, खेत, चूल्हा और अंगा फसल कटे का वह …

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अच्छा तो हम चलते हैं – आनंद बक्षी

अच्छा तो हम चलते हैं - आनंद बक्षी

अच्छा तो हम चलते हैं फिर कब मिलोगे? जब तुम कहोगे जुम्मे रात को हाँ हाँ आधी रात को कहाँ? वहीं जहाँ कोई आता-जाता नहीं अच्छा तो हम चलते हैं… किसी ने देखा तो नहीं तुम्हें आते नहीं मैं आयी हूँ छुपके छुपाके देर कर दी बड़ी, ज़रा देखो तो घड़ी उफ़्फ़ ओ, मेरी तो घड़ी बन्द है तेरी ये …

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अच्छा नहीं लगता – संतोष यादव ‘अर्श’

अच्छा नहीं लगता - संतोष यादव ‘अर्श’

ये उड़ती रेत का सूखा समाँ अच्छा नहीं लगता मुझे मेरे खुदा अब ये जहाँ अच्छा नहीं लगता। बहुत खुश था तेरे घर पे‚ बहुत दिन बाद आया था वहाँ से आ गया हूँ तो यहाँ अच्छा नहीं लगता। वो रो–रो के ये कहता है मुहल्ले भर के लोगों से यहाँ से तू गया है तो यहाँ अच्छा नहीं लगता। …

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अच्छा लगा – रामदरश मिश्र

अच्छा लगा - रामदरश मिश्र

आज धरती पर झुका आकाश तो अच्छा लगा, सिर किये ऊँचा खड़ी है घास तो अच्छा लगा। आज फिर लौटा सलामत राम कोई अवध में, हो गया पूरा कड़ा बनवास तो अच्छा लगा। था पढ़ाया माँज कर बरतन घरों में रात दिन, हो गया बुधिया का बेटा पास तो अच्छा लगा। लोग यों तो रोज ही आते रहे, जाते रहे, …

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अच्छा अनुभव – भवानी प्रसाद मिश्र

अच्छा अनुभव - भवानी प्रसाद मिश्र

मेरे बहुत पास मृत्यु का सुवास देह पर उस का स्पर्श मधुर ही कहूँगा उस का स्वर कानों में भीतर मगर प्राणों में जीवन की लय तरंगित और उद्दाम किनारों में काम के बँधा प्रवाह नाम का एक दृश्य सुबह का एक दृश्य शाम का दोनों में क्षितिज पर सूरज की लाली दोनों में धरती पर छाया घनी और लम्बी …

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कांच का खिलौना – आत्म प्रकाश शुक्ल

माटी का पलंग मिला राख का बिछौना। जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना। एक ही दुकान में सजे हैं सब खिलौने। खोटे–खरे, भले–बुरे, सांवरे सलोने। कुछ दिन तक दिखे सभी सुंदर चमकीले। उड़े रंग, तिरे अंग, हो गये घिनौने। जैसे–जैसे बड़ा हुआ होता गया बौना। जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना। मौन को अधर मिले अधरों को वाणी। …

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अभी न सीखो प्यार – धर्मवीर भारती

अभी न सीखो प्यार - धर्मवीर भारती

यह पान फूल सा मृदुल बदन बच्चों की जिद सा अल्हड़ मन तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार! कुंजों की छाया में झिलमिल झरते हैं चांदी के निर्झर निर्झर से उठते बुदबुद पर नाचा करतीं परियां हिलमिल उन परियों से भी कहीं अधिक हलका–फुलका लहराता तन! तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार! तुम जा …

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अब तो पथ यही है – दुष्यन्त कुमार

अब तो पथ यही है - दुष्यन्त कुमार

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार‚ अब तो पथ यही है। अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है‚ एक हलका सा धुंधलका था कहीं‚ कम हो चला है‚ यह शिला पिघले न पिघले‚ रास्ता नम हो चला है‚ क्यों करूं आकाश की मनुहार‚ अब तो पथ यही है। क्या भरोसा‚ कांच का घट है‚ किसी दिन फूट जाए‚ एक …

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आदत – सहने की – ओम प्रकाश बजाज

आदत - सहने की - ओम प्रकाश बजाज

जरा – जरा सी बात पर, न शोर मचाओ। थोड़ा बहुत सहने की, आदत भी बनाओ। चोट – चपेट तो सब को, लगती रहती है। कठिनाइया परेशानियां तो, आती-जाती रहती है। धीरज रखना ही पड़ता है, सहना – सुनना भी पड़ता है। सहनशीलता जीवन में, बहुत काम आती है। निराश होने से हमें, सदा बचाती है। ~ ओम प्रकाश बजाज

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