जब रास्ता तुम भटक जाते हो क्यों नहीं देखते इन तारों की तरफ ये तो विद्यमान हैं हर जगह इन्हे तो पता हैं सारे मार्ग जब आक्रोश उत्त्पन्न होता है तुम्हारे हृदय में वेदना कसकती है और क्रोध किसी को जला डालना चाहता है क्यों नहीं देखते सूरज की तरफ ये भी नाराज़ है बरसों से पता नहीं किस पर …
Read More »क्यों – श्रीनाथ सिंह
पूछूँ तुमसे एक सवाल, झटपट उत्तर दो गोपाल मुन्ना के क्यों गोरे गाल? पहलवान क्यों ठोके ताल? भालू के क्यों इतने बाल? चले सांप क्यों तिरछी चाल? नारंगी क्यों होती लाल? घोड़े के क्यों लगती नाल? झरना क्यों बहता दिन रात? जाड़े में क्यों कांपे गात? हफ्ते में क्यों दिन हैं सात? बुड्ढों के क्यों टूटे दांत? ढ़म ढ़म ढ़म …
Read More »देश की मिट्टी – शम्भू नाथ
इस मिट्टी से बैर करो मत, ये मिट्टी ही सोना है। इसी में हंसना इसी में गाना, इसी में यारों रोना है। इस मिट्टी में जन्म लिये हो, इसी मिट्टी में रहना है। इसी में खा के इसी में जा के, इसी में वापस आना है। इससे प्रेम करोगे प्यारे, नाम अमर हो जाना है। इसी में सपना इसी में …
Read More »केजरीवाल चालीसा – शम्भू नाथ
दोहा: सच्चाई की अलख जगाई जनता दे दिया साथ॥ विजय पताका हासिल कर ली खा गए सारे मात॥ चौपाई: जय केजरी कुंवर बलवंता। मनीष कुमार और भगवंता॥ सच की टोपी सर पर सोहे। मृदु वचन से जनता मोहे॥ पूर्ण वादे को करने वाले। लोगों का दुःख रहने वाले॥ भ्रष्टाचार को करो उजागर। अत्याचारी की फोड़ो गागर॥ नीति विरोध काम नहीं …
Read More »क्यों करते हो झगड़े – शम्भू नाथ
क्यों करते हो झगड़े, क्यों पालते हो लफ़ड़े आपस में प्रेम करो, बैर विरोध मिटाओ। सब छोड़ यहीं जाना है, कुछ साथ नहीं जायेगा अच्छाई और बुराई का लेख, यहीं रह जायेगा रह-रह कर प्यारे, तू भी पछतायेगा। ये पानी की बूंदें हैं, सागर का किनारा है यहाँ सबको आना है, सबको जाना है जब जाना है अकेला तो, क्यों करते हो झमेला सब कुछ …
Read More »कुंजी – रामधारी सिंह दिनकर
घेरे था मुझे तुम्हारी साँसों का पवन, जब मैं बालक अबोध अनजान था। यह पवन तुम्हारी साँस का सौरभ लाता था। उसके कंधों पर चढ़ा मैं जाने कहाँ-कहाँ आकाश में घूम आता था। सृष्टि शायद तब भी रहस्य थी। मगर कोई परी मेरे साथ में थी; मुझे मालूम तो न था, मगर ताले की कूंजी मेरे हाथ में थी। जवान …
Read More »किताब – हिमानी जैन
जब कोई दोस्त हो हमारे खिलाफ, तो मदद करती हैं कुछ किताब, जब हो हमारे इम्तिहान पास, तो मदद मिलती है इनसे ख़ास। जब कोई हमसे हो नाराज, तो पढ़ती हूँ किताबों से बेहतरीन राज, तो फिर हर दोस्त बन जाता है, मेरा दोस्त खास। किताब ही है हमारी एक दोस्त, जो आती हमारे काम हर रोज़, सरस्वती माँ का …
Read More »किसान (भारत–भारती से) – मैथिली शरण गुप्त
हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है। पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है॥ हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ। खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ॥ आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में। अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में॥ बरसा रहा है रवि अनल, भूतल …
Read More »चोरी का गंगाजल – मनोहर लाल ‘रत्नम’
महाकुम्भ से गंगाजल मैं, चोरी करके लाया हूँ। नेताओं ने कर दिया गन्दा, संसद धोने आया हूँ॥ देश उदय का नारा देकर, जनता को बहकाते हैं, छप्पन वर्ष की आज़ादी को, भारत उदय बताते हैं। मंहगाई है कमर तोड़ती, बेरोजगारी का शासन, कमर तलक कर्जे का कीचड, यह प्रगति बतलाते हैं॥ थोथे आश्वासन नेता के, मैं बतलाने आया हूँ। महाकुम्भ …
Read More »कवि कभी रोया नहीं करता – मनोहर लाल ‘रत्नम’
कवि कभी रोया नहीं करता, वह केवल गाया करता है। दर्द सभी सीने में रखकर, वह जीवन पाया करता है॥ जब जब भी आहें उठती हैं, तब तब गीत नया बनता है। जब जब छलका करते आंसू– कवि का मीत नया बनता है॥ आंसू संग आहों का बंधन, कवि केवल पाया करता है। कवि कभी रोया नहीं करता, वह केवल …
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