Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

हरी मिर्च – सत्यनारायण शर्मा ‘कमल’

खाने की मेज़ पर आज एक लम्बी छरहरी हरी मिर्च अदा से कमर टेढ़ी किये चेहरे पर मासूमियत लिये देर से झाँक रही मानो कह रही सलोनी सुकुमार हूँ जायका दे जाऊंगी आजमा कर देखिये सदा याद आऊंगी प्यार से उठाई उँगलियों से सहलाई ओठों से लगाई ज़रा सी चुटकी खाई अरे वह तो मुंहजली निकली डंक मार कर सारा …

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तुम्हारी हंसी – कुसुम सिन्हा

कैसी है तुम्हारी हंसी? ऊंचाई से गिरती जलधारा सी? कल कल छल छल करती मैं चकित सी देखती रह गई सारी नीरवता सारा विषाद तुम्हारी हंसी की धारा में बह गए तुम्हारी हंसी है सावन की फुहार भीगे मन प्राण नीरस मरुथल से मन पर जैसे बहार की हरियाली तुम्हारी हंसी है मावस के बाद की दूधिया चांदनी या फिर …

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सुबह – श्री प्रसाद

सूरज की किरणें आती हैं, सारी कलियाँ खिल जाती हैं, अंधकार सब खो जाता है, सब जग सुंदर हो जाता है। चिड़ियाँ गाती हैं मिलजुल कर, बहते हैं उनके मीठे स्वर, ठंडी ढंडी हवा सुहानी, चलती है जैसे मस्तानी। ये प्रातः की सुख­बेला है, धरती का सुख अलबेला है, नई ताज़गी नई कहानी, नया जोश पाते हैं प्राणी। खो देते …

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सूर्य की अब किसी को जरूरत नहीं – कुमार शिव

सूर्य की अब किसी को जरूरत नहीं जुगनुओं को अंधेरे में पाला गया फ्यूज़ बल्बों के अदभुत समारोह में रोशनी को शहर से निकाला गया। बुर्ज पर तम के झंडे फहरने लगे सांझ बनकर भिखारिन भटकती रही होके लज्जित सरेआम बाज़ार में सिर झुकाए–झुकाए उजाला गया। नाम बदले खजूरों नें अपने यहां बन गए कल्प वृक्षों के समकक्ष वे फल …

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तन हुए शहर के – सोम ठाकुर

तन हुए शहर के पर‚ मन जंगल के हुए। शीश कटी देह लिये हम इस कोलाहल में घूमते रहे लेकर विष–घट छलके हुए। छोड़ दीं स्वयं हमने सूरज की उंगलियां आयातित अंधकार के पीछे दौड़कर। देकर अंतिम प्रणाम धरती की गोद को हम जिया किए केवल खाली आकाश पर। ठंडे सैलाब में बहीं बसंत–पीढ़ियां‚ पांव कहीं टिके नहीं इतने हलके …

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तेरे बिन – रमेश गौड़

जैसे सूखा ताल बच रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई, जैसे धूल भरे मेले में चलने लगे साथ तन्हाई, तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ कुछ ऐसा ही है, जैसे सिफ़रों की क़तार बाकी रह जाए बिना इकाई। जैसे ध्रुवतारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए जैसे बरसों बाद मिली चिठ्ठी भी बिना पढ़े घुल जाए तेरे …

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तुम जानो या मैं जानूँ – शंभुनाथ सिंह

जानी अनजानी‚ तुम जानो या मैं जानूँ। यह रात अधूरेपन की‚ बिखरे ख्वाबों की सुनसान खंडहरों की‚ टूटी मेहराबों की खंण्डित चंदा की‚ रौंदे हुए गुलाबों की जो होनी अनहोनी हो कर इस राह गयी वह बात पुरानी – तुम जानो या मैं जानूँ। यह रात चांदनी की‚ धुंधली सीमाओं की आकाश बांधने वाली खुली भुजाओं की दीवारों पर मिलती …

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तुम कभी थे सूर्य – चंद्रसेन विराट

तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये‚ थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये। यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच का‚ थे कभी दुल्हा स्वयं‚ बारातियों तक आ गये। वक्त का पहिया किसे कब‚ कहां कुचले क्या पता‚ थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये। देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं‚ …

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तुम्हारे पत्र – अनिल वर्मा

प्राण जैसे भाव प्यासे होंठ–से अक्षर तुम्हारे पत्र बीतते, बीते पलों की इन्द्रधनुषी याद का संगीतमय जादू या सहज अनुराग के आनंद की कुछ गुनगुनाती धूप की खुशबू रच गये बेकल हृदय के गाँव में पायल बंधे कुछ पाँव किस अधिकार से अक्सर तुम्हारे पत्र प्राण जैसे भाव प्यासे होंठ–से अक्षर तुम्हारे पत्र ∼ अनिल वर्मा

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उम्र बढ़ने पर – महेश चंद्र गुप्त ‘खलिश’

उम्र बढ़ने पर हमें कुछ यूँ इशारा हो गया‚ हम सफ़र इस ज़िंदगी का और प्यारा हो गया। क्या हुआ जो गाल पर पड़ने लगी हैं झुर्रियाँ‚ हर कदम पर साथ अब उनका गवारा हो गया। जुल्फ़ व रुखसार से बढ़ के भी कोई हुस्न है‚ दिल हसीं उनका है ये हमको नज़ारा हो गया। चुक गई है अब जवानी‚ …

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