वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है। थक कर वैठ गये क्या भाई ! मंजिल दूर नहीं है। अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का‚ सारी रात चले तुम दुख – झेलते कुलिश निर्मल का‚ एक खेय है शेष किसी विध पार उसे कर जाओ‚ वह देखो उस पार चमकता है मंदिर प्रियतम का। आकर …
Read More »मनुष हौं तो वही रसखान
मनुष हौं‚ तो वही ‘रसखानि’ बसौं बृज गोकुल गांव के ग्वारन जो पसु हौं‚ तो कहां बस मेरौ‚ चरौं नित नंद की धेनु मंझारन पाहन हौं‚ तौ वही गिरि कौ‚ जो धरयो कर छत्र पुरंदर कारन जो खग हौं‚ तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदिकूल–कदंब की डारन। या लकुटी अरु कामरिया पर‚ राज तिहूं पुर को तजि डारौं आठहुं सिद्धि नवों …
Read More »मैं सबको आशीश कहूंगा – नरेंद्र दीपक
मेरे पथ पर शूल बिछाकर दूर खड़े मुस्काने वाले दाता ने संबंधी पूछे पहला नाम तुम्हारा लूंगा। आंसू आहें और कराहें ये सब मेरे अपने ही हैं चांदी मेरा मोल लगाए शुभचिंतक ये सपने ही हैं मेरी असफलता की चर्चा घर–घर तक पहुंचाने वाले वरमाला यदि हाथ लगी तो इसका श्रेय तुम्ही को दूंगा। सिर्फ उन्हीं का साथी हूं मैं …
Read More »मैं बल्ब और तू ट्यूब सखी – बाल कृष्ण गर्ग
मैं पीला–पीला सा प्रकाश‚ तू भकाभक्क दिन–सा उजास। मैं आम‚ पीलिया का मरीज़‚ तू गोरी चिट्टी मेम ख़ास। मैं खर–पतवार अवांछित–सा‚ तू पूजा की है दूब सखी! मैं बल्ब और तू ट्यूब सखी! तेरी–मेरी ना समता कुछ‚ तेरे आगे ना जमता कुछ। मैं तो साधारण–सा लट्टू‚ मुझमे ज्यादा ना क्षमता कुछ। तेरी तो दीवानी दुनिया‚ मुझसे सब जाते ऊब सखी। …
Read More »कुटी चली परदेस कमाने – शैलेंद्र सिंह
कुटी चली परदेस कमाने घर के बैल बिकाने चमक दमक में भूल गई है अपने ताने बाने। राड बल्ब के आगे फीके दीपक के उजियारे काट रहे हैं फ़ुटपाथों पर अपने दिन बेचारे। कोलतार सड़कों पर चिड़िया ढूंढ रही है दाने। एक एक रोटी के बदले सौ सौ धक्के खाये किंतु सुबह के भूले पंछी लौट नहीं घर आये। काली …
Read More »खेल – निदा फ़ाज़ली
आओ कहीं से थोड़ी–सी मिट्टी लाएँ मिट्टी को बादल में गूँधे चाक चलाएँ नए–नए आकार बनाएँ किसी के सर पे चुटिया रख दें माथे ऊपर तिलक सजाएँ… किसी के छोटे से चेहरे पर मोटी सी दाढ़ी फैलाएँ कुछ दिन इन से दिल बहलाएँ और यह जब मैले हो जाएँ दाढ़ी चोटी तिलक सभी को तोड़–फोड़ के गड–मड कर दें मिली–जुली …
Read More »काला चश्मा – बरसाने लाल चतुर्वेदी
कारे रंग वारो प्यारी चस्मा हटाई नैकि‚ देखों तेरे नैन‚ नैन अपनी मिलाइकैं। तेरे नैन देखिबे की भौत अभिलाष मोहि‚ सुनिलै अरज मेरी नेकि चित लाइकैं। कमल–से‚ कि मीन–से‚ कि खांजन–से नैन तेरे एक हैं कि दोनो‚ नैकि देखों निहारिकै। भैम भयो रानी कहूं नाहिं ऐंचातानी तू मोकों दिखाइ नैकि चस्मा हटाइकै। ~ बरसाने लाल चतुर्वेदी
Read More »हो गई है पीर पर्वत सी – दुष्यंत कुमार
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चहिए‚ इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये। आज यह दीवार‚ परदों की तरह हिलने लगी‚ शर्त लेकिन थी कि यह बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर‚ हर गली में‚ हर नगर‚ हर गांव में‚ हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं‚ मेरी कोशिश है कि …
Read More »बहुत मुसकराई होगी – राजीव रोहित
पढ़ कर दर्दीला अफसाना हाल ही में तुम बहुत मुसकराई हो कुछ देर रोने के बाद यादों के आशियाने में छिपे झरोखे को ढूंढ़ पाने के दौरां जहां बोझल होती थीं पलकें चेहरा तुम्हारा चूमती थीं सुबह की देख कर किरणें चांद के ढल जाने के बाद तुम बहुत मुसकराई होगी कुछ देर रोने के बाद। ~ राजीव रोहित
Read More »हौसले तेरे हैं बुलंद – आर पी मिश्रा ‘परिमल’
कैसे ये मासूम पाखी तूफान से टकराएंगे आंधियों में किस तरह लौट कर घर आएंगे इन की हिम्मत में है जोखिम से खेलना जोखिमों से खेलते एक दिन मर जाएंगे गमलों में ये बदबू सी क्यों आने लगी बदल दो पानी वरना पेड़ सब मर जाएंगे दूध सांपों को क्या पिलाएं इस साल बांबियों में नहीं, संसद की गली मुड़ …
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