सांझ है धुंधली‚ खड़ी भारी पुलिया देख‚ गाता कोई बैठ वाँ‚ अन्ध भिखारी एक। दिल का विलकुल नेक है‚ करुण गीत की टेक– “साईं के परिचै बिना अन्तर रहिगौ रेख।” (उसे काम क्या तर्क से‚ एक कि ब्रह्म अनेक!) उसकी तो सीधी सहज कातर गहिर गुहारः चाहे सारा अनसुनी कर जाए संसार! कोलाहल‚ आवागमन‚ नारी नर बेपार‚ वहीं रूप के …
Read More »रोज़ ज़हर पीना है – श्रीकृष्ण तिवारी
रोज़ ज़हर पीना है, सर्प–दंश सहना है, मुझको तो जीवन भर चंदन ही रहना है। वक़्त की हथेली पर प्रश्न–सा जड़ा हूं मैं, टूटते नदी–तट पर पेड़ सा खड़ा हूं मैं, रोज़ जलन पीनी है, अग्नि–दंश सहना है, मुझको तो लपटों में कंचन ही रहना है। शब्द में जनमा हूं अर्थ में धंसा हूं मैं, जाल में सवालों के आज …
Read More »घर वापसी – राजनारायण बिसारिया
घर लौट के आया हूँ, यही घर है हमारा परदेश बस गए तो तीर न मारा। ठंडी थीं बर्फ की तरह नकली गरम छतें, अब गुनगुनाती धुप का छप्पर है हमारा। जुड़ता बड़ा मुश्किल से था इंसान का रिश्ता मौसम की बात से शुरू औ’ ख़त्म भी, सारा। सुविधाओं को खाएँ–पीएँ ओढ़ें भी तो कब तक अपनों के बिना होता …
Read More »इधर भी गधे हैं‚ उधर भी गधे हैं – ओम प्रकाश आदित्य
इधर भी गधे हैं‚ उधर भी गधे हैं जिधर देखता हूं‚ गधे ही गधे हैं गधे हंस रहे‚ आदमी रो रहा है हिंदोस्तां में ये क्या हो रहा है जवानी का आलम गधों के लिये है ये रसिया‚ ये बालम गधों के लिये है ये दिल्ली‚ ये पालम गधों के लिये हैै ये संसार सालम गधों के लिये है पिलाए …
Read More »हम न रहेंगे – केदार नाथ अग्रवाल
हम न रहेंगे तब भी तो यह खेत रहेंगे, इन खेतों पर घन लहराते शेष रहेंगे, जीवन देते प्यास बुझाते माटी को मदमस्त बनाते श्याम बदरिया के लहराते केश रहेंगे। हम न रहेंगे तब भी तो रतिरंग रहेंगे, लाल कमल के साथ पुलकते भृंग रहेंगे, मधु के दानी मोद मनाते भूतल को रससिक्त बनाते लाल चुनरिया में लहराते अंग रहेंगे। …
Read More »साँप – धनंजय सिंह
अब तो सड़कों पर उठाकर फन चला करते हैं साँप सारी गलियां साफ हैं कितना भला करते हैं साँप। मार कर फुफकार कहते हैं ‘समर्थन दो हमें’ तय दिलों की दूरियों का फासला करते हैं साँप। मैं भला चुप क्यों न रहता मुझको तो मालूम था नेवलों के भाग्य का अब फैसला करते हैं साँप। डर के अपने बाजुओं को …
Read More »सच हम नहीं सच तुम नहीं – जगदीश गुप्त
सच हम नहीं सच तुम नहीं, सच है सतत संघर्ष ही। संघर्ष से हट कर जिये तो क्या जिये हम या कि तुम, जो नत हुआ वह मृत हुआ‚ ज्यों वृन्त से झर कर कुसुम, जो पंथ भूल रुका नहीं‚ जो हार देख झुका नहीं‚ जिसने मरण को भी लिया हो जीत‚ है जीवन वही, सच हम नहीं सच तुम …
Read More »साक्षात्कार – श्रीप्रकाश शुक्ल
ऍम एस सी मैथ्स के प्रविष्टि हेतु चयन होने थे गुप्ता जी दाखिल हुए सामान्य कद चेहरा भोला साथ पुस्तकों से भरा खद्दर का झोला प्रश्न पूछे जाते गुप्ता जी उत्सुकता से उचकते फिर बैठ जाते गुप्ता जी उत्तर जानते थे अकुलाते भाषा की दुरुहता से बता नहीं पाते थे अक्स्मात् टूट पड़ा शब्दों में मुखरित यों फूट पड़ा “कछु …
Read More »सपन न लौटे – उदय भान मिश्र
बहुत देर हो गई सुबह के गए अभी तक सपन न लौटे जाने क्या बात है दाल में कुछ काला है शायद उल्कापात कहीं होने वाला है डरी दिशाएं दुबकी चुप हैं मातम का गहरा पहरा है किसी मनौती की छौनी सी बेबस द्रवित उदास धरा है ऐसे में मेरे वे अपने सपन लाडले जाने किन पहाड़ियों से, चट्टानों से …
Read More »समोसे – घनश्याम चन्द्र गुप्त
बहुत बढ़ाते प्यार समोसे खा लो‚ खा लो यार समोसे ये स्वादिष्ट बने हैं क्योंकि माँ ने इनका आटा गूंधा जिसमें कुछ अजवायन भी है असली घी का मोयन भी है चम्मच भर मेथी है चोखी जिसकी है तासीर अनोखी मूंगफली‚ काजू‚ मेवा है मन–भर प्यार और सेवा है आलू इसमें निरे नहीं हैं मटर पड़ी है‚ भूनी पिट्ठी कुछ …
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