खिलौने ले लो बाबूजी‚ खिलौने प्यारे प्यारे जी‚ खिलौने रंग बिरंगे हैं‚ खिलौने माटी के हैं जी। इधर भी देखें कुछ थोड़ा‚ गाय हाथी लें या घोड़ा‚ हरी टोपी वाला बंदर‚ सेठ सेठानी का जोड़ा। गुलाबी बबुआ हाथ पसार‚ बुलाता बच्चों को हर बार‚ सिपाही हाथ लिये तलवार‚ हरी काली ये मोटर कार। सजी दुल्हन सी हैं गुड़ियां‚ चमकते रंगों …
Read More »कछुआ जल का राजा है – राजीव कृष्ण सक्सेना
कछुआ जल का राजा है, कितना मोटा ताजा है। हाथ लगाओ कूदेगा, बाहर निकालो ऊबेगा। सबको डांट लगाएगा, घर का काम कराएगा। बच्चों के संग खेलेगा, पूरी मोटी बेलेगा। चाट पापड़ी खाएगा, ऊंचे सुर में गाएगा। ∼ राजीव कृष्ण सक्सेना
Read More »गर्मी और आम – राजीव कृष्ण सक्सेना
गर्मी आई लाने आम घर से निकले बुद्धूराम नहीं लिया हाथों में छाता गर्म हो गया उनका माथा दौड़े दौड़े घर को आए पानी डाला खूब नहाए फिर वो बोले हे भगवान कैसे लाऊं अब मैं आम? ∼ राजीव कृष्ण सक्सेना
Read More »जितना नूतन प्यार तुम्हारा – स्नेहलता स्नेह
जितना नूतन प्यार तुम्हारा उतनी मेरी व्यथा पुरानी एक साथ कैसे निभ पाये सूना द्वार और अगवानी। तुमने जितनी संज्ञाओं से मेरा नामकरण कर डाला मैंनें उनको गूँथ-गूँथ कर सांसों की अर्पण की माला जितना तीखा व्यंग तुम्हारा उतना मेरा अंतर मानी एक साथ कैसे रह पाये मन में आग, नयन में पानी। कभी कभी मुस्काने वाले फूल-शूल बन जाया …
Read More »मीलों तक – कुंवर बेचैन
जिंदगी यूँ भी जली‚ यूँ भी जली मीलों तक चाँदनी चार कदम‚ धूप चली मीलों तक। प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमे अक्सर खत्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक। घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी खुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक। माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़ कर बरसी …
Read More »उँगलियाँ थाम के खुद – कुंवर बेचैन
उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे। उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे। बस उसी दिन से खफा है वो मेरा इक चेहरा धूप में आइना इक रोज दिखाया था जिसे। छू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर …
Read More »करो हमको न शर्मिंदा – कुंवर बेचैन
करो हमको न शर्मिंदा बढ़ो आगे कहीं बाबा हमारे पास आँसू के सिवा कुछ भी नहीं बाबा। कटोरा ही नहीं है हाथ में बस इतना अंतर है मगर बैठे जहाँ हो तुम खड़े हम भी वहीं बाबा। तुम्हारी ही तरह हम भी रहे हैं आज तक प्यासे न जाने दूध की नदियाँ किधर होकर बहीं बाबा। सफाई थी सचाई थी …
Read More »क्योंकि अब हमें पता है – मनु कश्यप
क्योंकि अब हमें पता है कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो आंखें मूंद कर हाथ जोड़ कर सुनते हैं कथा कह देते हैं अपनी सब व्यथा मांग लेते हैं वरदान पालनहारे से। और हम पढ़ कर चिंतन मनन कर हुए पंडित नहीं कर पाते यह सब क्योंकि अब हमें पता है नहीं है कोई पालनहारा। अनायास ही उपजे हैं हम …
Read More »जीवन दर्शन – काका हाथरसी
मोक्ष मार्ग के पथिक बनो तो मेरी बातें सुनो ध्यान से, जीवन–दर्शन प्राप्त किया है मैने अपने आत्मज्ञान से। लख चेोरासी योेनि धर कर मानव की यह पाई काया, फिर क्यों व्रत, उपवास करूँ मैं इसका समाधान ना पाया। इसलिए मैं कभी भूलकर व्रत के पास नहीं जाता हूँ, जिस दिन एकादश होती है उस दिन और अधिक खाता हूँ। …
Read More »उदास तुम – धर्मवीर भारती
तुम कितनी सुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खँडहर के आसपास मदभरी चांदनी जगती हो! मुँह पर ढँक लेती हो आँचल ज्यों डूब रहे रवि पर बादल, या दिन-भर उड़कर थकी किरन, सो जाती हो पाँखें समेट, आँचल में अलस उदासी बन! दो भूले-भटके सांध्य–विहग, पुतली में कर लेते निवास! तुम …
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