Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

कौन जाने – बालकृष्ण राव

झुक रही है भूमि बायीं ओर‚ फिर भी कौन जाने‚ नियति की आँखें बचाकर‚ आज धारा दाहिने बह जाए! जाने किस किरण–शर के वरद आघात से निर्वर्ण रेखाचित्र यह बीती निशा का रँग उठे कब‚ मुखर हो कब मूक क्या कह जाए! ‘संभव क्या नहीं है आज?’ लोहित लेखनी प्राची क्षितिज की कर रही है प्रेरणा या प्रश्न अंकित? कौन …

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फिर क्या होगा – बालकृष्ण राव

फिर क्या होगा उसके बाद? उत्सुक हो कर शिशु ने पूछा माँ, क्या होगा उसके बाद? ‘रवि से उज्ज्वल शशि से सुंदर नव किसलयदल से कोमलतर वधू तुम्हारी घर आएगी उस विवाह उत्सव के बाद’ पल भर मुख पर स्मित की रेखा खेल गई, फिर माँ ने देखा कर गंभीर मुखाकृति शिशु ने फिर पूछा ‘क्या उसके बाद?’ ‘फिर नभ …

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मुझको सरकार बनाने दो – अल्हड़ बीकानेरी

जो बुढ्ढे खूसट नेता हैं, उनको खड्डे में जाने दो, बस एक बार, बस एक बार, मुझको सरकार बनाने दो। मेरे भाषण के डंडे से भागेगा भूत गरीबी का, मेरे वक्तव्य सुनें तो झगड़ा मिटे मियां और बीवी का। मेरे आश्वासन के टानिक का एक डोज़ मिल जाए अगर, चंदगी राम को करे चित्त पेशेंट पुरानी टी बी का। मरियल …

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मेरे राम जी – अल्हड़ बीकानेरी

चाल मुझ तोते की बुढ़ापे में बदल गई बदली कहां है मेरी तोती मेरे राम जी बहुएँ हैं घर में‚ मगर निज धोतियों को खुद ही रगड़ कर धोती मेरे राम जी फँसी रही मोह में जवानी से बुढ़ापे तक तोते पे नज़र कब होती मेरे राम जी पहले तो पाँच बेटी–बेटों को सुलाया साथ अब सो रहे हैं पोती–पोते …

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सूरज डूब चुका है – अजित कुमार

सूरज डूब चुका है‚ मेरा मन दुनिया से ऊब चुका है। सुबह उषा किरणों ने मुझको यों दुलराया‚ जैसे मेरा तन उनके मन को हो भाया‚ शाम हुई तो फेरीं सबने अपनी बाहें‚ खत्म हुई दिन भर की मेरी सारी चाहें‚ धरती पर फैला अंधियारा‚ रंग बिरंगी आभावाला सूरज डूब चुका है‚ मेरा मन दुनिया से ऊब चुका है। फूलों …

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शीशे का घर – श्रीकृष्ण तिवारी

जब तक यह शीशे का घर है तब तक ही पत्थर का डर है आँगन–आँगन जलता जंगल द्वार–द्वार सर्पों का पहरा बहती रोशनियों में लगता अब भी कहीं अँधेरा ठहरा। जब तक यह बालू का घर है तब तक ही लहरों का डर है टहनी–टहनी टंगा हुआ है जख्म भरे मौसम का चेहरा गलियों में सन्नाटा पसरा। जब तक यह …

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सूने घर में – सत्यनारायण

सूने घर में कोने कोने मकड़ी बुनती जाल। अम्मा बिन आंगन सूना है बाबा बिन दालान‚ चिठ्ठी आई है बहिना की सांसत में है जान‚ नित नित नये तकादे भेजे बहिना की ससुराल। भइया तो परदेस बिराजे कौन करे अब चेत‚ साहू के खाते में बंधक है बीघे भर खेत‚ शायद कुर्की जब्ती भी हो जाए अगले साल। ओर–छोर छप्पर …

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सोने के हिरन – कन्हैया लाल वाजपेयी

आधा जीवन जब बीत गया बनवासी सा गाते रोते तब पता चला इस दुनियां में सोने के हिरन नहीं होते। संबंध सभी ने तोड़ लिये चिंता ने कभी नहीं छोड़े सब हाथ जोड़ कर चले गये पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े। सूनी घाटी में अपनी ही प्रतिध्वनियों ने यों छला हमे हम समझ गये पाषाणों के वाणी मन नयन नहीं …

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स्मृति बच्चों की – वीरेंद्र मिश्र

अब टूट चुके हैं शीशे उन दरवाज़ों के जो मन के रंग महल के दृढ़ जड़ प्रहरी हैं जिनको केवल हिलना–डुलना ही याद रहा मस्तक पर चिंता की तलहटियाँ गहरी हैं कोई निर्मम तूफान सीढ़ियों पर बैठा थककर सुस्ताकर अंधकार में ऊँघ रहा ऊपर कोई नन्हें–से बादल का टुकड़ा कुछ खोकर जैसे हर तारे को सूंघ रहा यह देख खोजने …

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तुम्हारा साथ – रामदरश मिश्र

सुख के दुख के पथ पर जीवन छोड़ता हुआ पदचाप गया, तुम साथ रहीं, हँसते–हँसते इतना लम्बा पथ नाप गया। तुम उतरीं चुपके से मेरे यौवन वन में बन कर बहार, गुनगुना उठे भौंरे, गुंजित हो कोयल का आलाप गया। स्वप्निल स्वप्निल सा लगा गगन रंगों में भीगी–सी धरती, जब बही तुम्हारी हँसी हवा–सी पत्ता–पत्ता काँप गया। जाने कितने दिन …

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