Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

जन्म दिन मुबारक हो – मूलचंद गुप्ता

जन्म दिन मुबारक हो, मुबारक हो जन्मदिन। आपके जीवन में, बार – बार आये यह दिन॥ दुनिया का मालिक, आपको बख्शे अच्छी सेहत। खुशियाँ ही खुशियाँ, बरसाती रहे उसकी नेमत॥ माना आइना नहीं जाता मेघ मल्हार, बुजुर्गों के किये। फिर भी बहुत कुछ हो सकता है बुजुर्गों के लिए॥ शारीरिक शक्ति, अगर कुछ कम हो भी गयी तो क्या है? …

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जीवन दीप – विनोद तिवारी

मेरा एक दीप जलता है। अंधियारों में प्रखर प्रज्ज्वलित, तूफानों में अचल, अविचलित, यह दीपक अविजित, अपराजित। मेरे मन का ज्योतिपुंज जो जग को ज्योतिर्मय करता है। मेरा एक दीप जलता है। सूर्य किरण जल की बून्दों से छन कर इन्द्रधनुष बन जाती, वही किरण धरती पर कितने रंग बिरंगे फूल खिलाती। ये कितनी विभिन्न घटनायें, पर दोनों में निहित …

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जय हिन्द – महजबीं

देखो बच्चों यह झंडा प्यारा, तीन रंगों का मेल सारा। रहे सदा ये झंडा ऊँचा आकाश को रहे यह छूता। सदा करो तुम इसका मान, कभी न करना इसका अपमान। झंडा है यह देश की शान, बना रहे यह सदा महान। जय हिन्द ! ∼ महजबीं

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जीवन – सारिका अग्रवाल

संभलकर रखना इस जीवन में कदम, कौन करेगा तुम्हारी कदर, सागर से विशाल आसमान यहाँ, अनगिनत सितारे यहाँ, इंसानों के रंग हज़ार यहाँ कौन समझेगा तुमको यहाँ, कौन खरीदेगा तुम्हारे आंसू यहाँ, संभलकर रखना इस जीवन में कदम। ∼ सारिका अग्रवाल

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जेब में कुछ नहीं है – अभिनव शुक्ला

एक बार एक प्रेमी अपनी रूप से लथपथ मेकअप से सनी हुयी और नाजुक फूलों के डंठलों से बानी हुई प्रेमिका से बोला पुराने शहर की पुरानी गली में पुराना सा एक दरवाजा लगा है जहाँ छत टपकती है बरसात भर मेरा घर वहीँ है। प्रेमिका दूर हटते हुए बोली पहले क्यों नहीं बताया कि रेशम की कमीज जेब में …

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जो हवा में है – उमाशंकर तिवारी

जो हवा में है, लहर में है क्यों नहीं वह बात, मुझमें है? शाम कन्धों पर लिए अपने ज़िन्दगी के रू-ब-रू चलना रोशनी का हमसफ़र होना उम्र की कैंडिल का जलना आग जो जलते सफ़र में है क्यों नहीं वह बात, मुझमें है? रोज़ सूरज की तरह उगना शिखर पर चढ़ना, उतर जाना घाटियों में रंग भर जाना फिर सुरंगों से गुज़र जाना …

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जीकर देख लिया – शिव बहादुर सिंह भदौरिया

जीकर देख लिया जीने में कितना मरना पड़ता है अपनी शर्तों पर जीने की एक चाह सबमें रहती है किन्तु ज़िन्दगी अनुबंधों के अनचाहे आश्रय गहती है क्या-क्या कहना क्या-क्या सुनना क्या-क्या करना पड़ता है समझौतों की सुइयाँ मिलतीं धन के धागे भी मिल जाते संबंधों के फटे वस्त्र तो सिलने को हैं सिल भी जाते सीवन, कौन कहाँ कब उधड़े …

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कवि कभी मरा नहीं करता – गगन गुप्ता ‘स्नेह’

कवि कभी मरा नहीं करता सो जाते हैं अहसास मातृप्राय हो जाते हैं वो तंतु जो सोचा करते हैं सूरज से आगे की सागर से नीचे की वो सोच, जिसने मेघदूत को जन्म दिया वो कभी मरा नहीं करती मर जाते है वो अरमान जब ध्वस्त होते हैं सपनों के किले कवि कभी मरा नहीं करता वह ज़िंदा रखता है …

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कस्बे की शाम – धर्मवीर भारती

झुरमुट में दुपहरिया कुम्हलाई खेतों में अन्हियारी घिर आई पश्चिम की सुनहरिया घुंघराई टीलों पर, तालों पर इक्के दुक्के अपने घर जाने वाले पर धीरे धीरे उतरी शाम ! आँचल से छू तुलसी की थाली दीदी ने घर की ढिबरी बाली जम्हाई ले लेकर उजियाली, जा बैठी ताखों में घर भर के बच्चों की आँखों में धीरे धीरे उतरी शाम …

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