मैं अकेला था कहाँ अपने सफर में साथ मेरे छांह बन चलती रहीं तुम। तुम कि जैसे चांदनी हो चंद्रमा में आब मोती में, प्रणय आराधना में चाहता है कौन मंजिल तक पहुँचना जब मिले आनंद पथ की साधना में जन्म जन्मों में जला एकांत घर में और बाहर मौन बन जलती रहीं तुम। मैं चला था पर्वतों के पार …
Read More »बोआई का गीत – धर्मवीर भारती
गोरी-गोरी सौंधी धरती-कारे-कारे बीज बदरा पानी दे! क्यारी-क्यारी गूंज उठा संगीत बोने वालो! नई फसल में बोओगे क्या चीज ? बदरा पानी दे! मैं बोऊंगा बीर बहूटी, इन्द्रधनुष सतरंग नये सितारे, नयी पीढियाँ, नये धान का रंग बदरा पानी दे! हम बोएंगे हरी चुनरियाँ, कजरी, मेहँदी राखी के कुछ सूत और सावन की पहली तीज! बदरा पानी दे! ∼ धर्मवीर …
Read More »बुनी हुई रस्सी – भवानी प्रसाद मिश्र
बुनी हुई रस्सी को घुमाएं उल्टा तो वह खुल जाती है और अलग अलग देखे जा सकते हैं उसके सारे रेशे मगर कविता को कोई खोले ऐसा उल्टा तो साफ नहीं होंगे हमारे अनुभव इस तरह क्योंकि अनुभव तो हमें जितने इसके माध्यम से हुए हैं उससे ज्यादा हुए हैं दूसरे माध्यमों से व्यक्त वे जरूर हुए हैं यहां कविता …
Read More »ब्याह की शाम – अजित कुमार
ब्याह की यह शाम‚ आधी रात को भाँवर पड़ेंगी। आज तो रो लो तनिक‚ सखि। गूँजती हैं ढोलके– औ’ तेज स्वर में चीखते– से हैं खुशी के गीत। बंद आँखों को किये चुपचाप‚ सोचती होगी कि आएंगे नयन के मीत सज रहे होंगे नयन पर हास‚ उठ रहे होंगे हृदय में आश औ’ विश्वास के आधार नाचते होंगे पलक पर …
Read More »बोलो माँ – अंजना भट्ट
तिनका तिनका जोड़ा तुमने अपना घर बनाया तुमने, अपने तन के सुंदर पौधे पर हम बच्चों को फूल सा सजाया तुमने, हमारे सब दुख उठाये और हमारी खुशियों में सुख ढूँढा तुमने, हमारे लिये लोरियाँ गाईं और हमारे सपनों में खुद के सपने सजाए तुमने। हम बच्चे अपनी राह चले गये, और तुम, दूर खड़ी अपना मीठा आशीर्वाद देती रहीं। …
Read More »अन्त में हम दोनों ही होंगे
भले ही झगड़े, गुस्सा करे, एक दूसरे पर टूट पड़े एक दूसरे पर दादागिरि करने के लिये, अन्त में हम दोनों ही होंगे जो कहना हे, वह कह ले, जो करना हे, वह कर ले एक दुसरे के चश्मे और लकड़ी ढूँढने में, अन्त में हम दोनों ही होंगे मैं रूठूं तो तुम मना लेना, तुम रूठो ताे मै मना …
Read More »हर घट से: चिंतन पर नीरज की प्रेरणादायक हिंदी कविता
This is a famous poem of Niraj. One has to be selective in life, put in sustained efforts and be patient in order to succeed. हर घट से: गोपाल दास नीरज हर घट से अपनी प्यास बुझा मत ओ प्यासे! प्याला बदले तो मधु ही विष बन जाता है! हैं बरन बरन के फूल धूल की बगिया में लेकिन सब ही …
Read More »कलाकार और सिपाही – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
वे तो पागल थे जो सत्य, शिव, सुंदर की खोज में अपने–अपने सपने लिये नदियों, पहाड़ों, बियाबानों, सुनसानों मे फटे–हाल भूखे प्यासे, टकराते फिरते थे, अपने से जूझते थे, आत्मा की आज्ञा पर मानवता के लिये, शिलाएँ, चट्टानें, पर्वत काट–काट कर मूर्तियाँ, मन्दिर, और गुफाएँ बनाते थे। किंतु ऐ दोस्त! इनको मैं क्या कहूँ, जो मौत की खोज में अपनी–अपनी …
Read More »जब जब सिर उठाया – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
जब-जब सिर उठाया अपनी चौखट से टकराया। मस्तक पर लगी चोट, मन में उठी कचोट, अपनी ही भूल पर मैं, बार-बार पछताया। जब-जब सिर उठाया अपनी चौखट से टकराया। दरवाजे घट गए या मैं ही बडा हो गया, दर्द के क्षणों में कुछ समझ नहीं पाया। जब-जब सिर उठाया अपनी चौखट से टकराया। “शीश झुका आओ” बोला बाहर का आसमान, …
Read More »साकेत: दशरथ का श्राद्ध, राम भारत संवाद – मैथिली शरण गुप्त
उस ओर पिता के भक्ति-भाव से भरके, अपने हाथों उपकरण इकट्ठे करके, प्रभु ने मुनियों के मध्य श्राद्ध-विधि साधी, ज्यों दण्ड चुकावे आप अवश अपराधी। पाकर पुत्रों में अटल प्रेम अघटित-सा, पितुरात्मा का परितोष हुआ प्रकटित-सा। हो गई होम की शिखा समुज्ज्वल दूनी, मन्दानिल में मिल खिलीं धूप की धूनी। अपना आमंत्रित अतिथि मानकर सबको, पहले परोस परितृप्ति-दान कर सबको, …
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