Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

कनुप्रिया (इतिहास: अमंगल छाया) – धर्मवीर भारती

घाट से आते हुए कदम्ब के नीचे खड़े कनु को ध्यानमग्न देवता समझ, प्रणाम करने जिस राह से तू लौटती थी बावरी आज उस राह से न लौट उजड़े हुए कुंज रौंदी हुई लताएँ आकाश पर छायी हुई धूल क्या तुझे यह नहीं बता रहीं कि आज उस राह से कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ युद्ध में भाग लेने जा …

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कनुप्रिया (इतिहास: समुद्र – स्वप्न) – धर्मवीर भारती

जिसकी शेषशय्या पर तुम्हारे साथ युगों-युगों तक क्रीड़ा की है आज उस समुद्र को मैंने स्वप्न में देखा कनु! लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं –और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार का कवच धारण किए निर्जीव मछलियों …

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कनुप्रिया (इतिहास: एक प्रश्न) – धर्मवीर भारती

अच्छा, मेरे महान् कनु, मान लो कि क्षण भर को मैं यह स्वीकार लूँ कि मेरे ये सारे तन्मयता के गहरे क्षण सिर्फ भावावेश थे, सुकोमल कल्पनाएँ थीं रँगे हुए, अर्थहीन, आकर्षक शब्द थे– मान लो कि क्षण भर को मैं यह स्वीकार कर लूँ कि पाप-पुण्य, धर्माधर्म, न्याय-दण्ड क्षमा-शील वाला यह तुम्हारा युद्ध सत्य है– तो भी मैं क्या …

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हमराही – राजीव कृष्ण सक्सेना

ओ मेरे प्यारे हमराही, बड़ी दूर से हम तुम दोनों संग चले हैं पग पर ऐसे, गाडी के दो पहिये जैसे। कहीं पंथ को पाया समतल कहीं कहीं पर उबड़-खाबड़, अनुकम्पा प्रभु की इतनी थी, गाडी चलती रही बराबर। कभी हंसी थी किलकारी थी कभी दर्द पीड़ा भारी थी, कभी कभी थे भीड़-झमेले कभी मौन था, लाचारी थी। रुके नहीं …

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हम भी वापस जायेंगे – अभिनव शुक्ला

आबादी से दूर, घने सन्नाटे में, निर्जन वन के पीछे वाली, ऊँची एक पहाड़ी पर, एक सुनहरी सी गौरैया, अपने पंखों को फैलाकर, गुमसुम बैठी सोंच रही थी, कल फिर मैं उड़ जाऊँगी, पार करुँगी इस जंगल को, वहां दूर जो महके जल की, शीतल एक तलैया है, उसका थोड़ा पानी पीकर, पश्चिम को मुड़ जाऊँगी, फिर वापस ना आऊँगी, …

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कनुप्रिया (इतिहास: शब्द – अर्थहीन) – धर्मवीर भारती

पर इस सार्थकता को तुम मुझे कैसे समझाओगे कनु ? शब्द, शब्द, शब्द…… मेरे लिए सब अर्थहीन हैं यदि वे मेरे पास बैठकर मेरे रूखे कुन्तलों में उँगलियाँ उलझाए हुए तुम्हारे काँपते अधरों से नहीं निकलते शब्द, शब्द, शब्द…… कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व…… मैंने भी गली-गली सुने हैं ये शब्द अर्जुन ने चाहे इनमें कुछ भी पाया हो मैं इन्हें …

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बच्चों की रेल

बच्चों की यह रेल है, बड़ा अनोखा खेल है। यह कोयला नहीं खाती है , इसे मिठाई भाती है। यह नहीं छोड़ती धुआं, मुड़ जाती देख कर कुआँ। चलते-चलते जाती रुक, छुक-छुक, छुक-छुक, छुक-छुक, छुक-छुक।

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जन्म दिन मुबारक हो – मूलचंद गुप्ता

जन्म दिन मुबारक हो, मुबारक हो जन्मदिन। आपके जीवन में, बार – बार आये यह दिन॥ दुनिया का मालिक, आपको बख्शे अच्छी सेहत। खुशियाँ ही खुशियाँ, बरसाती रहे उसकी नेमत॥ माना आइना नहीं जाता मेघ मल्हार, बुजुर्गों के किये। फिर भी बहुत कुछ हो सकता है बुजुर्गों के लिए॥ शारीरिक शक्ति, अगर कुछ कम हो भी गयी तो क्या है? …

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जीवन दीप – विनोद तिवारी

मेरा एक दीप जलता है। अंधियारों में प्रखर प्रज्ज्वलित, तूफानों में अचल, अविचलित, यह दीपक अविजित, अपराजित। मेरे मन का ज्योतिपुंज जो जग को ज्योतिर्मय करता है। मेरा एक दीप जलता है। सूर्य किरण जल की बून्दों से छन कर इन्द्रधनुष बन जाती, वही किरण धरती पर कितने रंग बिरंगे फूल खिलाती। ये कितनी विभिन्न घटनायें, पर दोनों में निहित …

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