Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

गणतंत्र दिवस मनाएंगे – विकास कौशिक

छब्बीस जनवरी को मिलकर गणतंत्र दिवस मनाएंगे। शुभ दिन के स्वागत में सारा हिन्दुस्तान सजाऐंगे॥ सुनो – सुनो ऐ दुनिया वालों भारत एलान कराएगा। सदा हमारी दिल्ली में झंडा अपना लहराएगा॥ राष्ट्र पताका फहराकर हम राष्ट्रीयगान सुनाएंगे। शुभ दिन के स्वागत में सारा हिन्दुस्तान सजाएंगे॥ विजयी विश्व तिरंगे को फिर नमन करेंगे सारे। भारत माता की जय के नभ में …

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गीत फरोश – भवानी प्रसाद मिश्र

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ, मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ, मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ। जी, माल देखिए, दाम बताऊँगा, बेकाम नहीं हैं, काम बताऊँगा, कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने, कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने, यह गीत सख्त सर-दर्द भुलाएगा, यह गीत पिया को पास बुलाएगा। जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी …

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दो भाई

चुन्नू मुन्नू थे दो भाई, रसगुल्ले पर हुई लड़ाई। चुन्नू बोला, मैं लूंगा, मुन्नू बोला, कभी न दूंगा। झगड़ा सुनकर मम्मी आई, प्यार से एक बात बताई। आधा ले तू चुन्नू बेटा, आधा ले तू मुन्नू बेटा। ऐसा झगड़ा कभी न करना, दोनों मिलकर प्रेम से रहना।

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गुड़िया – महजबीं

मेरी गुड़िया बहुत प्यारी नाम उसका राजकुमारी। पहले थी मैं कितनी अकेली अब यह है मेरी सहेली। करती है मुझसे बातें दिन भर भी हम साथ बिताते। काटते हैं अब दिन कितने अच्छे नहीं थे पहले उतने अच्छे। ∼ महजबीं

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दो चूहे

दो चूहे थे, मोटे-मोटे थे, छोटे-छोटे थे। नाच रहे थे, खेल रहे थे, कूद रहे थे। बिल्ली ने कहा, म्याऊँ (मैं आऊँ)। ना मौसी ना, हमें मार डालोगी। फिर खा जाओगी, हम तो नहीं आएँगे। हम तो भाग जाएँगे।

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ध्यान रखेंगे – दिविक रमेश

मेरी बिल्ली आंछी-आंछी, अरे हो गया उसे जुकाम। जा चूहे ललचा मत जी को, करने दो उसको आराम। दूध नहीं अब चाय चलेगी, थोड़ा हलुवा और दवाई। लग ना जाए आंछी हमको, ध्यान रखेंगे अपना भाई। ∼ डॉ. दिविक रमेश

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हाथी बोला – दिविक रमेश

सूँड उठा कर हाथी बोला बोला क्या तन उसका डोला बोला तो मन मेरा बोला देखो देखो अरे हिंडोला “आओ बच्चो मिलजुल आओ आओ बैठो तुम्हें डुलाऊँ मस्त मस्त चल, मस्त मस्त चल झूम झूम कर तुम्हें घुमाऊँ घूम घूम कर, झूम झूम कर ले जाऊँगा नदी किनारे सूँड भरूँगा पानी से मैं छोडूँगा तुम पर फव्वारे।” ∼ डॉ. दिविक रमेश

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हाथी राजा बहुत भले

हाथी राजा बहुत भले। सूंड हिलाते कहाँ चले ? कान हिलाते कहाँ चले ? मेरे घर भी आओ ना, हलवा पूरी खाओ ना। आओ बैठो कुर्सी पर, कुर्सी बोले चटर मटर।

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कनुप्रिया (इतिहास: उसी आम के नीचे) – धर्मवीर भारती

उस तन्मयता में तुम्हारे वक्ष में मुँह छिपाकर लजाते हुए मैंने जो-जो कहा था पता नहीं उसमें कुछ अर्थ था भी या नहीं: आम्र-मंजरियों से भरी माँग के दर्प में मैंने समस्त जगत् को अपनी बेसुधी के एक क्षण में लीन करने का जो दावा किया था – पता नहीं वह सच था भी या नहीं: जो कुछ अब भी …

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कनुप्रिया (इतिहास: विप्रलब्धा) – धर्मवीर भारती

बुझी हुई राख, टूटे हुए गीत, बुझे हुए चाँद, रीते हुए पात्र, बीते हुए क्षण-सा– –मेरा यह जिस्म कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था तुम्हारे आश्लेष में आज वह जूड़े से गिरे हुए बेले-सा टूटा है, म्लान है दुगुना सुनसान है बीते हुए उत्सव-सा, उठे हुए मेले-सा– मेरा यह जिस्म– टूटे खंडहरों के उजाड़ अन्तःपुर में छूटा …

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