यह डूबी डूबी सांझ उदासी का आलम‚ मैं बहुत अनमनी चले नहीं जाना बालम! ड्योढ़ी पर पहले दीप जलाने दो मुझ को‚ तुलसी जी की आरती सजाने दो मुझ को‚ मंदिर में घण्टे‚ शंख और घड़ियाल बजे‚ पूजा की सांझ संझौती गाने दो मुझको‚ उगने तो दो उत्तर में पहले ध्रुव तारा‚ पथ के पीपल पर आने तो दो उजियारा‚ …
Read More »अगर कहीं मैं घोड़ा होता – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
अगर कहीं मैं घोड़ा होता वह भी लंबा चौड़ा होता तुम्हें पीठ पर बैठा कर के बहुत तेज मैं दौड़ा होता पलक झपकते ही ले जाता दूर पहाड़ी की वादी में बातें करता हुआ हवा से बियाबान में आबादी में किसी झोपड़े के आगे रुक तुम्हें छाछ और दूध पिलाता तरह तरह के भोले भोले इंसानों से तुम्हें मिलाता उनके …
Read More »नए साल की शुभकामनाएं – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पांव को कुहरे में लिपटे उस छोटे से गांव को नए साल की शुभकामनाएं। जांते के गीतों को बैलों की चाल को करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को नए साल की शुभकामनाएं। इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को नए साल की शुभकामनाएं। …
Read More »माँ की याद – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
चींटियाँ अण्डे उठाकर जा रही हैं, और चिड़ियाँ नीड़ को चारा दबाए, धान पर बछड़ा रंभाने लग गया है, टकटकी सूने विजन पथ पर लगाए, थाम आँचल, थका बालक रो उठा है, है खड़ी माँ शीश का गट्ठर गिराए, बाँह दो चमकारती–सी बढ़ रही है, साँझ से कह दो बुझे दीपक जलाये। शोर डैनों में छिपाने के लिए अब, शोर …
Read More »कितनी बड़ी विवशता – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
कितना चौड़ा पाट नदी का, कितनी भारी शाम, कितने खोए–खोए से हम, कितना तट निष्काम, कितनी बहकी–बहकी सी दूरागत–वंशी–टेर, कितनी टूटी–टूटी सी नभ पर विहगों की फेर, कितनी सहमी–सहमी–सी जल पर तट–तरु–अभिलाषा, कितनी चुप–चुप गयी रोशनी, छिप छिप आई रात, कितनी सिहर–सिहर कर अधरों से फूटी दो बात, चार नयन मुस्काए, खोए, भीगे, फिर पथराए, कितनी बड़ी विवशता, जीवन की, …
Read More »कच्ची सड़क – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
सुनो ! सुनो ! यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी जो मेरे गाँव को जाती थी। नीम की निबोलियाँ उछालती, आम के टिकोरे झोरती, महुआ, इमली और जामुन बीनती जो तेरी इस पक्की सड़क पर घरघराती मोटरों और ट्रकों को अँगूठा दिखाती थी, उलझे धूल भरे केश खोले तेज धार सरपत की कतारों के बीच घूमती थी, कतराती थी, खिलखिलाती …
Read More »सावन आया नी – तीज त्यौहार पर पंजाबी कविता
Sawan Aya Ni Ral auo sahio ni, Sabh tian khedan jaiye Pinghan piplin ja ke paiye Pai ku ku kardi ni, Sahio koel Hanju dolhe Papiha wekho ni, Bherha pee-pee kar ke bole. Paye pailan pande ni, Bagi moran shor machaya. Arhio khil khil phaulan ne, Sanu mahia yad kariya.
Read More »स्कूल ना जाने की हठ पर एक बाल-कविता: माँ मुझको मत भेजो शाला
अभी बहुत ही छोटी हूँ मैं, माँ मुझको मत भेजो शाळा। सुबह सुबह ही मुझे उठाकर , बस में रोज बिठा देती हो। किसी नर्सरी की कक्षा में, जबरन मुझे भिजा देती हो। डर के मारे ही माँ अब तक, आदेश नहीं मैंने टाला। चलो उठो, शाला जाना है , कहकर मुझे उठा देती हो। शायद मुझको भार समझकर, खुद …
Read More »आरसी प्रसाद सिंह जी की प्रेम कविता – चाँद को देखो
चाँद को देखो चकोरी के नयन से माप चाहे जो धरा की हो गगन से। मेघ के हर ताल पर नव नृत्य करता राग जो मल्हार अम्बर में उमड़ता आ रहा इंगित मयूरी के चरण से चाँद को देखो चकोरी के नयन से। दाह कितनी दीप के वरदान में है आह कितनी प्रेम के अभिमान में है पूछ लो सुकुमार …
Read More »पिता का रूप – फादर्स डे स्पेशल हिंदी कविता
जन्म देती है माँ चलना सिखाते हैं पिता हर कदम पे बच्चों के रहनुमा होते हैं पिता फूलों से लहराते ये मासूम बच्चे प्यारी सी इस बगिया के बागबान होते हैं पिता कष्ट पे हमारे दुखी होते है बहुत अश्क आंखों से बहे न बहे पर दिल में रोते हैं पिता धुप गम की हम तक न पहुँचे कभी साया …
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