Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

कोशिश कर, हल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा

कोशिश कर, हल निकलेगा। आज नही तो, कल निकलेगा। अर्जुन के तीर सा सध, मरूस्थल से भी जल निकलेगा।। मेहनत कर, पौधो को पानी दे, बंजर जमीन से भी फल निकलेगा। ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे, फौलाद का भी बल निकलेगा।। जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को, गरल के समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा। कोशिशें जारी रख कुछ कर …

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अकड़ – दीनदयाल शर्मा

अकड़ - दीनदयाल शर्मा

अकड़-अकड़ कर क्यों चलते हो चूहे चिंटूराम, ग़र बिल्ली ने देख लिया तो करेगी काम तमाम, चूहा मुक्का तान कर बोला नहीं डरूंगा दादी मेरी भी अब हो गई है इक बिल्ली से शादी। ∼ दीनदयाल शर्मा

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अपुन बोला तू मेरी लैला – जोश

अपुन बोला तू मेरी लैला - जोश

अपुन बोला तू मेरी लैला वो बोली फेंकता है साला अपुन जब ही सच्ची बोलता ऐ उसको झूठ काई को लगता है॥ ये उसका स्टाइल होइंगा होठों पे ना दिल में हाँ होइंगा ये उसका स्टाइल होइंगा होठों पे ना दिल में हाँ होइंगा आज नहीं तो कल बोलेगी ऐ तू टेंशन काई को लेता रे॥ अपुन बोला तू मेरी …

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अपना गाँव – निवेदिता जोशी

अपना गाँव - निवेदिता जोशी

मैं अपने गाँव जाना चाहती हूँ… जाड़े की नरम धूप और वो छत का सजीला कोना नरम-नरम किस्से मूँगफली के दाने और गुदगुदा बिछौना मैं अपने गाँव जाना चाहती हूँ… धूप के साथ खिसकती खटिया किस्सों की चादर व सपनों की तकिया मैं अपने गाँव जाना चाहती हूँ… दोस्तों की खुसफुसाहट हँसी के ठहाके यदा कदा अम्मा व जिज्जी के …

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अनकहे गीत – मनोहर लाल ‘रत्नम’

प्रेम के गीत अब तक हैं गाये गये। दर्द के गीत तो, अनकहे रह गये॥ द्रोपदी पिफर सभा में, झुकाये नजर, पाण्डवों का कहां खो गया वो असर। फिर शिशुपाल भी दे रहा गालियां, कृष्ण भी देख कर देखते रह गये। दर्द के गीत तो, अनकहे रह गये॥ विष जो तुमने दिया, उसको मैंने पिया, पीर की डोर से, सारा …

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अँधेरे का दीपक – हरिवंश राय बच्चन

अँधेरे का दीपक - हरिवंश राय बच्चन

है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है? कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था, भावना के हाथ से जिसमें वितानों को तना था, स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा, स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था, ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर कंकड़ों को एक अपनी शांति की …

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अनोखा घर – प्रतिक दुबे

सबका अपना होता है, सबको रहना होता है, और जहाँ सुख-दुःख होता है, वह अनोखा घर होता है। चार-दीवार के अंदर रहते सब, समय पता नही बीत जाता है कब, वह अनोखा घर होता है। जहाँ सब अपना काम करते है, मिल-जुलकर साथ हमेशा रहते है, वह अनोखा घर होता है। आज मनुष्य की हरकतों से घर बिखरता जा रहा …

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अमरुद बन गए – डॉ. श्री प्रसाद

अमरुद बन गए - डॉ. श्री प्रसाद

आमों के अमरुद बन गए अमरूदों के केले मैंने यह सब कुछ देखा है आज गया था मेले बकरी थी बिलकुल छोटी सी हाथी की थी बोली मगर जुखाम नहीं सह पाई खाई उसने गोली छत पर होती थी खों खों खों मगर नहीं था बन्दर बिल्ली ही यों बोल रही थी परसो मेरी छत पर गाय नहीं करती थी …

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आलपिन का सिर होता – रामनरेश त्रिपाठी

आलपिन के सर होता पर बाल नहीं होता है एक, कुर्सी के टाँगे है पर फूटबाल नहीं सकती है फेंक। कंघी के है दांत मगर वह चबा नहीं सकती खाना, गला सुराही का है पतला किन्तु न गए सकती गाना। जूते के है जीभ मगर वह स्वाद नही चख सकता है, आँखे रखते हुए नारियल कभी न कुछ लिख सकता …

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ऐसा नया साल – मनोज भावुक

अबकी आए ऐसा नया साल, हो जाए हर गाँव शहर खुशहाल। भइया के मुँह से फूटे संगीत, भौजी के कंगना से खनके ताल। आए रे आए ऐसा मधुमास, फूल खिलाए ठूंठ पेड़ के डाल। झूम-झूम के नाचे मगन किसान, इतना लदरे जौ गेहूँ के बाल। दिन सोना के चाँदी के हो रात, हर अंगना मे ऐसा होए कमाल। मस्ती मे …

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