द्वार खड़ा हरसिंगार फूल बरसाता है तुम्हारे स्वागत में, पधारो प्रिय पुत्र- वधू। ममता की भेंट लिए खड़ी हूँ कब से, सुनने को तुम्हारे मृदु पगों की रुनझुन! सुहाग रचे चरण तुम्हारे, ओ कुल-लक्ष्मी, आएँगे चह देहरी पार कर सदा निवास करने यहाँ, श्री-सुख-समृद्धि बिखेरते हुए। अब तक जो मैं थी, तुम हो, जो कुछ मेरा है तुम्हें अर्पित! ग्रहण …
Read More »सोच सुखी मेरी छाती है – हरिवंश राय बच्चन
दूर कहां मुझसे जाएगी केसे मुझको बिसराएगी मेरे ही उर की मदिरा से तो, प्रेयसी तू मदमाती है सोच सुखी मेरी छाती है। मैंने कैसे तुझे गंवाया जब तुझको अपने मेँ पाया? पास रहे तू किसी ओर के, संरक्षित मेरी थाती है सोच सुखी मेरी छाती है। तू जिसको कर प्यार, वही मैं अपने में ही आज नही मैं किसी मूर्ति …
Read More »राख – कैफ़ी आज़मी
जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें मुझमें राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है अब न वो प्यार न उस प्यार की यादें बाकी आग यूँ दिल में लगी कुछ न रहा कुछ न बचा जिसकी तस्वीर निगाहों में लिये बैठी हो मैं वो दिलदार नहीं उसकी हूँ खामोश चिता जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें …
Read More »रात और शहनाई – रमानाथ अवस्थी
सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात। मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई ज़हर भरी जादूगरनी सी मुझको लगी जुन्हाई मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई दूर कहीं दो आंखें भर भर आईं सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात। गगन बीच …
Read More »रंजिश ही सही – अहमद फ़राज़
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिये आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ कुछ तो मेरे पिंदारे–मुहब्बत का भरम रख तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिये आ पहले से मिरासिम न सही फिर भी कभी तो रस्मो–रहे–दुनियाँ ही निभाने के लिये आ किस–किस को बतााएंगे जुदाई का सबब हम तू मुझसे खफ़ा …
Read More »रेखा चित्र – प्रभाकर माचवे
सांझ है धुंधली‚ खड़ी भारी पुलिया देख‚ गाता कोई बैठ वाँ‚ अन्ध भिखारी एक। दिल का विलकुल नेक है‚ करुण गीत की टेक– “साईं के परिचै बिना अन्तर रहिगौ रेख।” (उसे काम क्या तर्क से‚ एक कि ब्रह्म अनेक!) उसकी तो सीधी सहज कातर गहिर गुहारः चाहे सारा अनसुनी कर जाए संसार! कोलाहल‚ आवागमन‚ नारी नर बेपार‚ वहीं रूप के …
Read More »रोज़ ज़हर पीना है – श्रीकृष्ण तिवारी
रोज़ ज़हर पीना है, सर्प–दंश सहना है, मुझको तो जीवन भर चंदन ही रहना है। वक़्त की हथेली पर प्रश्न–सा जड़ा हूं मैं, टूटते नदी–तट पर पेड़ सा खड़ा हूं मैं, रोज़ जलन पीनी है, अग्नि–दंश सहना है, मुझको तो लपटों में कंचन ही रहना है। शब्द में जनमा हूं अर्थ में धंसा हूं मैं, जाल में सवालों के आज …
Read More »घर वापसी – राजनारायण बिसारिया
घर लौट के आया हूँ, यही घर है हमारा परदेश बस गए तो तीर न मारा। ठंडी थीं बर्फ की तरह नकली गरम छतें, अब गुनगुनाती धुप का छप्पर है हमारा। जुड़ता बड़ा मुश्किल से था इंसान का रिश्ता मौसम की बात से शुरू औ’ ख़त्म भी, सारा। सुविधाओं को खाएँ–पीएँ ओढ़ें भी तो कब तक अपनों के बिना होता …
Read More »इधर भी गधे हैं‚ उधर भी गधे हैं – ओम प्रकाश आदित्य
इधर भी गधे हैं‚ उधर भी गधे हैं जिधर देखता हूं‚ गधे ही गधे हैं गधे हंस रहे‚ आदमी रो रहा है हिंदोस्तां में ये क्या हो रहा है जवानी का आलम गधों के लिये है ये रसिया‚ ये बालम गधों के लिये है ये दिल्ली‚ ये पालम गधों के लिये हैै ये संसार सालम गधों के लिये है पिलाए …
Read More »हम न रहेंगे – केदार नाथ अग्रवाल
हम न रहेंगे तब भी तो यह खेत रहेंगे, इन खेतों पर घन लहराते शेष रहेंगे, जीवन देते प्यास बुझाते माटी को मदमस्त बनाते श्याम बदरिया के लहराते केश रहेंगे। हम न रहेंगे तब भी तो रतिरंग रहेंगे, लाल कमल के साथ पुलकते भृंग रहेंगे, मधु के दानी मोद मनाते भूतल को रससिक्त बनाते लाल चुनरिया में लहराते अंग रहेंगे। …
Read More »