Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

खतरा है – मनोहर लाल ‘रत्नम’

देशवासियों सुनो देश को, आज भयंकर खतरा है। जितना बाहर से खतरा, उतना भीतर से खतरा है॥ सर पर खरा चीन से है, लंका से खतरा पैरों में, अपने भाई दिख रहे हैं, जो बैठे हत्यारों में। इधर पाक से खतरा है तो, इधर बंग से खतरा है, निर्भय होकर जो उठती सागर तरंग से खतरा है। माँ के आँचल …

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जिन्दा रावण बहुत पड़े हैं – मनोहर लाल ‘रत्नम’

अर्थ हमारे व्यर्थ हो रहे, कागज पुतले और खड़े हैं। कागज के रावण मत फूंकों, जिन्दा रावण बहुत पड़े हैं॥ कुम्भ-कर्ण तो मदहोशी हैं, मेघनाथ निर्दोषी है, अरे तमाशा देखने वालों, इनसे बढ़कर हम दोषी हैं। अनाचार में घिरती नारी, हां दहेज की भी लाचारी– बदलो सभी रिवाज पुराने, जो घर द्वार से आज अड़े हैं। कागज के रावण मत …

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देश किन्नरों को दे दो – मनोहर लाल ‘रत्नम’

देश नारों से घिरा, मैं हर सितम को सह रहा हूँ, आँख के आंसू मैं देखो अब खडा मैं बह रहा हूँ। और अत्त्याचार मुझसे देश मैं देखे न जाएं– आज शिव सा ही गरल मैं पान करके कह रहा हूँ॥ भावना बैठी कहाँ है आप भी मन को कुरेदो। आप के बस का ना हो तो, देश किन्नरों को …

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कील पुरानी है – मनोहर लाल ‘रत्नम’

नये साल का टँगा कलेण्डर कील पुरानी है। कीलों से ही रोज यहाँ होती मनमानी है॥ सूरज आता रोज यहाँ पर लिए उजालों को। अपने आँचल रात समेटे, सब घोटालों को। बचपन ही हत्या होती है, वहशी लोग हुए। और अस्थियाँ अर्पित होती गन्दे नालों को। इन कीलों पर पीड़ा ही बस आनी जानी है। नये साल का टँगा कलेण्डर …

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गंगाजल – मनोहर लाल ‘रत्नम’

गंगाजल अंजलि में भरकर, सूरज का मुख धुलवायें। घना कुहासा, गहन अँधेरा, नया सवेरा ले आयें।। देश मेरे में बरसों से ही, नदी आग की बहती है। खून की धरा से हो लथपथ, धरती ही दुख सहती है। शमशानों के बिना धरा पर, जलती है कितनी लाशें हर मानव के मन में दबी सी, कुछ तो पीड़ा रहती है। अब …

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क्योंकि सपना है अभी भी – धर्मवीर भारती

…क्योंकि सपना है अभी भी इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल कोहरे डूबी दिशाएं कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी …क्योंकि सपना है अभी भी! तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा जब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा विदा बेला, यही …

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लाला जी ने केला खाया

लाला जी ने केला खाया, केला खाकर मुँह बिचकाया। मुँह बिचकाकर तोंद फुलाई, तोंद फुलाकर छड़ी उठाई। छड़ी उठाकर कदम बढ़ाया, कदम के नीचे छिलका आया। लाला जी तब गिरे धड़ाम, मुँह से निकला हाय राम !

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मान जाओ – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

मुझे बहुत डर लगता है तुम यूँ ही रूठ जाया न करो कितना तड़पाता है ये मुझको ऐसे दूर जाया न करो। ऐसे ही मैं कुछ कह देता हूँ दिल पर तुम लगाया न करो स्नेह तो मैं भी करता हूँ फिर भी, ……चलो अब छोड़ो ……… बस अब मान जाओ। ∼ गगन गुप्ता ‘स्नेह’

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धुंधले सपने – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

मेरे कैनवास पर कुछ धुंधले से चित्र उकर आए हैं यादों में बसे कुछ अनछुए से साए हैं तूलिका, एक प्लेट में कुछ रंग लाल, पीला, नीला, सफेद… मेरे सामने पड़े हैं और ये कह हैं रहे भर दो इन्हें चित्रों में और खोल लो आज दिल की तहें। अगर मैं लाल रंग उठाता हूं तो बरबस मां का ध्यान …

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