पंचम सर्ग: सगवक्ष भरा रहता अकबर का सुरभित जय–माला से। सारा भारत भभक रहा था क्रोधानल–ज्वाला से ॥१॥ रत्न–जटित मणि–सिंहासन था मण्डित रणधीरों से। उसका पद जगमगा रहा था राजमुकुट–हीरों से ॥२॥ जग के वैभव खेल रहे थे मुगल–राज–थाती पर। फहर रहा था अकबर का झण्डा नभ की छाती पर ॥३॥ यह प्रताप यह विभव मिला, पर एक मिला था …
Read More »हल्दीघाटी: चतुर्थ सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
चतुर्थ सर्ग: सगकाँटों पर मृदु कोमल फूल, पावक की ज्वाला पर तूल। सुई–नोक पर पथ की धूल, बनकर रहता था अनुकूल ॥१॥ बाहर से करता सम्मान, बह अजिया–कर लेता था न। कूटनीति का तना वितान, उसके नीचे हिन्दुस्तान ॥२॥ अकबर कहता था हर बार – हिन्दू मजहब पर बलिहार। मेरा हिन्दू स्ो सत्कार; मुझसे हिन्दू का उपकार ॥३॥ यही मौलवी …
Read More »हल्दीघाटी: तृतीय सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
तृतीय सर्ग: अखिल हिन्द का था सुल्तान, मुगल–राज कुल का अभिमान। बढ़ा–चढ़ा था गौरव–मान, उसका कहीं न था उपमान ॥१॥ सबसे अधिक राज विस्तार, धन का रहा न पारावार। राज–द्वार पर जय जयकार, भय से डगमग था संसार ॥२॥ नभ–चुम्बी विस्तृत अभिराम, धवल मनोहर चित्रित–धाम। भीतर नव उपवन आराम, बजते थे बाजे अविराम ॥३॥ संगर की सरिता कर पार कहीं …
Read More »हल्दीघाटी: द्वितीय सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
द्वितीय सर्ग: सगहिलमिल कर उन्मत्त प्रेम के लेन–देन का मृदु–व्यापार। ज्ञात न किसको था अकबर की छिपी नीति का अत्याचार ॥१॥ अहो, हमारी माँ–बहनों से सजता था मीनाबाज़ार। फैल गया था अकबर का वह कितना पीड़ामय व्यभिचार ॥२॥ अवसर पाकर कभी विनय–नत, कभी समद तन जाता था। गरम कभी जल सा, पावक सा कभी गरम बन जाता था ॥३॥ मानसिंह …
Read More »हल्दीघाटी: प्रथम सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय
प्रथम सर्ग: वण्डोली है यही, यहीं पर है समाधि सेनापति की। महातीर्थ की यही वेदिका, यही अमर–रेखा स्मृति की ॥१॥ एक बार आलोकित कर हा, यहीं हुआ था सूर्य अस्त। चला यहीं से तिमिर हो गया अन्धकार–मय जग समस्त ॥२॥ आज यहीं इस सिद्ध पीठ पर फूल चढ़ाने आया हूँ। आज यहीं पावन समाधि पर दीप जलाने आया हूँ ॥३॥ …
Read More »दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना – साहिर लुधियानवी
दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना जहाँ नहीं चैना वहाँ नहीं रहना दुखी मन… दर्द हमारा कोई न जाने अपनी गरज के सब हैं दीवाने किसके आगे रोना रोएं देस पराया लोग बेगाने दुखी मन… लाख यहाँ झोली फैला ले कुछ नहीं देंगे इस जग वाले पत्थर के दिल मोम न होंगे चाहे जितना नीर बहाले दुखी मन… अपने लिये …
Read More »Papa Private Limited
Johny Johny… Yes papa! Private job… Yes papa! Lot of tension.. Yes papa! Too much work… Yes papa! Family life… No papa! BP-Sugar.. High papa! Yearly bonus.. Joke papa! Monthly pay.. Low papa! Personal life.. Lost papa! Weekly off! Ha! Ha! Ha!. ~ Shared on WhatsApp
Read More »चाँद ने कुछ कहा – आनंद बक्षी
चाँद ने कुछ कहा रात ने कुछ सुना… तू भी सुन बेखबर प्यार कर ओह हो हो प्यार कर आई है चाँदनी मुझसे कहने येही… मेरी गली मेरे घर प्यार कर ओह हो हो प्यार कर चाँद ने कुछ कहा रात ने कुछ सुना तू भी सुन बेखबर प्यार कर ओह हो हो प्यार कर क्या कहू क्या पता बात …
Read More »चिड़ियों का बाज़ार – प्रतिभा सक्सेना
चिड़ियों ने बाज़ार लगाया, एक कुंज को ख़ूब सजाया तितली लाई सुंदर पत्ते, मकड़ी लाई कपड़े-लत्ते बुलबुल लाई फूल रँगीले, रंग-बिरंगे पीले-नीले तोता तूत और झरबेरी, भर कर लाया कई चँगेरी पंख सजीले लाया मोर, अंडे लाया अंडे चोर गौरैया ले आई दाने, बत्तख सजाए ताल-मखाने कोयल और कबूतर कौआ, ले कर अपना झोला झउआ करने को निकले बाज़ार, ठेले …
Read More »मुझ पर पाप कैसे हो – धर्मवीर भारती
अगर मैंने किसी के होठ के पाटल कभी चूमे अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे महज इससे किसी का प्यार मुझको पाप कैसे हो? महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो? तुम्हारा मन अगर सींचूँ गुलाबी तन अगर सीचूँ तरल मलयज झकोरों से! तुम्हारा चित्र खींचूँ प्यास के रंगीन डोरों से कली-सा तन, किरन-सा …
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