Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है कुछ जिद्दी, कुछ नक् चढ़ी हो गई है मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है। अब अपनी हर बात मनवाने लगी है हमको ही अब वो समझाने लगी है हर दिन नई नई फरमाइशें होती है लगता है कि फरमाइशों की झड़ी हो गई है मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो …

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टल नही सकता – कुंवर बेचैन

टल नही सकता - कुंवर बेचैन

मैं चलते – चलते इतना थक्क गया हूँ, चल नही सकता मगर मैं सूर्य हूँ, संध्या से पहले ढल नही सकता कोई जब रौशनी देगा, तभी हो पाउँगा रौशन मैं मिटटी का दिया हूँ, खुद तो मैं अब जल नही सकता जमाने भर को खुशियों देने वाला रो पड़ा आखिर वो कहता था मेरे दिल में कोई गम पल नही …

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सद्य स्नाता – प्रतिभा सक्सेना

सद्य स्नाता - प्रतिभा सक्सेना

झकोर–झकोर धोती रही, संवराई संध्या, पश्चिमी घात के लहराते जल में, अपने गौरिक वसन, फैला दिये क्षितिज की अरगनी पर और उत्तर गई गहरे ताल के जल में डूब–डूब, मल–मल नहायेगी रात भर बड़े भोर निकलेगी जल से, उजले–निखरे सिन्ग्ध तन से झरते जल–सीकर घांसो पर बिखेरती, ताने लगती पंछियों की छेड़ से लजाती, दोनो बाहें तन पर लपेट सद्य – …

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न मिलता गम – शकील बदायुनी

न मिलता गम - शकील बदायुनी

तमन्ना लुट गयी फिर भी तेरे दम से मोहब्बत है मुबारक गैर को खुशियां मुझे गम से मोहब्बत है न मिलता गम तो बरबादी के अफ़साने कहाँ जाते अगर दुनिया चमन होती तो वीराने कहाँ जाते चलो अच्छा हुआ अपनों में कोई गैर तो निकला अगर होते सभी अपने तो बेगाने कहाँ जाते दुआएँ दो मोहब्बत हम ने मिट कर …

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क्या इनका कोई अर्थ नही – धर्मवीर भारती

क्या इनका कोई अर्थ नही - धर्मवीर भारती

ये शामें, ये सब की सब शामें… जिनमें मैंने घबरा कर तुमको याद किया जिनमें प्यासी सीपी का भटका विकल हिया जाने किस आने वाले की प्रत्याशा में ये शामें क्या इनका कोई अर्थ नही? वे लम्हें, वे सारे सूनेपन के लम्हे जब मैंने अपनी परछाई से बातें की दुख से वे सारी वीणाएं फैंकी जिनमें अब कोई भी स्वर …

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साबुत आईने – धर्मवीर भारती

साबुत आईने – धर्मवीर भारती

इस डगर पर मोड़ सारे तोड़, ले चूका कितने अपरिचित मोड़। पर मुझे लगता रहा हर बार, कर रहा हूँ आइनों को पार। दर्पणों में चल रहा हूँ मै, चौखटों को छल रहा हूँ मै। सामने लेकिन मिली हर बार, फिर वही दर्पण मढ़ी दीवार। फिर वही झूठे झरोके द्वार, वही मंगल चिन्ह वंदनवार। किन्तु अंकित भीत पर, बस रंग …

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क्यों प्रभु क्यों? – राजीव कृष्ण सक्सेना

क्यों प्रभु क्यों? - राजीव कृष्णा सक्सेना

मन मेरा क्यों अनमन कैसा यह परिवर्तन क्यों प्रभु क्यों? डोर में, पतंगों में प्रकृति रूप रंगों में कथा में, प्रसंगों में कविता के छंदों में झूम–झूम जाता था, अब क्यों वह बात नही क्यों प्रभु क्यों? सागर तट रेतों में सरसों के खेतों में स्तब्ध निशा तारों के गुपचुप संकेतों में घंटों खो जाता था अब क्यों वह बात …

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परम्परा – रामधारी सिंह दिनकर

परम्परा - रामधारी सिंह दिनकर

परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो उसमें बहुत कुछ है जो जीवित है जीवन दायक है जैसे भी हो ध्वंस से बचा रखने लायक है पानी का छिछला होकर समतल में दौड़ना यह क्रांति का नाम है लेकिन घाट बांध कर पानी को गहरा बनाना यह परम्परा का नाम है परम्परा और क्रांति में संघर्ष चलने दो आग लगी …

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टिकिया साबुन की

Tikiya Sabun ki

तालाब किनारे राेती थी, कल बिटिया इक बैरागन की, जब जालम कागा ले भागा, बिन पूछे टिकिया साबुन की। ये बाल भी लतपत साबुन में, पाेशाक भीतन पर नाजक सी, था अब्र में सूरज भी पिनहां, आैर तेज हवा थी फागुन की। आंचल भी उसका उड़ता था, आैर हवा के संग लहराता था, इक हाथ में दामन थामा था, इक …

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तुम असीम – घनश्याम चन्द्र गुप्त

तुम असीम - घनश्याम चन्द्र गुप्त

रूप तुम्हारा, गंध तुम्हारी, मेरा तो बस स्पर्श मात्र है लक्ष्य तुम्हारा, प्राप्ति तुम्हारी, मेरा तो संघर्ष मात्र है। तुम असीम, मई क्षुद बिंदु सा, तुम चिरजीवी, मई क्षणभंगुर तुम अनंत हो, मई सीमित हूँ, वत समान तुम, मई नव अंकुर। तुम अगाध गंभीर सिंधु हो, मई चंचल सी नन्ही धारा तुम में विलय कोटि दिनकर, मई टिमटिम जलता बुझता …

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