Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

जाने क्या हुआ – ओम प्रभाकर

जाने क्या हुआ कि दिन काला सा पड़ गया। चीज़ों के कोने टूटे बातों के स्वर डूब गये हम कुछ इतना अधिक मिले मिलते–मिलते ऊब गये आँखों के आगे सहसा– जाला–सा पड़ गया। तुम धीरे से उठे और कुछ बिना कहे चल दिये हम धीरे से उठे स्वयं को– बिना सहे चल दिये खुद पर खुद के शब्दों का ताला …

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इतिहास की परीक्षा – ओम प्रकाश आदित्य

इतिहास परीक्षा थी उस दिन‚ चिंता से हृदय धड़कता था, थे बुरे शकुन घर से चलते ही‚ बाँया हाथ फड़कता था। मैंने सवाल जो याद किये‚ वे केवल आधे याद हुए, उनमें से भी कुछ स्कूल तलक‚ आते आते बर्बाद हुए। तुम बीस मिनट हो लेट‚ द्वार पर चपरासी ने बतलाया, मैं मेल–ट्रेन की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया। …

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इस घर का यह सूना आंगन – विजय देव नारायण साही

सच बतलाना‚ तुम ने इस घर का कोना–कोना देख लिया कुछ नहीं मिला! सूना आंगन‚ खाली कमरे यह बेगानी–सी छत‚ पसीजती दीवारें यह धूल उड़ाती हुई चैत की गरम हवा‚ सब अजब–अजब लगता होगा टूटे चीरे पर तुलसी के सूखे कांटे बेला की मटमैली डालें‚ उस कोने में अधगिरे घरौंदे पर गेरू से बने हुए सहमी‚ शरारती आंखों से वे …

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रहीम के दोहे

‘रहिमन’ धागा प्रेम को‚ मत तोड़ो चटकाय टूटे से फिर ना मिले‚ मिले गांठ पड़ जाय। रहीम कहते हैं कि प्रेम का धागा न तोड़ो। टूटने पर फिर नहीं जुड़ेगा और जुड़ेगा तो गांठ पड़ जाएगी। गही सरनागति राम की‚ भवसागर की नाव ‘रहिमन’ जगत–उधार को‚ और न कोऊ उपाय राम नाम की नाव ही भवसागर से पार लगाती है। …

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फूले फूल बबूल – नरेश सक्सेना

फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार। वही शाम पीले पत्तों की गुमसुम और उदास वही रोज का मन का कुछ — खो जाने का अहसास टाँग रही है मन को एक नुकीले खालीपन से बहुत दूर चिड़ियों की कोई उड़ती हुई कतार। फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार। जाने कैसी–कैसी बातें सुना रहे सन्नाटे सुन कर सचमुच अंग–अंग …

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प्रभाती – रघुवीर सहाय

आया प्रभात चंदा जग से कर चुका बात गिन गिन जिनको थी कटी किसी की दीर्घ रात अनगिन किरणों की भीड़ भाड़ से भूल गये पथ‚ और खो गये वे तारे। अब स्वप्नलोक के वे अविकल शीतल अशोक पल जो अब तक वे फैल फैल कर रहे रोक गतिवान समय की तेज़ चाल अपने जीवन की क्षण–भंगुरता से हारे। जागे …

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प्रेम–पगी कविता – आशुतोष द्विवेदी

दिन में बन सूर्यमुखी निकली‚ कभी रात में रात की रानी हुई। पल में तितली‚ पल में बिजली‚ पल में कोई गूढ़ कहानी हुई। तेरे गीत नये‚ तेरी प्रीत नयी‚ जग की हर रीत पुरानी हुई। तेरी बानी के पानी का सानी नहीं‚ ये जवानी बड़ी अभिमानी हुई। तुम गंध बनी‚ मकरंद बनी‚ तुम चंदन वृक्ष की डाल बनी। अलि …

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पुण्य फलिभूत हुआ – अमरनाथ श्रीवास्तव

पुण्य फलिभूत हुआ कल्प है नया सोने की जीभ मिली स्वाद तो गया छाया के आदी हैं गमलों के पौधे जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे अपनी जड़ भूल गई द्वार की जया हवा और पानी का अनुकूलन इतना बंद खिड़किया बाहर की सोचें कितना अपनी सुविधा से है आँख में दया मंजिल दर मंजिल है एक ज़हर धीमा …

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पुरुस्कार – शकुंतला कालरा

गीतों का सम्मेलन होगा, तुम सबको यह बात बतानी, अकड़–अकड़ कर मेंढक बोले, तुम भी चलना कोयल रानी। मीकू बंदर, चीकू मेंढक मोती कुत्ता, गए बुलाए जाकर बैठ गए कुर्सी पर, वे निर्णायक बन कर आए। आए पंछी दूर–दूर से बोली उनकी प्यारी–प्यारी, रंगमंच पर सब जा बैठे, गाया सबने बारी–बारी। चहक–चहक कर बुलबुल आई, गाया उसने हौले–हौले कैसा जादू …

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मास्टर की छोरी – प्रतिभा सक्सेना

विद्या का दान चले, जहाँ खुले हाथ कन्या तो और भी सरस्वती की जात और सिर पर पिता मास्टर का हाथ। कंठ में वाणी भर, पहचान लिये अक्षर शब्दों की रचना, अर्थ जानने का क्रम समझ गई शब्दों के रूप और भाव और फिर शब्दों से आगे पढ़े मन जाने कहाँ कहाँ के छोर, गहरी गहरी डूब तक बन गया व्यसन, मास्टर की छोरी। पराये …

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