Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

खून फिर खून है – साहिर लुधियानवी

ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है खून फिर खून है टपकेगा तो जम जाएगा तुमने जिस खून को मक्तल में दबाना चाहा आज वह कूचा–ओ–बाज़ार में आ निकला है कहीं शोला, कहीं नारा, कहीं पत्थर बनकर खून चलता है तो रुकता नहीं संगीनों से सर उठाता है तो दबता नहीं आईनों से जिस्म की मौत कोई …

Read More »

उठो लाल अब आँखें खोलो – शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

उठो लाल अब आंखें खोलो अपनी बदहालत पर रोलो पानी तो उपलब्ध नहीं है चलो आंसुओं से मुँह धोलो॥ कुम्हलाये पौधे बिन फूले सबके तन सिकुड़े मुंह फूले बिजली बिन सब काम ठप्प है बैठे होकर लँगड़े लूले बेटा उठो और जल्दी से नदिया से कुछ पानी ढ़ोलो॥ बीते बरस पचास प्रगति का सूरज अभी नहीं उग पाया जिसकी लाठी …

Read More »

फूल और मिट्टी – वीरबाला भावसार

मिट्टी को देख फूल हँस पड़ा मस्ती से लहरा कर पंखुरियाँ बोला वह मिट्टी से– उफ मिट्टी! पैरों के नीचे प्रतिक्षण रौंदी जा कर भी कैसे होता है संतोष तुम्हें? उफ मिट्टी! मैं तो यह सोच भी नहीं सकता हूं क्षणभर‚ स्वर में कुछ और अधिक बेचैनी बढ़ आई‚ ऊंचा उठ कर कुछ मृदु–पवन झकोरों में उत्तेजित स्वर में‚ वह …

Read More »

नींद की पुकार – वीरबाला भावसार

नींद बड़ी गहरी थी, झटके से टूट गई तुमने पुकारा, या द्वार आकर लौट गए। बार बार आई मैं, द्वार तक न पाया कुछ बार बार सोई पर, स्वप्न भी न आया कुछ अनसूया अनजागा, हर क्षण तुमको सौंपा तुमने स्वीकारा, या द्वार आकर लौट गए। चुप भी मैं रह न सकी, कुछ भी मैं कह न सकी जीवन की …

Read More »

है मन का तीर्थ बहुत गहरा – वीरबाला भावसार

है मन का तीर्थ बहुत गहरा। हंसना‚ गाना‚ होना उदास‚ ये मापक हैं न कभी मन की गहराई के। इनके नीचे‚ नीचे‚ नीचे‚ है कुछ ऐसा‚ जो हरदम भटका करता है। हंसते हंसते‚ बातें करते‚ एक बहुत उदास थकी सी जो निश्वास‚ निकल ही जाती है‚ मन की भोली गौरैया को जो कसे हुए है भारी भयावना अजगर‚ ये सांस …

Read More »

टूटने का सुख – भवानी प्रसाद मिश्र

बहुत प्यारे बन्धनों को आज झटका लग रहा है, टूट जायेंगे कि मुझ को आज खटका लग रहा है, आज आशाएं कभी भी चूर होने जा रही हैं, और कलियां बिन खिले कुछ चूर होने जा रही हैं, बिना इच्छा, मन बिना, आज हर बंधन बिना, इस दिशा से उस दिशा तक छूटने का सुख! टूटने का सुख। शरद का …

Read More »

सुख का दुख – भवानी प्रसाद मिश्र

जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है, इस बात का मुझे बड़ा दुख नहीं है, क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ, बड़े सुख आ जाएं घर में तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं। यहां एक बात इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि, बड़े सुखों को देखकर मेरे बच्चे सहम जाते हैं, मैंने बड़ी कोशिश की …

Read More »

पहली बातें – भवानी प्रसाद मिश्र

अब क्या होगा इसे सोच कर, जी भारी करने में क्या है, जब वे चले गए हैं ओ मन, तब आँखें भरने में क्या है। जो होना था हुआ, अन्यथा करना सहज नहीं हो सकता, पहली बातें नहीं रहीं, तब रो रो कर मरने में क्या है? सूरज चला गया यदि बादल लाल लाल होते हैं तो क्या, लाई रात …

Read More »

कुम्हलाये हैं फूल – ठाकुर गोपाल शरण सिंह

कुम्हलाये हैं फूल अभी–अभी तो खिल आये थे कुछ ही विकसित हो पाये थे वायु कहां से आकर इन पर डाल गयी है धूल कुम्हलाये हैं फूल जीवन की सुख–घड़ी न पायी भेंट न भ्रमरों से हो पायी निठुर–नियति कोमल शरीर में हूल गयी है शूल कुम्हलाये हैं फूल नहीं विश्व की पीड़ा जानी निज छवि देख हुए अभिमानी हँसमुख …

Read More »

मुझे अकेला ही रहने दो – ठाकुर गोपाल शरण सिंह

मुझे अकेला ही रहने दो। रहने दो मुझको निर्जन में, काँटों को चुभने दो तन में, मैं न चाहता सुख जीवन में, करो न चिंता मेरी मन में, घोर यातना ही सहने दो, मुझे अकेला ही रहने दो। मैं न चाहता हार बनूं मैं, या कि प्रेम उपहार बनूं मैं, या कि शीश शृंगार बनूं मैं, मैं हूं फूल मुझे …

Read More »