ज्ञान के सामने धन की महत्वहीनता सुदाम पत्नी को बताते हैंः सिच्छक हौं सिगरे जग के तिय‚ ताको कहां अब देति है सिच्छा। जे तप कै परलोक सुधारत‚ संपति की तिनके नहि इच्छा। मेरे हिये हरि के पद–पंकज‚ बार हजार लै देखि परिच्छा औरन को धन चाहिये बावरि‚ ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा सुदामा पत्नी अपनी गरीबी बखानती हैः कोदों …
Read More »हाथी दादा – रामानुज त्रिपाठी
सूट पहन कर हाथी दादा चौराहे पर आए, रिक्शा एक इशारा कर के वे तुरंत रुकवाए। चला रही थी हाँफ–हाँफ कर रिक्शा एक गिलहरी बोले हाथी दादा मैडम ले चल मुझे कचहरी। तब तरेर कर आँखें वह हाथी दादा से बोली, लाज नहीं आती है तुमको करते हुए ठिठोली। अपना रिक्शा करूँ कबाड़ा तुमको यदि बैठा लूँ जान बूच कर …
Read More »गाय (भारत–भारती से) – मैथिली शरण गुप्त
है भूमि बन्ध्या हो रही, वृष–जाति दिन भर घट रही घी दूध दुर्लभ हो रहा, बल वीय्र्य की जड़ कट रही गो–वंश के उपकार की सब ओर आज पुकार है तो भी यहाँ उसका निरंतर हो रहा संहार है दाँतों तले तृण दाबकर हैं दीन गायें कह रहीं हम पशु तथा तुम हो मनुज, पर योग्य क्या तुमको यही? हमने …
Read More »अपराध – नसीम अख्तर
संकरी, अंधेरी गीली गीली गलियों के दड़बेनुमा घरों की दरारों से आज भी झांकते हैं डर भरी आंखों और सूखे होंठों वाले मुरझाए, पीले निर्भाव, निस्तेज चेहरे जिन का एक अलग संसार है और है एक पूरी पीढ़ी जो सदियों से भोग रही है उन कर्मों का दंड जो उन्होंने किए ही नहीं अनजाने ही हो जाता है उन से …
Read More »Holi Blues
I am dreaming of playing with colors and gulal, It is the Holi celebration after all. I can’t play inside my home, the carpets will get tainted, I cant’ play it in the yard, the grass and outer walls will get painted. I thought I would go to the temple, and enjoy the traditional Holi festivities, Once again I am …
Read More »हौंसले – रेखा चंद्रा
खुले आसमान में करे परवाज हौसले हर पंछी में नहीं होते सिर्फ बहार ही तो नहीं बाग में ठूंठ भी यहां कम नहीं होते सीप में बने मोती हर बूंद के ऐसे मौके नहीं होते आंख में आंसू होंठों पर मुसकान ऐसे दीवाने भी कम नहीं होते जहां जाएं रोने के लिए ऐसे कोने हर घर में नहीं होते मरने …
Read More »उग आया है चाँँद – नरेंद्र शर्मा
सूरज डूब गया बल्ली भर – सागर के अथाह जल में। एक बाँँस भर उग आया है – चाँद‚ ताड़ के जंगल में। अगणित उँगली खोल‚ ताड़ के पत्र‚ चाँदनीं में डोले‚ ऐसा लगा‚ ताड़ का जंगल सोया रजत–पत्र खोले‚ कौन कहे‚ मन कहाँ–कहाँ हो आया‚ आज एक पल में। बनता मन का मुकुल इन्दु जो मौन गगन में ही …
Read More »तुम कितनी सुंदर लगती हो – धर्मवीर भारती
तुम कितनी सुंदर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खंडहर के आसपास मदभरी चांदनी जगती हो! मुख पर ढंक लेती हो आंचल ज्यों डूब रहे रवि पर बादल‚ या दिनभर उड़ कर थकी किरन‚ सो जाती हो पांखें समेट‚ आंचल में अलस उदासी बन! दो भूल–भटके सांध्य–विहग‚ पुतली में कर लेते निवास! …
Read More »नेताओं का चरित्र – माणिक वर्मा
सब्जी वाला हमें मास्टर समझता है चाहे जब ताने कसता है ‘आप और खरीदोगे सब्जियां! अपनी औकात देखी है मियां! हरी मिर्च एक रुपए की पांच चेहरा बिगाड़ देगी आलुओं की आंच आज खा लो टमाटर फिर क्या खाओगे महीना–भर? बैगन एक रुपए के ढाई भिंडी को मत छूना भाई‚ पालक पचास पैसे की पांच पत्ती गोभी दो आने रत्ती‚ …
Read More »मंहगा पड़ा मायके जाना – राकेश खण्डेलवाल
तुमने कहा चार दिन‚ लेकिन छह हफ्ते का लिखा फ़साना‚ सच कहता हूं मीत‚ तुम्हारा मंहगा पड़ा मायके जाना! कहां कढ़ाई‚ कलछी‚ चम्मच‚ देग‚ पतीला कहां कटोरी‚ नमक‚ मिर्च‚ हल्दी‚ अजवायन‚ कहां छिपी है हींग निगोड़ी‚ कांटा‚ छुरी‚ प्लेट प्याले सब‚ सासपैेन इक ढक्कन वाला‚ कुछ भी हम को मिल न सका है‚ हर इक चीज छुपा कर छोड़ी‚ सारी …
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